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भारत में तरक्की और वास्तविकता

भारत को असली तरक्की हासिल करने के लिए राजनेताओं और नागरिकों की मानसिकता में बुनियादी बदलाव लाने की जरूरत है ताकि चुनौतियों की वास्तविकता को पहचानकर उनसे निपटा जा सके।

भारत में रोड इन्फ्रास्ट्रक्चर निश्चित ही बेहतर हुआ है, लेकिन कुछ पहलुओं पर काम करना बाकी है। / facebook @ Nitin Gadkari

भारत की यात्रा करते समय हमेशा इस बात पर आश्चर्य होता है कि 90 के दशक में अपनी अर्थव्यवस्था और मानसिकता के द्वार खोलने के बाद के भारत में कितना कुछ बदल गया है, लेकिन अब भी कितना बदलना और भी बाकी है। अमेजन इंडिया साइट से आप शैंपू से लेकर वाइड स्क्रीन मॉनिटर तक सब कुछ एक दिन में डिलीवरी ले सकते हैं। ब्लिंकिट तो दस मिनट में किराने का सामान भी आपके दरवाजे पर पहुंचा देता है। इतनी तरक्की के बावजूद मुंबई-गोवा हाइवे साल 2011 से निर्माणाधीन है। 'अगले' वर्ष तक हाइवे पूरा हो जाएगा' ये वादा हर बार किया जाता है, लेकिन वो अवसर 24 साल बीतने के बाद अब तक नहीं आ सका है!

अच्छी बात यह है कि भारत ने आधुनिक तकनीक के चमत्कारों की बदौलत खुद को बदल लिया है। टेक एक्सपर्ट्स और गीक्स के देश से ऐसी ही उम्मीद थी। इसमें रिलायंस कंपनी के मोबाइल फोन और इंटरनेट क्रांति का बड़ा योगदान है, जो अविश्वसनीय रूप से सस्ती कीमतों पर डेटा और वेब एक्सेस प्रदान कर रहा है। यूपीआई ने भुगतान को बहुत आसान और फास्ट बना दिया है। आप किसी भी ऑटो-रिक्शा चालक या सब्जी विक्रेता को क्यूआर कोड स्कैन करके पेमेंट कर सकते हैं।

गुरुग्राम से लेकर पुणे और हैदराबाद से लेकर बेंगलुरु तक स्टार्ट-अप फल-फूल रहे हैं। इनमें यूनिकॉर्न स्टेटस वाले स्टार्टअप भी हैं। जेन जेड के युवा खुश हैं। अच्छी-अच्छी सैलरी देने वाली नौकरियों को छोड़कर, स्वच्छ ऊर्जा और अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी जैसे विविध क्षेत्रों के अनूठे स्टार्ट-अप से जुड़ रहे हैं। भारत अंतरिक्ष में डॉकिंग क्षमता हासिल करने वाला दुनिया का चौथा राष्ट्र बन गया है। उसने ग्लोबल स्पेस टेक मार्केट में अपनी अलग जगह बनाई है। खासकर कम कीमत में सैटलाइट लॉन्च करने में अपनी बढ़त बना ली है। 

हाल ही में राजधानी नई दिल्ली में पारंपरिक तरीके से गणतंत्र दिवस की भव्य परेड निकाली गई। इसमें अन्य उपलब्धियों के साथ स्वदेशी युद्धपोत आईएनएस सूरत, आईएनएस नीलगिरि और आईएनएस वाघशीर को दर्शाने वाली झांकी दिखाई गई। उत्तर प्रदेश की झांकी में महाकुंभ की झलक दिखाई गई। इन दिनों उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में महाकुंभ का आयोजन चल रहा है। कहा जा रहा है कि 144 साल में पहली बार महाकुंभ का अनोखा संयोग बना है। 

महाकुंभ के विशाल मेले में अथाह भीड़ के बीच सुरक्षा बनाए रखने और भीड़ की निगरानी के लिए एआई और चेहरे की पहचान की तकनीक इस्तेमाल की जा रही है। 2,760 से अधिक सीसीटीवी कैमरों का जाल बिछा है। टेक्नोलोजी की बदौलत दुनिया के सबसे बड़े इंसानी जमावड़े को सफलतापूर्वक मैनेज किया जा रहा है। अतीत की बॉलीवुड की कई फिल्में कुंभ मेले में भाई-बहनों के बिछड़ने और दशकों बाद नाटकीय अंदाज में फिर से मिलने की कहानियों से भरी पड़ी हैं। अब मिलवाने का ये काम एआई कर रहा है। हाल ही में फेशियल रिकॉग्निशन तकनीक ने एक महिला को उसके खोए हुए परिवार से मिलाया। 

