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अयोध्या में भव्य राममंदिर के लिए लड़ी गई लंबी कानूनी और राजनीतिक लड़ाई

अयोध्या के नए भव्य राम मंदिर में रामलला 22 जनवरी को विराजमान होने जा रहे हैं। जोरशोर से इसकी तैयारियां चल रही हैं। अयोध्या में राम मंदिर निर्माण को लेकर बहुत लंबा इंतजार करना पड़ा है। लंबी कानूनी और राजनीतिक लड़ाई के बाद ये मौका आया है। आइए भगवान श्रीराम के भव्य मंदिर के उद्घाटन के अवसर पर इसे लेकर अब तक लड़ी गई कानूनी और राजनीतिक लड़ाई पर एक नजर डालते हैं-

 

22 दिसंबर, 1949 : अयोध्या में विवादित स्थल पर रामलला की मूर्तियां दिखाई दीं।

 

1950: हिंदू महासभा के नेता गोपाल सिंह विशारद और दिगंबर अखाड़े के महंत रामचंद्र परमहंस दास ने भगवान राम के जन्मस्थान पर मालिकाना हक का दावा करते हुए फैजाबाद अदालत में मुकदमा दायर किया। अदालत ने प्रार्थना और पूजा की अनुमति देते हुए यथास्थिति बनाए रखने के आदेश पारित किए।

 

1959: राम जन्मभूमि के संरक्षक होने का दावा करने वाले निर्मोही अखाड़े ने एक और याचिका दायर की।

 

1961: सुन्नी वक्फ बोर्ड ने याचिका दायर करके मस्जिद और उसके आसपास के इलाके को कब्रिस्तान बताया।

 

1983: कांग्रेस नेता दाऊदयाल खन्ना ने उत्तर प्रदेश में एक सभा को संबोधित करते हुए अयोध्या, मथुरा और काशी को फिर से हासिल करने का आह्वान किया।

 

1984: विश्व हिंदू परिषद ने बिहार के सीतामढ़ी से अयोध्या के लिए राम-जानकी रथ यात्रा शुरू की। हालांकि एक साल के लिए रथयात्रा रोकनी पड़ी।

 

अक्टूबर 1984: राम रथ यात्रा एक बार फिर से शुरू हुई।

 

1 फरवरी, 1986: फैजाबाद के जिला न्यायाधीश ने मंदिर के ताले खोलने का आदेश दिया।

 

9 नवंबर, 1989- बिहार के कामेश्वर चौपाल द्वारा प्रस्तावित मंदिर का शिलान्यास किया गया।

 

1989- भाजपा ने अयोध्या में राम मंदिर के समर्थन में पालमपुर में अपनी राष्ट्रीय कार्यकारिणी में प्रस्ताव पारित किया।

 

1990- विहिप ने अयोध्या में कार सेवा का आयोजन किया।

 

अक्टूबर 1990- कार सेवकों ने अयोध्या में प्रवेश किया, राज्य पुलिस ने स्थिति को नियंत्रित करने के लिए गोलियां चलाईं।

 

सितंबर 1992 : विहिप ने पूरे भारत में श्री राम पादुका पूजन का आयोजन किया।

 

6 दिसंबर, 1992- कारसेवकों ने विवादित ढांचा गिरा दिया। साइट पर एक अस्थायी मंदिर बनाया गया।

 

जनवरी 1993: पीवी नरसिम्हा राव सरकार ने विवादित स्थल के आसपास की 67 एकड़ जमीन का अधिग्रहण करने का आदेश दिया।

 

1994 : उच्चतम न्यायालय ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ से राम मंदिर के मालिकाना हक मामले में फैसला सुनाने को कहा।

 

2002- उच्च न्यायालय ने साइट के ग्राउंड पेनिट्रेटिंग रडार सर्वेक्षण का आदेश दिया।

 

2003- भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग एएसआई ने साइट की खुदाई की।

 

2010: उच्च न्यायालय ने विवादित स्थल को निर्मोही अखाड़ा, श्री रामलला और उत्तर प्रदेश सुन्नी वक्फ बोर्ड के बीच तीन बराबर हिस्सों में बांटने का आदेश दिया।

 

2011 : उच्चतम न्यायालय ने उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लगाई।

 

2019- सुप्रीम कोर्ट ने मामले में रोजाना सुनवाई शुरू की।

 

9 नवंबर, 2019: उच्चतम न्यायालय की पांच सदस्यीय पीठ ने अपना अंतिम फैसला सुनाया कि विवादित जमीन राम मंदिर निर्माण के लिए हिंदुओं को दे दी जाए। इसके बदले मे मुस्लिम पक्ष को वैकल्पिक 5 एकड़ जमीन उपलब्ध कराई जाए।

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