घूमते-घूमते एक दिन हमें यह एहसास हुआ कि अरे हमने तो अमेरिका के 38-39 राज्य घूम लिए हैं। क्यों ना अब सभी पचास राज्यों को पूरा कर लिया जाए।
लॉन्ग वीकेंड आने वाला था। साथी ने पूछा, कहां चलना है? मैंने कहा- मैक्सिको या आयोवा या फिर नेब्रास्का। हमारा वीज़ा स्टैंप नहीं था। ऐसे में मेक्सिको का प्लान वैसे ही कैंसिल हो गया। अब बात आयोवा, नेब्रास्का तक पहुंची।
“अरे यार तपस्या, आयोवा-नेब्रास्का कौन जाता है घूमने?”
“आपने मुझे कभी, कौन के फेर में देखा है?”
“फिर से सोच लो। इतने में हम कहीं अच्छे जगह घूमकर आ सकते हैं।”
“सोच लिया। नहीं जाना अच्छी जगह।”
और हम निकल पड़े आयोवा की ओर…
इंडियाना से गाड़ी चली और दस घंटे की यात्रा के बाद हम आयोवा में थे। घूमते-घूमते हम लोग वहां कैपिटल बिल्डिंग के पास पहुंचे। बिल्डिंग सोने के रंग से रंगी थी। साँझ हो गई थी, पर सूरज डूबने में अभी वक्त था। सबकुछ इतना सुनहरा लग रहा था कि अचानक साथी बोल पड़े- वाह, कितना सुंदर है सबकुछ…
मैं मुस्कुराकर ताना मारने ही वाली थी कि एक परिवार हम तक पहुँचा और पूछा, “क्या हमारी एक तस्वीर लेंगे?”
साथी ने हाँ कहा और उनका कैमरा थाम लिया।
भारतीय थे, कोंकण-महाराष्ट्र से, न्यू जर्सी में रहते हैं। यहाँ अपने दोस्त से मिलने आए थे। जब उन्होंने यह जाना कि हम घूमने यहाँ आये है तो हँसकर बोले- यहाँ कौन आता है घूमने…
मेरे साथी ने कनखी से मेरी तरफ़ देखा और मुस्कुराकर बोले- हम।
मुझे यह राज्य बहुत सुंदर लगा। खेतों के बीच का रास्ता और दूर-दूर तक सिर्फ़ हमारी गाड़ी… एकाध बार भटकने का डर भी लगा, पर प्राकृतिक सुंदरता ऐसी कि मन मोह लिया।
ख़ूबसूरत मेमोरीज़ के साथ जब हम घूमकर लौट रहे थे। हमने कार “आयोवा 80” गैस स्टेशन पर रोकी। यह अमेरिका के सबसे बड़े ट्रक स्टॉप स्टेशन में से एक है। गैस लेकर हम अंदर कुछ खाने-पीने की चीजें ढूँढने निकले। खाने का सामान लेकर एक बेंच पर जा बैठे। खाते हुए मैंने साथी से पूछा- क्या सच में कोई उपाय नहीं चलने का?
दरअसल मैं “द ब्रिज ऑफ़ मैडिसन काउंटी” फ़िल्म वाला ब्रिज देखना चाह रही थी। यह मेरी पसंदीदा फ़िल्मों में से एक है। कमाल की बात यह कि यह ब्रिज आयोवा में ही है। लेकिन दिक़्क़त यह थी कि यह हमारे लौटने की दूसरी दिशा में क़रीब डेढ़ घंटे पीछे थी। हम बात कर ही रहे थे कि एक सरदार जी हाथ में खाने की ट्रे लिए आए और पूछा, “यहाँ बैठ जाऊँ?”
हमने कहा- हाँ। फिर कई बातें हुई। वे शिकागो के ही रहने वाले थे। उन्हें यह जानकर ख़ुशी हुई कि हम यहाँ घूमने आए हैं। वह भी तीन साल का बच्चा साथ लेकर। कहते हैं, बहुत कम ही लोग इधर घूमने को आते हैं। सब न्यूयॉर्क, वेगास या मियामी जाते है।
बातों-बातों में उन्होंने बताया कि एक बहुत अच्छी किताब है- “एक बार आयोवा”। साथ ही बताया कि वे आयोवा कुछ साल रहे भी हैं।
मैं चकित थी। एक ट्रक ड्राइवर, उस पर पंजाबी। बरसों से यहाँ रह रहे हैं। उन्हें कैसे हिन्दी साहित्य में इतनी रुचि? जबकि मुझे तो इस किताब का नाम तक नहीं मालूम था। मैं तो इसके लेखक को कवि भर जानती थी। मेरी आँखों में अचरज देख, सरदार जी ने अपने बारे में कई बातें बताईं जो मुझे चकित करती रहीं…
ख़ैर, तब से किताब दिमाग़ में घर बना गई है, पर मिल ही नहीं रही। जाने कब मिलेगी… किताब जब मिले, तब मिले फ़िलहाल मंगलेश जी के नाम उनकी एक कविता का अंश जो मुझे बेहद पसंद है-
“एक स्त्री के कारण तुम्हें मिल गया एक कोना
तुम्हारा भी हुआ इंतज़ार
एक स्त्री के कारण एक स्त्री
बची रही तुम्हारे भीतर”
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