भारतीय मूल के रिपब्लिकन नेता और अरबपति उद्यमी विवेक रामास्वामी की सियासी महत्वाकांक्षाओं की उड़ान सत्ता के शीर्ष पद यानी राष्ट्रपति बनने की हसरतों के साथ हुई थी और अब गवर्नर के पद पर ठिकाने पाने पर आ टिकी है। भले ही उनका सियासी सफर लंबा नही है लेकिन इस छोटे से सफर की दास्तान दिलचस्प और घटनाप्रधान है। विवेक के कदम अब एक ऐसे पड़ाव की ओर बढ़ रहे हैं जिसका मजबूत आधार तो है ही उनके इस राजनीतिक सपने के पूरा होने की भी प्रबल उम्मीद है। विवेक ओहायो राज्य के गवर्नर पद की दौड़ में हैं। अलबत्ता चुनाव अभी बहुत दूर है किंतु फिलहाल उम्मीद की जा रही है कि यह दौड़ वे जीत लेंगे क्योंकि उन्हे राष्ट्रपति ट्रम्प का पूरा समर्थन हासिल है। राष्ट्रपति ट्रम्प ने ऐलानिया तौर पर यह बात कही है। पिछले साल जब राष्ट्रपति पद के लिए चुनावी दौड़ शुरू हुई और प्रचार अभियान का आगाज हुआ तो उससे कुछ समय पहले ही रामास्वामी ने रिपब्लिकन पार्टी से उम्मीदवारी पाने की जद्दोजहद शुरू की थी। एकाध चुनावी सभा से हलचल भी पैदा की मगर जल्द ही सबको यह अहसास हो गया कि पार्टी से शीर्ष पद के लिए उम्मीदवारी पाना ट्रम्प के रहते संभव नहीं हो पाएगा। इसका अहसास सबके साथ रामास्वामी को भी जल्द ही हो गया और तुरंत ही उन्होंने ट्रम्प के समर्थन में घुटने टेक दिये। लेकिन इसी के साथ उन्होंने ट्रम्प का प्रबल समर्थक बनने का एक विवेकपूर्ण फैसला किया।
विवेक का राष्ट्रपति बनने का सपना तो टूट ही चुका था मगर चुनाव अभियान आगे बढ़ा तो चर्चा होने लगी कि ट्रम्प उप राष्ट्रपति के तौर पर उन्हे अपने साथ रख सकते हैं। कुछ दिन चर्चाओं का बाजार गर्म रहा मगर जेडी वेंस के पर्दे पर आने के बाद यह अध्याय भी समाप्त हो गया। फिर धीरे-धीरे मतदान का दिन आ गया। यूं राष्ट्रपति चुनाव से पहले तक नतीजों को लेकर कोई अंदाजा नहीं था और कमला हैरिस के पक्ष में जोरदार हवाएं मतदान से पहले तक बहती दिख रही थीं मगर नतीजों ने सबको चौंका दिया। नतीजों से पहले जिस मुकाबले को कांटे का बताया जा रहा था वह बाद में बगैर किसी मुकाबले के खत्म हुआ। ट्रम्प ने उन स्विंग राज्यों में भी बाजी मारी जिनके बारे में मीडिया हैरिस के पक्ष में दलीलें दे रहा था। बहरहाल, ट्रम्प के दूसरे कार्यकाल की तैयारियां होने लगीं। विवेक का नाम इस बीच भी चर्चा में रहा कि उन्हे प्रशासन में कोई अहम जिम्मेदारी मिल सकती है। हुआ भी यही। रामास्वामी को ट्रम्प प्रशासन के नवगठित सरकारी दक्षता विभाग में उसके मुखिया इलॉन मस्क का सेनापति बनाया गया। यहां विवेक दूसरे नंबर पर थे। लेकिन शायद उनके जेहन में कुछ और ही चल रहा था।
फिर एक दिन खबर आई कि रामास्वामी ने सरकारी दक्षता विभाग छोड़ दिया और उनके इरादे कुछ और हैं। खबरें उड़ीं कि विवेक की मस्क के साथ नहीं बनी इसलिए उन्हे विभाग छोड़ना पड़ा लेकिन वैसा कुछ अब तक सामने नहीं आया। हां, कुछ दिन पहले यह अवश्य सामने आया कि विवेक अब ओहायो के गवर्नर पद की दौड़ में शामिल होने जा रहे हैं। बीते सप्ताह सिनसिनाटी की एक रैली में उन्होंने इसका ऐलान किया। अभी तक तो यही लगता है कि विवेक ने सरकारी दक्षता विभाग छोड़कर एक विवेकपूर्ण और सियासी रूप से सुरक्षित फैसला किया है। लगता ऐसा भी है कि विवेक अकेले रहकर अपने दम पर कुछ करके दिखाना चाहते हैं।
Comments
Start the conversation
Become a member of New India Abroad to start commenting.
Sign Up Now
Already have an account? Login