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राष्ट्रपति चुनाव : बहस के बाद...

जब मुकाबला नजदीक का है या होगा तो उसमें वे मतदाता निर्णायक होंगे या हो सकते हैं जो बहस देखने के बाद और फिलहाल अनिर्णय की स्थिति में हैं। यानी बाद में मन बनाएंगे।

डेमोक्रेटिक राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार कमला और रिपब्लिकन उम्मीदवार पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प 10 सितंबर की बहस के दौरान। / Reuters/Brian Snyder

राष्ट्रपति पद के लिए 10 सितंबर को हैरिस-ट्रम्प के बीच हुई बहस (डिबेट) ने कई अनुमानों को आधार दिया है, कई संभावनाओं पर मुहर लगाई है और साथ ही कुछ बातें स्पष्ट कर दी हैं। एक तो यह कि कड़े मुकाबले में हैरिस फिलहाल लाभ की स्थिति में दिख रही हैं। हैरिस की यह स्थिति मजबूत होने की संभवना है। दूसरी बात भी पहली बात से ही जुड़ी है। वह यह कि जब मुकाबला नजदीक का है या होगा तो उसमें वे मतदाता निर्णायक होंगे या हो सकते हैं जो बहस देखने के बाद और फिलहाल अनिर्णय की स्थिति में हैं। यानी बाद में मन बनाएंगे। लेकिन बहस देखने के बाद कइयों ने अपना मन बनाया होगा और समय नजदीक आने पर मतदाताओं का एक वर्ग ऐसा भी हो जाएगा तो बहती हवाओं के साथ होगा। चुनाव के लिहाज से भी आमतौर पर हवाओं का रुख और वेग की गति बहुत कुछ बता देती है लेकिन कई बार हवाएं धोखा दे जाती हैं। चुनाव में तो सब संभव है। वैसे दोनों प्रमुख उम्मीदवारों के बीच एक और बहस अगले माह प्रस्तावित थी, लेकिन ट्रम्प उससे पीछे हट गये हैं।  

जहां तक बहस की बात है तो मोटे तौर पर हैरिस का प्रदर्शन बेहतर रहा। शायद इसका एक कारण यह था कि वे पहले से ही अपने प्रतिद्वंद्वी के खिलाफ आक्रामक रुख अख्तियार करने का मन बनाकर आई थीं। पहले-दूसरे सवालों में घिरने और पिछड़ने के बाद ट्रम्प हैरिस के 'पाश' से मुक्त नहीं हो सके। फंसावट की परिणति यह हुई कि ट्रम्प व्यक्तिगत आक्षेपों पर उतर आये। जब आप सवालों के जवाब मजबूत दलीलों से नहीं दे पाते तो व्यक्तिगत आक्षेप आपकी हालत बयां कर जाते हैं, आपकी कमजोरी जाहिर करते हैं। यही ट्रम्प के साथ हुआ। डेमोक्रेटिक पार्टी के पहले राष्ट्रपति उम्मीदवार यानी बाइडेन पर बहस में भारी पड़ने वाले ट्रम्प भारतवंशी कमला के सामने इसी कारण हल्के दिखे। दूसरी ओर इस बहस में बढ़त के साथ हैरिस के हौसले बुलंद हुए होंगे, ऐसा लाजमी है। बल्कि इस बहस ने दूसरी बहस से लिए उनमें उत्साह और आत्मविश्वास का संचार किया होगा। विजेता बनने की चाह प्रबल की होगी। इस बहस ने उस आशंका को भी निर्मूल साबित कर दिया कि महिला होने के नाते हैरिस को रक्षात्मक रुख अपनाना पड़ सकता है। बल्कि उलटा हुआ। हालांकि बहस के लिए ट्रम्प भी प्रशिक्षण लेकर आये थे किंतु लगता है हैरिस को 'पढ़ाने वाले' चतुर निकले। यकीनन उन्होंने हैरिस को आक्रामकता के साथ सूझबूझ और आत्मविश्वास का सबक सिखाया होगा।  

बहरहाल, प्रमुख मीडिया प्रतिष्ठानों ने भले ही हैरिस को बहस में बढ़त दिखाई हो लेकिन दो बातें अहम होंगी। पहली यही कि मुकाबला बराबरी या कांटे पर आ गया है और दूसरी वे मतदाता जो अभी अनिर्णय में हैं, अहम साबित होंगे। बतौर उम्मीदवार हैरिस और ट्रम्प को जो कुछ कहना था, मतदाताओं को अपनी नीतियों को लेकर बताना था, वह सब सामने आ चुका है। अब शायद नए मुद्दे भी न ही उठें। किसी ओर से नई नीति का खुलासा भी शायद ही हो। अब सब कुछ मतदाताओं के हवाले है। बहस के बाद बाजार में कोई बड़ी उठा-पटक नहीं हुई जो अपने आप में एक संकेत है।

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