लगभग 30 देशों के प्रवासी भारतीयों (एनआरआई) और ओवरसीज सिटीजंस (ओसीआई) ने भारत सरकार से एनआरआई संरक्षण कानून बनाने की मांग की है। इस दिशा में प्रवासियों ने कानून बनाने या केंद्र सरकार में एक केंद्रीकृत एनआरआई एजेंसी स्थापित करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ज्ञापन सौंपने का फैसला किया है।
अनिवासी भारतीयों का दावा है कि एनआरआई समुदाय के सदस्यों के खिलाफ बढ़ते अपराधों को देखते हुए यह संरक्षण कानून बनाना आवश्यक हो गया है। उनका कहना है कि एनआरआई की जमीन कब्जाने, धोखाधड़ी, जालसाजी और उनकी जमा रकम को अवैध रूप से निकालने जैसे अपराध अब संगठित रूप ले चुके हैं। इस पर ध्यान दिया जाना आवश्यक हो गया है।
प्रवासियों का दावा है कि भारत में संपत्ति निवेश के मामलों में बिल्डरों, परिचितों और बैंक अधिकारियों की मिलीभगत से धोखेबाजी के कारण करीब 900 एनआरआई के 800 करोड़ से 1,200 करोड़ रुपये तक दांव पर लगे हुए हैं। इन एनआरआई में अमेरिका, कनाडा, यूरोप आदि देशों के डॉक्टर, इंजीनियर, इनोवेटर्स, अधिकारी और अन्य पेशेवर शामिल हैं।
एनआरआई ग्रीवांस ग्रुप के संयोजक सुभाष बलप्पनवार का कहना है कि कई ऐसे बिल्डर और डेवलपर्स हैं जो केवल एनआरआई को पोंजी स्कीमों के जरिए टारगेट करते हैं। सैकड़ों प्रवासी भारतीय उनकी वजह से मुश्किलों का सामना कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि हम प्रति वर्ष 125 अरब डॉलर की रकम भारत में रेमिटेंस के जरिए वापस भेजते हैं, जो भारतीय अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसके बावजूद हम इस तरह के अपराधों का शिकार हो रहे हैं। हमें सरकार से सुरक्षा चाहिए।
एनआरआई समुदाय की तरफ से तैयार ज्ञापन में कहा गया है कि उनके आंकड़े बताते हैं कि भारत में हर तीन में से एक एनआरआई को परेशान किया जा रहा है। ऐसे में सुधार के लिए एनआरआई संरक्षण विधेयक पारित करना जरूरी हो गया है। इस प्रस्तावित विधेयक में संपत्ति विवादों में कानूनी संरक्षण, एनआरआई जांच एजेंसी का गठन, आरोपियों के खिलाफ गैर-जमानती वारंट और ऑनलाइन मतदान जैसे प्रावधान शामिल किए जा सकते हैं।
प्रवासी समूह इस सिलसिले में प्रधानमंत्री कार्यालय को पहले ही ई-मेल भेजकर अपनी बात कह चुके हैं, लेकिन कोई प्रगति न होने पर प्रवासी भारतीयों ने अब फैसला किया है कि वे दुनिया भर में भारतीय वाणिज्य दूतावासों के सामने अपनी मांग रखेंगे।
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