8 से 10 जनवरी तक भारत में ओडिशा के भुवनेश्वर में आयोजित होने वाले प्रवासी भारतीय दिवस सम्मेलन में दुनिया भर में मौजूद भारतीय डायस्पोरा के 3,000 से अधिक सदस्यों के हिस्सा लेने की उम्मीद है। इस समिट में शामिल होने वाले प्रवासियों का एकमात्र उद्देश्य अपनी जड़ों से जुड़े रहना नहीं है।
इंडियन ग्लोबल कम्युनिटी के ये एलीट सदस्य दुनिया की सबसे मजबूत अर्थव्यवस्थाओं में से एक भारत में निवेश की संभावनाएं देखने के अलावा विभिन्न क्षेत्रों में अपनी-अपनी विशेषज्ञता के अनुसार अपनी मातृभूमि को वापस देने के अवसरों की तलाश भी करते हैं। यही कारण है कि प्रवासी भारतीय दिवस (पीबीडी) के 18वें संस्करण का विषय 'विकसित भारत में डायस्पोरा का योगदान' रखा गया है, जो भारतीय डायस्पोरा की महत्वपूर्ण भूमिका को दर्शाता है
भारतीय डायस्पोरा के सदस्यों ने 2023 में 120 अरब अमेरिकी डॉलर की रकम रेमिटेंस के रूप में अपने मूल देश वापस भेजी। इसके 2025 तक बढ़कर 129 अरब डॉलर होने का अनुमान है। इसके अलावा इन्होंने राजनीति, व्यवसाय, व्यापार, उद्योग, चिकित्सा और प्रौद्योगिकी सहित कई क्षेत्रों में अपने अभूतपूर्व योगदान से भारत को सम्मान दिलाया।
भारतीय विदेश मंत्रालय राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के दक्षिण अफ्रीका से लौटने के उपलक्ष्य में हर साल 8 से 10 जनवरी तक प्रवासी भारतीय दिवस कार्यक्रम का आयोजन करता है। यह प्रवासी भारतीयों को न सिर्फ अपनी सफलता की कहानियों को साझा करने का मंच प्रदान करता है बल्कि अपने वर्तमान देश तथा मातृभूमि में सामने आने समस्याओं को प्रकट करने का अवसर भी देता है। यह आयोजन भारतीय विरासत, नवाचार और सहयोग को एक साथ लेकर आता है और नई पीढ़ी को जरूरी कनेक्शन भी प्रदान करता है।
भारत के प्रधानमंत्री परंपरा को निभाते हुए इस सम्मेलन का उद्घाटन करेंगे और राष्ट्रपति समापन के दिन प्रवासी भारतीय पुरस्कार प्रदान करेंगी। भारतीय मूल की एक अंतरराष्ट्रीय हस्ती को सम्मेलन में गेस्ट ऑफ ऑनर सम्मान प्रदान किया जाता है। इस बार त्रिनिदाद एवं टोबैगो की राष्ट्रपति क्रिस्टीन कार्ला कंगालू गेस्ट ऑफ ऑनर होंगी।
भारतीय प्रवासी दुनिया का दूसर सबसे बड़ा डायस्पोरा है। अनुमानित 3.6 करोड प्रवासी भारतीय विश्व के हर प्रमुख क्षेत्र में फैले हुए हैं। इसका आकार लगातार बढ़ रहा है। यह सैकड़ों वर्षों से प्रवास की परंपरा का परिणाम है, जो व्यापारवाद, उपनिवेशवाद और वैश्वीकरण के अलावा विदेशी धरती पर हरे चरागाह जैसे कारणों से पनपी है।
प्रवासी भारतीय एक विविध, विविधतापूर्ण और उदार वैश्विक समुदाय का हिस्सा हैं जो अलग-अलग क्षेत्रों, भाषाओं, संस्कृतियों और विश्वासों का प्रतिनिधित्व करते हैं। उन्हें एक साथ बांधने वाला साझा सूत्र है भारत का विचार और उसके आंतरिक मूल्य। अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया और कनाडा सहित विभिन्न देशों की सरकारें भारतीयों के महत्व को स्वीकार करती हैं।
