सदियों से दुनिया भर के विविध समुदायों में कीड़ों को खाने का चलन रहा है। भारत में ओडिशा के मयूरभंज जिले में लाल चींटियों का उपयोग चटनी के लिए किया जाता रहा है। इसे स्थानीय भाषा में 'काई चटनी' कहा जाता है। यह चटनी अपने औषधीय और पोषक गुणों के लिए इस क्षेत्र में प्रसिद्ध है। इस साल 2 जनवरी को इस खास लजीज चटनी को जीआई टैग से सम्मानित किया गया है। टैग यह दर्शाता है कि मयूरभंज की इस चटनी में विशेष गुण हैं जो अन्य चींटियों की चटनी में नहीं पाए जाते हैं।लाल चींटियों वैज्ञानिक रूप से Oecophylla smaragdina के रूप में जाना जाता है।
लेकिन इसकी चटनी का स्वाद लेने से पहले जान लीजिए कि इनका डंक बेहद दर्दनाक होता है। लाल चींटियां काटती हैं तो इंसान तिलमिला उठता है। शरीर में जलन होती है और लाल फफोले पड़ जाते हैं। दंश अविस्मरणीय होता है। लेकिन इसका स्वाद भी न भूलने वाला होता है। ये चींटियां आमतौर पर मयूरभंज के जंगलों में पाई जाती हैं, जिनमें सिमिलिपाल वन भी शामिल हैं।
जिले के सैकड़ों आदिवासी परिवार इन चींटियों को इकट्ठा करके और बेचकर जीवनयापन करते हैं। चींटियों के झुंड पत्ती को मोड़कर घोंसले बनाते हैं। काई चटनी बनाने के लिए वनवासी सुबह-सुबह चींटियों और उनके अंडों को इकट्ठा करते हैं।
चींटियों को एकत्र करने वाले घोंसलों को पेड़ों से अलग कर देते हैं और उन्हें पानी से भरी बोरियों या बाल्टियों में डाल देते हैं। चींटियां घोंसलों से बाहर निकल जाती हैं और कुछ ही घंटों में मर जाती हैं। धोने और सुखाने के बाद वे चटनी बनने के लिए तैयार हैं। इसी तरह की लाल चीटी की चटनी झारखंड और छत्तीसगढ़ जैसे अन्य पूर्वी राज्यों में भी पाई जा सकती है।
लाल चींटी की चटनी अपने स्वास्थ्य लाभों के लिए जानी जाती है। चटनी को प्रोटीन, कैल्शियम, जस्ता, विटामिन बी -12, आयरन, मैग्नीशियम, पोटेशियम जैसे पोषक तत्वों का एक अच्छा सोर्स माना जाता है। यह अनूठी चटनी एक स्वस्थ मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र के विकास में अपनी भूमिका के लिए भी क़ीमती है, जो संभावित रूप से अवसाद, थकान और मेमोरी लॉस जैसी स्थितियों को ठीक करने में भी सहायता करती हैं।
विभिन्न शोध और अध्ययनों के आधार पर प्रोटीन सोर्स के रूप में हमारे भोजन में कीड़ों को शामिल करने को पर्यावरणीय चुनौतियों के संभावित समाधान के रूप में देखा गया है। प्रोटीन और अन्य तत्वों के लिए पशुओं के मांस खाने की जगह हम कीड़ों को भोजन के रूप स्थापित कर सकते हैं। ये पशु मांस कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन जैसी गैसों के महत्वपूर्ण उत्सर्जन के लिए जाने जाते हैं। इस दृष्टिकोण में पर्यावरणीय असर को कम करने और अधिक टिकाऊ फूड सिस्टम को बढ़ावा देने की क्षमता है।
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