भारत में कई सप्ताह बिताने के बाद, मुझे यह जल्दी ही स्पष्ट हो गया कि उम्मीद और विश्वास के बावजूद, भारतीय नागरिक कई मोर्चों पर निराश हैं। एक उदाहरण देता हूं। शहरी और ग्रामीण इलाकों में अब भी अस्वास्थ्यकर स्थितियां बनी हुई हैं। कुछ जगह तो दुनिया में सबसे बदनाम हैं। प्रधानमंत्री मोदी के 'स्वच्छ भारत' अभियान के बावजूद गांवों और शहरों में कचरा बिखरा नजर आता है। सीवेज के पानी नदियां प्रदूषित हो चुकी हैं। खबरें बताती हैं कि नई दिल्ली में नवंबर में सबसे खराब प्रदूषण का दौर रहा। इस दौरान एक्यूआई 494 के उच्च स्तर तक पहुंच गया था।

सड़क निर्माण की गति और गुणवत्ता एक और पहलू है, जो भारत की तरक्की और वास्तविकता का उदाहरण बन गया है। निसंदेह काफी सुधार काम हुआ है, लेकिन नए हाईवेज के बारे में मंत्री और चीयरलीडर सोशल मीडिया पर कितना भी गुणगान क्यों न करें, अभी भी काफी सुधार करना बाकी है। वियतनाम, एशिया और अफ्रीका के कई उभरते देश बाहरी विशेषज्ञता के जरिए विश्वस्तरीय मशीनों से निर्माण कर रहे हैं। आत्मनिर्भरता पर भारत का जोर अक्सर अक्षम निर्माण तकनीकों की तरफ ले जाता है। सड़क निर्माण स्थलों पर काम करते मजदूरों को देखना असामान्य नहीं है। संभवतः रोजगार सृजन का यह एक बड़ा जरिया है। लेकिन इससे सड़क प्रोजेक्टों के पूरे होने की गति बेहद धीमी हो जाती है। उस पर भी मामला तब और खराब हो जाता है, जब कुछ राजनेता महज प्रचार या भ्रष्टाचार के लिए बेवजह के दिखावटी प्रोजेक्टों को आगे बढ़ाते हैं।

भारतीय अर्थव्यवस्था की बात करें तो पिछले वर्ष के 8.2% के मुकाबले इस वक्त 5.4% की विकास दर रह गई रही है। चालू वित्त वर्ष के लिए संशोधित अनुमान 6.4% का लगाया गया है। निवेश खाते रखने वाले भारतीयों की संख्या 22 मिलियन से बढ़कर 150 मिलियन तक हो गई है। इसका असर स्टॉक मार्केट पर भी देखने को मिला है। म्यूचुअल फंड उद्योग और वित्तीय मीडिया की अतिरंजित चीयरलीडिंग ने इसे शह मिली है। लेकिन अब भारतीय शेयर बाजार को असलियत का सामना करना पड़ रहा है, जो पिछले कुछ वर्षों से तेजी से बढ़ रहा है। अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया की गिरावट ने पिछले छह महीनों का अधितकर लाभ चौपट कर दिया है। 

धीमी अर्थव्यवस्था, गिरता शेयर बाजार, भयंकर प्रदूषण और सड़क निर्माण की चुनौतियां भारत की तरक्की में सबसे बड़ी बाधाएं नजर आती हैं। भारत को 2047 तक 'विकसित भारत' बनाने के लिए इनसे पार पाना होगा। इसके लिए राजनेताओं और नागरिकों की मानसिकता में बुनियादी बदलाव लाने की आवश्यकता होगी ताकि चुनौतियों की वास्तविकता को पहचानकर उनसे निपटा जा सके। निश्चित रूप से भारत पहले की तुलना में बहुत तेजी से प्रगति कर रहा है। काफी कुछ बदल भी गया है, लेकिन अभी भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। इसके लिए आत्मसंतोष और अहंकार से अलग हटकर काम करना जरूरी है। 

(लेखक राम केलकर शिकागो में रहने वाले स्तंभकार और इन्वेस्टमेंट प्रोफेशनल हैं।

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