प्रवासी भारतीय दिवस दुनिया भर के भारतीय मूल के लोगों को जोड़ने का महत्वपूर्ण मंच बन चुका है। इस वार्षिक आयोजन में हजारों प्रतिनिधि हिस्सा लेते हैं और अपनी दूसरी और तीसरी पीढ़ी की मातृभूमि से कनेक्टिविटी बनाए रखने के तरीकों और साधनों पर चर्चा करते हैं। इस दौरान व्यापार, व्यवसाय, उद्योग, शिक्षा, इंजीनियरिंग, चिकित्सा आदि क्षेत्रों में उल्लेखनीय उपलब्धि हासिल करने वाले चुनिंदा प्रवासी भारतीयों को सम्मानित किया जाता है।
प्रवासी भारतीय अपनी मातृभूमि में निवेश करके योगदान देना चाहते हैं, लेकिन इसे लेकर कई चिंताएं भी उनके मन में रहती हैं, खासकर व्यावसायिक उद्यमों, शिक्षा और बुनियादी ढांचे में निवेश को लेकर। प्रवासी भारतीय अभी भी भारत खासकर पंजाब सहित उत्तर भारत में अपने निवेश की सुरक्षा को लेकर संशय में रहते हैं। कई प्रवासियों का इस सम्मेलन में आने का एक उद्देश्य अपनी पैतृक संपत्ति की देखभाल करना भी होता हैं क्योंकि भारत में एनआरआई की भूमि को हड़पने के मामलों में बढ़ रहे हैं।
पूर्व कांग्रेस सरकार के दौरान दिल्ली में आयोजित एक प्रवासी भारतीय दिवस समारोह के एक कार्यक्रम में उस समय विवाद हो गया था, जब योजना आयोग के तत्कालीन उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलुवालिया ने यह कह दिया था कि प्रवासी भारतीय दिवस आयोजित करने के पीछे सरकार का उद्देश्य निवेश की मांग करना नहीं बल्कि प्रवासियों को उनकी जड़ों से जोड़ना है। उन्होंने पिछले कुछ वर्षों में भारत में हुए कुल विदेशी निवेश में प्रवासी भारतीयों की हिस्सेदारी का भी जिक्र किया और इसे नगण्य बताया। हालांकि तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने तुरंत ही रक्षात्मक रुख अपनाया और प्रवासी भारतीयों की भूमिका की सराहना की।
ऋषि सुनक, कमला हैरिस, नवदीप बैंस, अनीता आनंद, हरजीत सिंह सज्जन, अमरजीत सिंह सोही, टिम उप्पल, बाल गोसल, हरिंदर तखर, मनप्रीत भुल्लर, गुरबख्श सिंह मल्ही, डॉ रूबी ढल्ला, दविंदर शौरी, पीटर संधू, जगरूप बराड़, गुरमंत ग्रेवाल, नीना ग्रेवाल, उज्जल दोसांझ, जीएस ढेसी, लॉर्ड दिलजीत राणा, लॉर्ड स्वराज पॉल, दर्शन सिंह ग्रेवाल, कंवलजीत सिंह बख्शी और परमिंदर सिंह मारवाह जैसे कई सफल राजनीतिक दिग्गज जो हर वर्ष भारत आते हैं। इनके अलावा हजारों अन्य प्रवासी भारतीय भी इस वार्षिक कार्यक्रम में हिस्सा लेकर इस मातृभूमि से जुड़ी अपनी पुरानी यादों को ताजा करते हैं।
(* प्रभजोत सिंह पीबीडी-2025 की कवरेज के लिए भुवनेश्वर में हैं।)
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