ADVERTISEMENTs

अमेरिका में फिर नमो-नमो, दुनिया भर की निगाहें

प्रधानमंत्री मोदी की इस यात्रा पर अन्यान्य कारणों से दुनियाभर की निगाहें टिकी हुई हैं। रूस से लेकर चीन तक और इजराइल से लेकर यूक्रेन तक। सबके अपने दृष्टिकोण हैं, अपने हित हैं और अपनी चाहतें।  

अमेरिका में राष्ट्रपति बाइडेन के साथ भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी / X@narendramodi

भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की पहली राजकीय यात्रा को लेकर ठीक 15 माह पहले जैसा माहौल अमेरिका में था, वैसा ही अब भी है। अलबत्ता इस बार सरगर्मी इसलिए अधिक दिख रही है क्योंकि देश में राष्ट्रपति चुनाव का माहौल है जिनमें अब 2 महीने से भी कम का समय बाकी है। मोदी की यात्रा को लेकर चर्चा का सबब क्वाड सम्मेलन और संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में 'समिट ऑफ द फ्यूचर' संबोधन भी है। अमेरिका में बसे भारतीय-अमेरिकी जन तो इस यात्रा को लेकर उत्साहित हैं ही, भारतीय मूल के प्रभावशाली सामाजिक-राजनीतिक नेता भी भारत के प्रधानमंत्री से मुलाकात और उसके सुखद नतीजों के प्रति आशान्वित हैं। यात्रा से कुछ ही दिन पहले अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति और शीर्ष पद के लिए रिपब्लिकन उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रम्प की भारत के प्रधानमंत्री मोदी से मिलने की बेताबी ने माहौल में दिलचस्पी जगा दी है। यात्रा को लेकर दोनों देशों का माहौल उम्मीदो भरा है। लेकिन इस यात्रा पर अन्यान्य कारणों से दुनियाभर की निगाहें टिकी हुई हैं। रूस से लेकर चीन तक और इजराइल से लेकर यूक्रेन तक। सबके अपने दृष्टिकोण हैं, अपने हित हैं और अपनी चाहतें।  

दिलचस्प बात यह है भी है कि 15 महीने पहली मोदी की पहली राजकीय यात्रा भी 21 तारीख से ही शुरू हुई थी। इस बार का दौरा भी इसी तिथि से है। बहरहाल, बीते कुछ वर्षों में भारत के प्रधानमंत्री मोदी की वैश्विक लोकप्रियता का ग्राफ जिस तेजी से ऊपर गया है वह किसी आश्चर्य से कम नहीं। कुछ माह पहले रूस के राष्ट्रपति पुतिन के कंधे पर हाथ रखे और उसके कुछ ही दिन बाद यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की से गले मिलने वाली प्रश्नाकुल तस्वीरें पूरी दुनिया ने हैरत के साथ देखी हैं। पीएम मोदी की कुछ इसी तरह की विलक्षणताओं ने उनका शुमार शीर्ष वैश्विक नेताओं में कराया है। और शायद यही क्षमता देखकर दुनिया के बड़े देशों के नेता उम्मीद लगाये हैं कि मोदी ही बरसों से चले आ रहे रूस-यूक्रेन युद्ध को समाप्त करा सकते हैं। भारत के सियासी माहौल में उनकी पार्टी द्वारा दिया गया यह नारा-मोदी है तो मुमकिन है- आज दुनिया के नेताओं के जुबान पर है। दिलचस्प बात यह है कि भारत में संपन्न हुए हालिया लोकसभा चुनाव में भले ही प्रधानमंत्री मोदी की पार्टी को झटका लगा हो, उसके बड़े मंसूबे पूरे न हो पाये हों लेकिन विश्व पटल पर मोदी की लोकप्रियता में कहीं कोई गिरवट नहीं दिखी। भारत में भले ही कुछ राजनीतिक दल उनके जादू को खत्म होता करार दे रहे हैं लेकिन दुनिया के अन्य देशों और बड़ी शक्तियों के बीच मोदी पहले की भांति या अब उससे अधिक स्वीकार्य हैं।  

खैर, जहां तक मोदी की इस अमेरिकी यात्रा का सवाल है, वह हमेशा की तरह आशाओं के साथ संभावनाएं जगाने वाली है। अमेरिका में शीर्ष नेताओं से मिलने के अलावा भारत के प्रधानमंत्री भारतवंशियों से भी मिलेंगे. अपने 'मन की बात' करेंगे। इस समय अमेरिका में चुनावी गतिविधियां चरम पर हैं। भारतवंशी खुद को एक ऐतिहासिक प्रक्रिया का इसलिए भागी मान रहे हैं क्योंकि भारतीय मूल की कमला हैरिस डेमोक्रेटिक उम्मीदवार हैं और उनकी जीत की संभावनाएं भी बन रही हैं। कांटे के मुकाबले में हैं। ऐसे में मोदी की यात्रा अमेरिका में अलग-अलग वर्ग और पेशे से जुड़े भारतीय मूल के लोगों को एकजुट करने का 'अदृश्य' काम भी कर सकती है। हालांकि मोदी की इस यात्रा का अमेरिका की अपनी सियासत से कोई प्रत्यक्ष लेना-देना नहीं है लेकिन इसके परोक्ष प्रभावों से इनकार नहीं किया जा सकता।

Comments

ADVERTISEMENT

 

 

 

ADVERTISEMENT

 

 

E Paper

 

 

 

Video

 

Related