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अब अमेरिका से ज्यादा पैसा भेज रहे हैं भारतीय, खाड़ी देशों की पकड़ ढीली

रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका अब भारत को सबसे ज्यादा विदेशी धन भेजने वाला देश बन गया है। पैसा जो विदेशों से भारत आता है, उसे रेमिटेंस कहते हैं।

प्रतीकात्मक तस्वीर। / Pexels

विदेशों में रहने वाले भारतीय अब सबसे ज्यादा पैसा खाड़ी देशों से नहीं, बल्कि अमेरिका जैसे विकसित देशों से भारत भेज रहे हैं। भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका अब भारत को सबसे ज्यादा विदेशी धन भेजने वाला देश बन गया है। यह पैसा जो विदेशों से भारत आता है, उसे रेमिटेंस कहते हैं।

क्या है रेमिटेंस?
रेमिटेंस यानी जब कोई भारतीय विदेश में नौकरी या बिज़नेस करके वहां से अपने परिवार या रिश्तेदारों को भारत में पैसा भेजता है। यह पैसा भारत की अर्थव्यवस्था के लिए बहुत अहम होता है। साल 2022 में भारत को कुल 100 अरब डॉलर से भी ज्यादा रेमिटेंस मिला था — यानी विदेशों से पैसा आने के मामले में भारत दुनिया में नंबर 1 रहा।

अब अमेरिका बना सबसे बड़ा स्रोत
रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिका अब भारत को रेमिटेंस भेजने वाला सबसे बड़ा देश बन गया है, जिसकी हिस्सेदारी 27.7% है। इसके बाद यूएई (19.2%), ब्रिटेन (10.8%) और सिंगापुर (6.6%) का स्थान आता है। इससे यह स्पष्ट होता है कि रेमिटेंस अब कम मजदूरी वाले कामों से नहीं, बल्कि उच्च शिक्षा प्राप्त पेशेवरों और तकनीकी विशेषज्ञों द्वारा भेजा जा रहा है।

यह भी पढ़ें- अमेरिका-भारत के बीच ट्रेड डील की शर्तें तय, राह में ये कांटे अब भी बाकी

केरल की वापसी, पंजाब-तेलंगाना उभरते राज्य
राज्यवार आंकड़ों की बात करें तो महाराष्ट्र अब भी सबसे अधिक रेमिटेंस पाने वाला राज्य है, लेकिन उसकी हिस्सेदारी घट रही है। महामारी के बाद केरल ने मजबूत वापसी की है। वहीं तेलंगाना और पंजाब में भी छात्रों और कुशल श्रमिकों की वजह से रेमिटेंस में तेजी आई है।

जहां पारंपरिक रुपी ड्राइंग अरेंजमेंट (RDA) के जरिए अब भी 54.8% रेमिटेंस आते हैं, वहीं फिनटेक प्लेटफॉर्म्स के उपयोग में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। ये प्लेटफॉर्म रेमिटेंस को तेज, सस्ता और पारदर्शी बना रहे हैं।

मजबूत विदेशी मुद्रा भंडार, लेकिन रणनीति की ज़रूरत
भारत के पास वर्तमान में $677.8 अरब का विदेशी मुद्रा भंडार है, जो 11 महीने के आयात और 93% बाह्य ऋण को कवर करने में सक्षम है। हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि यह सिर्फ ‘बफ़र’ है, और अब भारत को रेमिटेंस को मात्रा से मूल्य की ओर ले जाने की रणनीति बनानी होगी।

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