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चित्तसिंहपुरा नरसंहार के 25 साल: अब भी न्याय की आस में कश्मीरी सिख

चित्तसिंहपुरा के लोगों का कहना है कि पच्चीस साल बीत गए हैं, लेकिन न्याय आज भी दूर है।

चित्तसिंहपुरा नरसंहार के 25 साल /

जम्मू-कश्मीर के अनंतनाग में चित्तसिंहपुरा गांव के सिखों के लिए 20 मार्च का दिन आज भी जख्मों को हरा कर जाता है। नरसंहार की 25वीं बरसी पर गांव के सिख समुदाय ने एक बार फिर न्याय की गुहार लगाई है। 20 मार्च 2000 को अनंतनाग जिले के इस गांव में 35 निर्दोष सिखों को आतंकवादियों ने गोलियों से भून डाला था। 25 वर्षों बाद भी इस दर्दनाक घटना का सच सामने नहीं आ पाया है और न ही पीड़ितों को न्याय मिला है।

सिख समुदाय ने अपने स्तर पर "शहीदी स्मारक" का निर्माण किया है, जहां शहीदों के नाम और तस्वीरें पंजाबी, उर्दू और अंग्रेजी में अंकित हैं। वही दीवार, जिस पर सिखों को गोली मारी गई थी, आज भी स्मारक के रूप में सुरक्षित है। हर वर्ष 20 मार्च को, गुरबानी पाठ, अरदास और न्याय की पुकार के साथ शहीदों को श्रद्धांजलि दी जाती है।

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सरकारों पर सवाल
चित्तसिंहपुरा के निवासी और सामाजिक कार्यकर्ता ज्ञानी राजिंदर सिंह ने कहा, "पच्चीस साल बीत गए हैं, लेकिन न्याय आज भी दूर है। सरकारों ने अब तक इस दुखद घटना की निष्पक्ष जांच नहीं कराई। हम एक बार फिर उपराज्यपाल मनोज सिन्हा, मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अपील करते हैं कि इंसाफ दिलाया जाए।"

उन्होंने आगे कहा, "हम सिख गुरबाणी के सिद्धांत 'ना डरना, ना डराना' पर चलते हैं। इसलिए तमाम मुश्किलों के बावजूद हम आज भी अपने वतन कश्मीर में डटे हुए हैं।" ज्ञानी सिंह ने यह भी याद दिलाया कि 2000 में भी राज्य में नेशनल कॉन्फ्रेंस और केंद्र में भाजपा की सरकार थी, और आज भी वही राजनीतिक समीकरण सत्ता में हैं।

उमर अब्दुल्ला ने उठाई आवाज
हाल ही में जम्मू-कश्मीर विधानसभा में मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने अपने भाषण में चित्तसिंहपुरा समेत अन्य हमलों का जिक्र करते हुए कहा, "हमने अमरनाथ यात्रा, डोडा के गांवों, कश्मीरी पंडितों और सिखों की बस्तियों पर हमले होते देखे हैं।"

उन्होंने हाल के बैसरण हमले का जिक्र करते हुए कहा कि "हमें लगा था कि वह अतीत का हिस्सा बन चुका है, लेकिन हाल की घटनाएं फिर से उन अंधेरे दिनों की याद दिलाती हैं।"

सोशल मीडिया पर सिखों की प्रतिक्रिया
"The Kashmiri Sikh Project" नामक इंस्टाग्राम पेज ने उमर अब्दुल्ला का आभार जताते हुए लिखा, "कम से कम किसी ने हमारे दर्द को महसूस किया। पंडित भाइयों के दुःख पर तो मीडिया चर्चा करता है, लेकिन सिखों की पीड़ा अक्सर अनदेखी रह जाती है।" पोस्ट में आगे कहा गया कि "कठिन समय के बावजूद, कश्मीरी सिख कश्मीर से नहीं भागे। आज भी हम एक सूक्ष्म अल्पसंख्यक के रूप में, पूरे हौसले के साथ अपनी मातृभूमि से जुड़े हुए हैं।"

युवा भी कर रहे हैं आवाज बुलंद
चित्तसिंहपुरा के युवाओं ने भी "खालसा यूथ फेडरेशन" के बैनर तले प्रदर्शन किया। हाथों में "20 मार्च 2000 को कभी न भूलें", "न्याय में देरी, अन्याय है", जैसे नारों वाले पोस्टर लेकर वे न्याय की मांग करते दिखे।

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