न्यूजर्सी के रॉबिन्सविले में हाल ही में खुले बीएपीएस अक्षरधाम मंदिर के संचालन में स्वयंसेवकों का बड़ा सहयोग है। कई बार वॉलंटियर्स के योगदान को देखकर लोग चकित रह जाते हैं। ये कहना है मंदिर के प्रमुख चैतन्यमूर्ति दास स्वामी का, जो मंदिर के संचालन का श्रेय असाधारण स्वयंसेवा को देते हैं।
चैतन्यमूर्ति दास स्वामी ने न्यू इंडिया अब्रॉड से खास बातचीत में बताया कहा कि आज के दौर में लोगों के पास दूसरों के लिए समय नहीं है। इसके बावजूद यह पूरा मंदिर स्वयंसेवकों द्वारा बनाया गया और अब संचालित भी किया जा रहा है। यह तथ्य कि यहां सब कुछ स्वयंसेवकों द्वारा संचालित किया जाता है, बहुत से लोगों को आश्चर्यचकित करता है। निस्वार्थ सेवा की यह भावना आगंतुकों को बहुत प्रेरित करती है।
स्वामी ने बताया कि अक्टूबर के उद्घाटन के बाद से ही यहां बड़ी संख्या में लोग आ रहे हैं। लोगों की भीड़ को देखते हुए हमने रजिस्ट्रेशन सिस्टम शुरू किया है। इसके तहत एक समय में सीमित संख्या में लोगों को ही अंदर जाने दिया जाता है। मई में इस सिस्टम के शुरू होने के बाद से लोगों को अब ज्यादा इंतजार नहीं करना पड़ता है।
स्वामी जी ने बताया कि कई कंपनियों के सीईओ और नेताओं समेत तमाम गणमान्य नागरिक इस मंदिर का दौरा कर चुके हैं और स्वयंसेवा के इस मॉडल की खूब तारीफ कर चुके हैं। यह एक उदाहरण है कि सामूहिक प्रयास और समर्पण से क्या-कुछ हासिल किया जा सकता है।
पिछले साल अक्टूबर में खुले इस मंदिर का प्रभाव आध्यात्मिक शिक्षा से परे है। इससे रॉबिंसविले और न्यूजर्सी की स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी लाभ होता है। यहां की टाउनशिप रॉबिंसविले और न्यूजर्सी राज्य में आने वाले लोगों के लिए जरूरी गंतव्य बन चुके हैं। पेंसिल्वेनिया, न्यूजर्सी और न्यूयॉर्क के भक्त लोग अपने मेहमानों को लेकर यहां खूब आते हैं।
उन्होंने कहा कि भारतीय परिवारों के लिए यह कोई नई बात नहीं है, लेकिन अमेरिकी लोगों के लिए इस तरह के कलात्मक मूल्यों को देखना एक नया और अविश्वसनीय अनुभव है। अब विभिन्न पृष्ठभूमि के अमेरिकी लोग भी यहां आ रहे हैं और भारतीय संस्कृति, आध्यात्मिकता और विरासत के बारे में सीख रहे हैं। यह एक बड़ी सफलता है।
स्वामी ने बताया कि मंदिर में पूरे वर्ष कई तरह के उत्सव चलते है। इस दौरान संगीत, नृत्य और फूड फेस्टिवल जैसे कार्यक्रम होते हैं। उन्होंने बताया कि मंदिर का शिल्प कौशल और स्थापत्य चमत्कारिक है। यहां तक कि भारतीय मंदिरों से परिचित लोग भी यहां की जटिल नक्काशी और अद्वितीय शिल्प के मुरीद हो जाते हैं।
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