टाटा समूह को एयर इंडिया का 2.4 अरब डॉलर में सौदा किये हुए 2 साल हो गये हैं। मगर एयरलाइन को अपने हाथ में लेने के इतने समय बाद भी कंपनी इसके कायकल्प को लेकर जूझ रही है।
पुराने बेड़े को पुर्जों की कमी और लगातार उड़ान में देरी के बीच फिर से तैयार करना 'विश्व स्तरीय एयरलाइन' बनने के इसके रास्ते की बड़ी बाधाएं हैं। सीईओ कैंपबेल विल्सन का कहना है कि वैश्विक कमी अधिकांश एयरलाइनों की योजनाओं को नुकसान पहुंचा रही है लेकिन एयर इंडिया के लिए समस्या अधिक गंभीर है।
सीईओ विल्सन ने सिडनी में एक इंटरव्यू में कहा कि हमारा उत्पाद स्पष्ट रूप से बहुत पुराना है। 2010 और 2011 के बाद से इन विमानों में कोई बड़ी तकनीकी उन्नति नहीं हुई है। यह हमारे लिए एक गंभीर आवश्यकता है। अगर सीटें और उड़ान में मनोरंजन प्रणाली विरासत हमें मिली है तो हम अपना एक हाथ पीठ के पीछे बांध कर काम कर रहे हैं। सिंगापुर एयरलाइंस के पूर्व कार्यकारी विल्सन ने कहा कि प्रीमियम विमान के मामले में चुनौतियाँ सबसे बड़ी हैं क्योंकि एयर इंडिया अधिक खर्च करने वाले यात्रियों को लुभाना चाहती है।
एयर इंडिया ने पहले ही अपने बेड़े को अपग्रेड करने के लिए बड़े पैमाने पर ऑर्डर दे दिए हैं और इसी महीने अपने परिवर्तन को आगे बढ़ाने के लिए पुराने विमानों को फिर से फिट करने के लिए 400 मिलियन डॉलर की योजना शुरू की है।
दशकों के नुकसान के बाद एयरलाइन के पुनर्गठन पर निर्माताओं और पट्टादाताओं के साथ-साथ सिंगापुर एयरलाइंस के निवेशकों की नजर है। यह नवंबर से भारतीय वाहक में 25% हिस्सेदारी रखने के लिए तैयार है और अतिरिक्त निवेश करने के लिए सहमत हो गया है। करीब 600 मिलियन डॉलर।
सिंगापुर स्थित स्वतंत्र विमानन विश्लेषक ब्रेंडन सोबी ने कहा कि एयर इंडिया को अंतरराष्ट्रीय मानकों के करीब पहुंचने से पहले एक लंबा रास्ता तय करना है। इसके लिए उसे नए और रेट्रोफिटेड विमानों के साथ री-किटिंग की प्रक्रिया पूरी करने की जरूरत है।
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