ब्रिटेन के विश्वविद्यालयों में दाखिला लेने वाले भारतीय छात्रों की संख्या में भारी गिरावट देखी गई है। ब्रिटेन के उच्च शिक्षा नियामक 'ऑफिस फॉर स्टूडेंट्स' की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, भारतीय छात्रों की संख्या में करीब 20 प्रतिशत की गिरावट आई है।
सिर्फ भारतीय ही नहीं, अन्य देशों के छात्रों की संख्या में भी व्यापक गिरावट दर्ज की गई है। इसने उच्च शिक्षा क्षेत्र की वित्तीय स्थिरता को लेकर चिंता बढ़ गई है जो कि अंतरराष्ट्रीय छात्रों द्वारा दी जाने वाली फीस पर निर्भर है। रिपोर्ट में बताया गया है कि 2022-23 शैक्षणिक वर्ष में भारतीय छात्रों की संख्या 139,914 थी, जो 2023-24 में घटकर 111,329 रह गई। इस तरह एक साल के अंदर ही 28,585 छात्रों यानी 20.4 प्रतिशत की गिरावट आई है।
रिपोर्ट के मुताबिक, नाइजीरियाई छात्रों की संख्या में सबसे ज्यादा 44.6 प्रतिशत की गिरावट आई है। उसके बाद बांग्लादेशी छात्रों में 41.2 प्रतिशत की गिरावट देखी गई। 2023 से 2024 बीच अंतरराष्ट्रीय छात्रों की तरफ से अध्ययन की स्वीकृति कुल मिलाकर 11.8 प्रतिशत की कमी आई। भारतीय छात्रों की संख्या में गिरावट की प्रमुख वजहों में ब्रिटेन में हुए हालिया दंगों, नौकरी की खराब संभावनाओं और प्रतिबंधात्मक आव्रजन नीतियां हैं।
इंडियन नेशनल स्टूडेंट्स एसोसिएशन यूके के प्रेसिडेंट अमित तिवारी कहते हैं कि बहुत से भारतीय छात्र अब जर्मनी, आयरलैंड, अमेरिका और मध्य पूर्व जैसे वैकल्पिक देशों में पढ़ाई के लिए जा रहे हैं। ब्रिटेन सरकार अगर इस तरफ ध्यान नहीं देती तो भारतीय छात्रों पर निर्भर ब्रिटेन के विश्वविद्यालयों के लिए आने वाले समय में मुश्किलें और बढ़ेंगी।
नेशनल इंडियन स्टूडेंट्स एंड एलुमनाई यूनियन यूके के संस्थापक अध्यक्ष सनम अरोड़ा का कहना है कि ब्रिटिश सरकार की नीतियां छात्रों को हतोत्साहित कर रही हैं। कंजर्वेटिव पार्टी का आश्रितों पर प्रतिबंध, अध्ययन के बाद कार्य वीजा को लेकर भ्रम, कुशल कामगारों की वेतन सीमा में वृद्धि और ब्रिटेन में नौकरियों की कमी ने छात्रों को कहीं और दाखिला लेने पर मजबूर कर दिया है। पहली बार छात्रों के बीच अपनी सुरक्षा को लेकर चिंता भी एक बड़ी वजह बनकर उभरी है।
अंतरराष्ट्रीय छात्रों की संख्या में गिरावट से ब्रिटेन के विश्वविद्यालयों पर दूरगामी असर होने की आशंका है। रिपोर्ट में अनुमान जताया गया है कि 2025-26 तक विश्वविद्यालयों की सालाना आय 3.4 बिलियन यूरो तक घट सकती है। इस क्षेत्र को 16 बिलियन यूरो के कुल घाटे का सामना करना पड़ रहा है। नतीजतन 72 प्रतिशत विश्वविद्यालय वित्तीय घाटे में हैं।
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