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मस्क का मतलब... मुमकिन है

पिछले दिनों मस्क की एक 'हां' ने अमेरिका में 'ठहरे' उन लोगों के मन में बड़ी आशा का संचार किया है जो देर-सवेर यहां स्थायी ठिकाने का इंतजार कर रहे हैं।

दुनिया के दिग्गज उद्यमी इलोन मस्क / X image

दुनिया के दिग्गज कारोबारी इलोन मस्क जल्द ही अमेरिकी सरकार का विधिवत हिस्सा होने जा रहे हैं। लिहाजा, नया निजाम कायम होने से पहले भी उनकी एक 'हां' और 'न' स्वाभाविक रूप से किसी भी मामले को लेकर उनका या सरकार का फैसला ही माना जाएगा। पिछले दिनों मस्क की एक 'हां' ने अमेरिका में 'ठहरे' उन लोगों के मन में बड़ी आशा का संचार किया है जो देर-सवेर यहां स्थायी ठिकाने का इंतजार कर रहे हैं। यानी ग्रीन कार्ड प्रतीक्षार्थी। दरअसल, तीन साल के इंतजार के बाद भारतीय मूल के एक सीईओ ने कुछ दिन पहले सोशल मीडिया पर मस्क से पूछा था- मुझे लगता है कि अब मुझे ग्रीन कार्ड मिल जाना चाहिए, आपको क्या लगता है! सीईओ अरविंद श्रीनिवास की इस पोस्ट पर मस्क ने केवल 'हां' लिखा। बस फिर क्या था... सोशल मीडिया पर 'इस संवाद' के चर्चे होने लगे। इस 'सोशल-संवाद' की कई तरह से व्याख्याएं की जाने लगीं। कुछ लोगों ने मस्क की हां में सरकार की मंशा देखी। तो ग्रीन कार्ड का इंतजार कर रहे बाशिंदों ने इस 'हां' को उम्मीद के साथ देखा। जिन लोगों के मन में उम्मीद जागी उनके मन में आया कि मस्क है तो मुमकिन है...। 

लेकिन 'मुमकिन है...' वाला जुमला अमेरिका में रहने वाले उन भारतीयों के जेहन में अधिक कौंधा होगा जो वैध पात्रता के बावजूद ग्रीन कार्ड की प्रतीक्षा में हैं और जिनका भारत की चुनावी राजनीति से कुछ सरोकार रहा होगा। इसलिए क्योंकि भारत की सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने पिछले लोकसभा चुनावों में अपने नेता की जीत के लिए यही नारा गढ़ा था। चुनावी जंग में जीत हासिल करने और विरोधियों को कमतर साबित करने के लिए भाजपा ने नारा दिया- मोदी है तो मुमकिन है...। मोदी इस समय भारत के  प्रधानमंत्री हैं। यह उनका तीसरा कार्यकाल है। यकीनन मोदी भारत के मजबूत प्रधानमंत्रियों में से हैं। अपने एक दशक के कार्यकाल में उन्होंने कई ऐसे काम किये, कई ऐसे फैसले लिए और उन फैसलों को बिना किसी बाधा के जमीन पर उतारा जिनको लेकर यह धारणा रही है वह काम नहीं हो सकता। लिहाजा, एक फैसला लेने वाले प्रधानमंत्री के तौर पर मोदी की छवि बनाई गई। मोदी ने कुछ ऐसे फैसले लिये भी जिनको लेकर उनकी पार्टी अन्य दलों और खासकर कांग्रेस सरकार को अक्सर कठघरे में खड़ा करती आई है। चुनावी विजय के लिए इसीलिए पार्टी ने नारा बनाया- मोदी है तो मुमकिन है। 

जहां तक मस्क का सवाल है तो उनकी प्रकृति से दुनिया वाकिफ है। इस मामले में मस्क की 'हां' ने अमेरिका में आप्रवासन नीतियों को लेकर चर्चाओं को हवा दी है। कुछ दिन पहले एक पोस्ट में मस्क ने वर्तमान प्रणाली की आलोचना करते हुए लिखा था- हमारे पास एक उलटी प्रणाली है जो अत्यधिक प्रतिभाशाली लोगों के लिए कानूनी रूप से अमेरिका आना कठिन बना देती है लेकिन अपराधियों के लिए अवैध रूप से यहां आना मामूली बात है। कानूनी तौर पर नोबेल पुरस्कार विजेता बनने की बजाय एक हत्यारे के रूप में अवैध रूप से शामिल होना आसान क्यों है? यानी अब एक विचार यह बन रहा है कि भले ही राष्ट्रपति ट्रम्प अपने  दूसरे कार्यकाल में आप्रवासन को लेकर कुछ कड़े निर्णय लेंगे लेकिन प्रतिभाशाली लोगों के लिए अवसरों के द्वार खुलना आसान होगा। इसी उम्मीद पर एक दूसरी उम्मीद उन लोगों ने बांधी है जो अपने कौशल के दम पर अमेरिका में योगदान दे रहे हैं और स्थायी निवास हासिल करने वालों की कतार में आशा के साथ खड़े हैं।

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