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जलवायु परिवर्तन पर भारत का नेतृत्व और ग्लोबल साउथ से महत्वपूर्ण विचार

भारत ने G20 का प्रभारी होने के साथ-साथ जलवायु कार्यों पर दुनिया के सामने ग्लोबल साउथ की आवाज का प्रतिनिधित्व करने में नेतृत्वकारी भूमिका निभाई।

डॉ. सूफिया खानम

पार्टियों के सम्मेलन 28 (COP28) के समापन के दौरान जलवायु परिवर्तन से सर्वाधिक प्रभावित देशों ने जलवायु परिवर्तन के सिलसिले को कम करने के लिए जरूरी कदमों पर बहस की। इन बैठकों में तमाम सदस्य देश इन चर्चाओं में मशगूल रहे कि भविष्य में जलवायु परिवर्तन को कैसे कम किया जाए और उसके लिए अनुकूलन कैसे किया जाए। तय किया गया कि जितनी जल्दी हो सके जीवाश्म ईंधन से दूरी कायम करने के लिए कदम उठाए जाने चाहिए। ऐसा करने के लिए सभी सदस्य देशों को मिलकर काम करना चाहिए और विकसित देशों को विकासशील देशों को ऐसा करने में मदद करने की जिम्मेदारी लेनी चाहिए।

भारत ने G20 का प्रभारी होने के साथ-साथ जलवायु कार्यों पर दुनिया के सामने ग्लोबल साउथ की आवाज का प्रतिनिधित्व करने में नेतृत्वकारी भूमिका निभाई। भारत ने जलवायु परिवर्तन और विश्व अर्थव्यवस्था की सुरक्षा के बारे में बातचीत का नेतृत्व किया और सभी ने इन समस्याओं के अच्छे उत्तर खोजने के जतन किये। ये परियोजनाएं टीम वर्क को बढ़ावा देती हैं और भूमि हानि, नीली अर्थव्यवस्था, हरित हाइड्रोजन, संसाधन दक्षता और चक्रीय अर्थव्यवस्था जैसे मुद्दों से निपटती हैं।

जलवायु परिवर्तन के जोखिमों से निपटने के लिए भारतीय कंपनियों को एक साथ काम करने के लिए प्रेरित करना भारतीय उद्योग परिसंघ (CII) जलवायु कार्रवाई चार्टर का लक्ष्य था। इनमें से कुछ समस्याओं को हल करने में मदद के लिए CII और भारतीय उद्योग कई परियोजनाओं पर मिलकर काम कर रहे हैं। इसके 170 से अधिक सदस्य हैं और पिछले वर्ष में इसने भारत के 7 औद्योगिक क्षेत्रों में काम किया है। उदाहरण के लिए CII -गोदरेज ग्रीन बिजनेस सेंटर (IGBC) व्यवसायों को सलाह देकर प्राकृतिक संसाधनों को बचाने में मदद करना चाहता है। भारत की हरित भवन प्रवृत्ति का नेतृत्व CII-GBC ने किया है। IGBC ने अपने कार्यक्रम के हिस्से के रूप में 10.27 बिलियन वर्ग फुट से अधिक क्षेत्र को कवर करने वाली 11,300 से अधिक हरित भवन परियोजनाओं को पंजीकृत किया है। भारत में इनमें से 3,260 परियोजनाएं प्रमाणित हो चुकी हैं और पूरी तरह से चालू हैं।

इन सभी चर्चाओं में COP के दौरान भारत की जलवायु कार्रवाइयों पर बहुत जोर दिया गया। चाहे वह ग्रीन क्रेडिट पहल हो या जलवायु स्वास्थ्य प्रतिज्ञा पर हस्ताक्षर न करना हो क्योंकि उसे लगा कि जलवायु न्याय अधिक महत्वपूर्ण है। प्रधानमंत्री मोदी ने भारत की नई ग्रीन क्रेडिट पहल पर जोर दिया। इसे पर्यावरण मंत्रालय द्वारा किसी भी प्रकार के पर्यावरणीय कार्य करने वाली परियोजनाओं के लिए ग्रीन क्रेडिट देकर लोगों को पर्यावरण की देखभाल करने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए बनाया गया था। ये क्रेडिट मानवाधिकारों की रक्षा में भी मदद करते हैं।

जलवायु वित्त के मोर्चे पर भारत ने विश्व बैंक और अन्य सह-वित्तपोषित निजी क्षेत्रों जैसे संगठनों की प्रतिबद्धताओं की ज़रूरतों पर अधिक जोर दिया जो जोखिम-वापसी संबंध में सुधार के लिए विकासशील देशों की सरकारों के साथ काम कर सकते हैं। भारत ने बहुपक्षीय विकास बैंक (MDB) के सुधारों के इर्द-गिर्द चर्चा की और बातचीत की गति को आगे बढ़ाने पर भी प्रकाश डाला। यह पहल विकासशील देशों की आर्थिक वृद्धि को प्रभावित किए बिना हरित ऊर्जा की ओर बदलाव के लिए महत्वपूर्ण है।

लगभग 40 प्रतिशत शहरी आबादी मलिन बस्तियों (अनौपचारिक ठिकानों ) में रहती है। इसीलिए भारत में राज्य सरकारें पेरिस समझौते के आधार पर शून्य-उत्सर्जन लक्ष्य को पूरा करने के लिए विभिन्न कदम उठा रही हैं। उदाहरण के लिए चेन्नई ने 2050 तक अपने शून्य-उत्सर्जन लक्ष्य तक पहुंचने की योजना बनाई है। यह भारत सरकार द्वारा निर्धारित 2070 की समय सीमा से 20 वर्ष पहले है।

क्षेत्रीय स्तर पर, विशेष रूप से दक्षिण एशिया के संदर्भ में, भारत COP के तहत BASIC (ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका, चीन, भारत) ब्लॉक के साथ संवादरत है जहां राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता मिलती है। दक्षिण एशियाई देशों को जलवायु संकट से निपटने के लिए क्षेत्रीय दृष्टिकोण की आवश्यकता है। हालांकि बंगाल की खाड़ी बहु-क्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग पहल (BIMSTEC) और दक्षिण एशिया सहकारी पर्यावरण कार्यक्रम (SACEP) जैसे दो क्षेत्रीय मंच हैं लेकिन देशों को द्विपक्षीय दृष्टिकोण की तुलना में प्रभावी क्षेत्रीय सहयोग अपनाने की आवश्यकता है। ग्लोबल साउथ की उभरती शक्ति के रूप में भारत पर बहुपक्षीय मंचों के माध्यम से अन्य कमजोर देशों के लिए आवाज उठाने की जिम्मेदारी है।

भारत टिकाऊ भविष्य के प्रति अपनी प्रतिबद्धता के लिए जलवायु परिवर्तन प्रदर्शन सूचकांक 2023 में पहले ही 7वां स्थान हासिल कर चुका है। टिकाऊ और लचीले विकास के प्रति भारत की प्रतिबद्धता ग्लोबल साउथ के लिए उसके 'नेतृत्व' को प्रतिबिंबित करेगी और कार्यों के माध्यम से जलवायु लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए भविष्य का मार्ग प्रशस्त करेगी।

(लेखिका बांग्लादेश इंस्टीट्यूट ऑफ इंटरनेशनल एंड स्ट्रैटेजिक स्टडीज (BIISS) ढाका, बांग्लादेश में वरिष्ठ शोध अध्येता हैं)

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