इस साल अमेरिका में होने वाले चुनावों को लेकर अन्य लोगों की तरह अश्वेत महिलाओं में भी खासा उत्साह है। उन्हें लग रहा है कि वे इस देश की दशा और दिशा में अहम बदलाव ला सकती हैं। हाल ही में एथनिक न्यूज मीडिया ब्रीफिंग में पैनलिस्टों का कहना था कि हमारा आकलन कहता है कि इस बार के चुनाव में एएपीआई, अश्वेत, लैटिन आदि महिला मतदाताओं को नजरअंदाज करना नामुमकिन होगा क्योंकि वे एक बड़ी ताकत बन चुकी हैं।
पैनलिस्ट रोशनी नेदुंगडी, संग येओन चोइमोरो, रेजिना डेविस मॉस, ल्यूप एम. रोड्रिगेज और सेलिंडा लेक का कहना था कि हम चाहते हैं कि हम अपने अनुभवों को राजनीति और नीति परिवर्तन में भी लेकर आएं। अश्वेत महिलाओं अपने मूल्यों के आधार पर वोट कर रही हैं। हमें ऐसे लोगों की जरूरत है जो उनके मूल्यों और रोजमर्रा के मुद्दों पर बात कर सकें।
इंटरसेक्शन ऑफ आवर लाइव्स ने हाल ही में आंकड़े जारी करके बताया था कि 2024 के चुनाव में अश्वेत महिलाओं को कौन से मुद्दे सबसे ज्यादा प्रभावित कर रहे हैं। इनमें प्रजनन न्याय, अच्छी नौकरियां, किफायती हेल्थकेयर, गर्भपात, बर्थ कंट्रोल, मानसिक स्वास्थ्य, रहने की कम लागत और महंगाई जैसे मुद्दे प्रमुख हैं।
इस सर्वेक्षण में लेक रिसर्च पार्टनर्स के साथ हिस्सा लेने वाली एचआईटी स्ट्रैटेजीज की मुख्य शोध अधिकारी रोशनी नेदुंगडी ने कहा कि APPI समुदाय के कुछ जातीय समूहों में गर्भपात विरोधी और गैर-राजनीतिक धारणाएं हैं। वैसे तो हमने अभी दक्षिण एशियाई महिलाओं के आंकडे़ अलग से नहीं निकाले हैं, लेकिन अगर ऐसा किया जाता है तो इसमें कोई हैरानी नहीं होगी कि भारतीय अमेरिकी महिलाओं के सबसे बड़े मुद्दे में गर्भपात एक होगा।
सर्वे में शामिल भारतीय अमेरिकी महिलाओं के लिए सबसे अहम मुद्दों में सभी के लिए किफायती स्वास्थ्य सेवा, कानूनी रूप से सस्ता, सुलभ गर्भपात, जन्म नियंत्रण प्रमुख है। पैनलिस्टों ने आम सहमति से कहा कि अन्य समूहों के तीन सबसे बड़े मुद्दों में गर्भपात आदि शामिल नहीं थे। सर्वे में शामिल तीन चौथाई से अधिक चीनी और भारतीय महिलाओं का कहना था कि वे गर्भपात का समर्थन करती हैं। हर दस वियतनामी व कोरियाई महिलाओं में से सात ने गर्भपात और प्रजनन स्वास्थ्य का सपोर्ट किया था।
नेशनल एशियन पैसिफिक अमेरिकन वुमन फोरम की कार्यकारी निदेशक सुंग येओन चोइमोरो का कहना था कि सर्वे के आधार पर हम कह सकते हैं कि सभी समुदायों में आधे से अधिक महिलाएं गर्भपात और गर्भपात के कानूनी अधिकार का समर्थन करती हैं। स्वास्थ्य देखभाल की बढ़ती लागत और प्रजनन स्वास्थ्य तक महिलाओं की पहुंच को लेकर भी काफी चिंता दिखी है।
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