डोनाल्ड ट्रम्प की आगामी सरकार लैंगिक समानता, खासकर भारतीय-अमेरिकी महिलाओं के लिहाज से कैसी रहेगी, इस पर भी लोगों की नजरें हैं। इसे समझने के लिए न्यू इंडिया अब्रॉड ने आर्ट फोरम सैन फ्रांसिस्को के निदेशक मंडल की सदस्य किरण मल्होत्रा से विशेष बातचीत की।
विजुअल एंड परफॉर्मिंग आर्ट्स की समर्पित संरक्षक और समकालीन कलाकारों की समर्थक के रूप में किरण मल्होत्रा ने शिक्षा, स्वास्थ्य एवं सांस्कृतिक क्षेत्रों में नेतृत्वकारी भूमिकाएं निभाई हैं। किरण कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी, सैंटा क्रूज़ फाउंडेशन और पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया बोर्ड की ट्रस्टी हैं। वह कई साल तक दिल्ली यूनिवर्सिटी के लेडी इरविन कॉलेज के फूड एंड न्यूट्रिशन विभाग में फैकल्टी भी रही हैं।
रूढ़िवाद को चुनौती
किरण मल्होत्रा साफ कहती हैं कि इस मुद्दे पर ट्रम्प का नजरिया असंगत और विवादास्पद रहा है। हालांकि उन्होंने कारोबार में महिलाओं को बढ़ावा देने जैसी कई नीतियों का समर्थन किया है, लेकिन उनकी मुंहफट बयानबाजी अक्सर ऐसे प्रयासों को कमजोर कर देती है। यह महिलाओं के योगदान को कम करके आंकने के पिछड़े सामाजिक दृष्टिकोण को दर्शाता है। मल्होत्रा कहती हैं कि वास्तविक प्रगति हासिल करने के लिए रूढ़िवादी प्रथाओं को समाप्त करके सभी के लिए न्यायसंगत वातावरण बनाने की व्यापक प्रतिबद्धता दिखानी होगी।
ट्रम्प प्रशासन में ताकतवर पदों पर भारतीय अमेरिकी महिलाओं की भूमिका से जुड़े सवाल पर किरण मल्होत्रा ने कहा कि भारतीय महिलाओं के लिए नेतृत्वकारी पदों पर प्रतिनिधित्व महत्वपूर्ण है क्योंकि यह स्टीरियोटाइप धारणाओं को चुनौती देता है और अपनेपन की भावना बढ़ाता है। उन्होंने कहा कि उच्च पदों पर आसीन महिलाएं दूसरों को प्रेरणा देती हैं। संदेश साफ है कि लीडरशिप और पावर सिर्फ जेंडर, जाति या पृष्ठभूमि तक सीमित नहीं हैं, उन पर सभी का हक है।
योगदान को सम्मान
किरण कहती हैं कि विदेश में रहने वाली भारतीय महिलाओं की भूमिका और भी अहम है। वह अमेरिका में अपने चार दशक के जीवन में आए बदलाव का उदाहरण देते हुए बताती हैं कि पहले भारतीय महिलाओं को संकीर्ण और असामान्य मानकर खारिज कर दिया जाता था। लेकिन जैसे-जैसे हम महिलाएं राजनीति, बिजनेस और अकेडमिक्स में लीडरशिप भूमिकाएं निभाने लगी हैं, लोग हमारी ताकत और योगदान को सम्मान देने लगे हैं। उन्होंने कहा कि यह इज्जत हमने अपनी मेहनत से, माहौल के अनुरूप खुद को ढालकर और पूर्वाग्रहों को कड़ी टक्कर देकर हासिल की है। पहले हमारी कोई पहचान नहीं थी, लेकिन अब महिलाएं पूरे आत्मविश्वास के साथ आगामी पीढ़ी के लोगों को प्रेरित कर रही हैं।
नीतिगत अलगाव
पिछले चुनावों में ट्रम्प की भारतीय अमेरिकी महिलाओं के प्रति बेरुखी से जुड़े सवाल पर किरण कहती हैं कि इसे लेकर कुछ कमियां रही हैं। वैसे तो ट्रम्प के पीएम मोदी से अच्छे संबंध रहे हैं। यह हाउडी मोदी जैसे कार्यक्रमों में भी साफ दिखा है। वह विरासत की इज्जत करते हैं। आर्थिक तरक्की और टैक्स सुधारों से लेकर प्रोफेशनल्स और आंत्रप्रेन्योर्स पर भी उनका फोकस रहा है। लेकिन कुछ कमियां भी रही हैं। उनकी बयानबाजी ने महिलाओं और अल्पसंख्यकों को निराश किया है। प्रवासियों को लेकर उनकी नीतियां भी चिंता पैदा करने वाली हैं।
एच-1बी और फैमिली रीयूनियन जैसी इमिग्रेशन नीतियों पर ट्रम्प का रुख दुखती नब्ज को दबाने जैसा रहा है। ये नीतियां सीधे तौर पर हमारे समुदाय को प्रभावित करती हैं। उनके बयान जिन्हें अक्सर विभाजनकारी माना जाता है, उन्होंने कई भारतीय महिलाओं को समानता और प्रतिनिधित्व की मजबूत पैरोकारी करने के लिए प्रेरित किया है। महिलाएं भेदभावपूर्ण नीतियों का खुलकर विरोध कर रही हैं, सिस्टम में बदलाव लाने के लिए काम कर रही हैं और यह सुनिश्चित कर रही हैं कि उनकी आवाज भी सुनी जाए और उन्हें महत्व दिया जाए।
लैंगिक समानता
ट्रम्प सरकार में लैंगिक समानता को आकार देने में भारतीय अमेरिकी महिलाएं किस तरह महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं, इस सवाल पर किरण मल्होत्रा कहती हैं कि सिस्टम ने महिलाओं को लेकर प्रणालीगत असमानताओं और सामाजिक पूर्वाग्रहों को उजागर किया है। महिलाओं को कड़ी जांच से गुजरना पड़ता है, चाहे उम्मीदवार हों, मतदाता हों या कार्यकर्ता। प्रजनन अधिकार, वर्कप्लेस समानता और चाइल्डकेयर जैसे मामलों में ध्रुवीकरण ने उन्हें अपने लिए लड़ने को मजबूर किया है।
किरण मानती हैं कि भारतीय अमेरिकी महिलाएं सार्थक बदलाव लाने में अहम योगदान दे सकती हैं। सोशल मीडिया और अन्य माध्यमों पर और अधिक सक्रियता के साथ वे अपनी तरक्की के रास्ते खोल सकती हैं।
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