अंतरराष्ट्रीय निवेश प्रवास सलाहकार फर्म हेनले एंड पार्टनर्स की एक हालिया रिपोर्ट को भारत के तथाकथित राष्ट्रवादी 'अच्छा' और आशावादी बता रहे हैं। उनको यह रिपोर्ट फील गुड का अहसास करा रही है। इसलिए क्योंकि इसमें भारत से पलायन करने वाले करोड़पतियों की संख्या पिछले साल के मुकाबले अनुमानित रूप से कम दर्शायी गई है। रिपोर्ट के अनुसार पिछले साल भारत से 5100 करोड़पति पलायन कर गये थे और इस बार 4300 देश छोड़ सकते हैं। यानी अगर आंकड़ों के ही हिसाब से गणित लगाएं तो पिछली साल से 800 कम। यह अनुमान है, इसमें ऊपर नीचे हो सकता है।
तो तथातथित राष्ट्रवादी इसलिए खुश हैं क्योकि पलायन में यह संभावित कमी इसलिए आई है क्योंकि अब भारत की छवि बदल गई है। भारत अंतरराष्ट्रीय पटल पर चमक रहा है। भारत की धाक बढ़ी है। लोगों का सरकार और शासन को लेकर रुख बदला है। अविश्वास ...विश्वास में तब्दील हो रहा है। अब भारत में समृद्धि और तरक्की की संभावनाओं के द्वार खुल गए हैं और कारोबारी जमात निवेश को लेकर आश्वस्त होती जा रही है। इसीलिए पलायन करने वाले करोड़पतियों की संख्या में कमी आने जा रही है। बकौल 'उनके' यह सब इसलिए हुआ क्योंकि बीते 10 साल से और आने वाले पांच साल के लिए देश की कमान एक ऐसे नायक के हाथ रहने वाली है जो सियासत में कीर्तिमान रच रहा है। घर के साथ बाहर भी।
लेकिन यह तो करोड़पतियों की बात है। हर साल देश (भारत) छोड़ने वालों की संख्या लाखों में है। साल 2014 में नरेन्द्र मोदी ने बतौर प्रधानमंत्री देश की बागडोर अपने हाथ में ली और बदलाव का दौर शुरू हुआ। वर्ष 2015 में भारतीय नागरिकता छोड़ने वालों की संख्या 1,31,489 थी। बीते 10 साल में भी यह आंकड़ा कम ज्यादा हुआ पर अंतत: बढ़ता गया। पिछले साल सरकार ने बताया था कि 2022 में सवा दो लाख से ज्यादा भारतीयों ने अपना देश छोड़ कहीं और बसने का फैसला किया। इन लाखों लोगों में अधिकांश विशुद्ध कारोबारी नहीं हैं, अलग तबकों और पेशों से हैं। लिहाजा यह तो तय है कि हर वर्ग के लोग भारत छोड़ रहे हैं। विभिन्न कारणों से। कारण सबके अलग हो सकते हैं लेकिन मंशा बेहतरी ही रही है या रहेगी यह तो तय है।
अब ऐसे में वह दावा कमजोर पड़ जाता है कि बीते 10 साल में ऐसा कोई चमत्कारी परिवर्तन हुआ है जिसने करीब 800 करोड़पतियों को भारत छोड़ने से रोक दिया। इसलिए क्योंकि वर्तमान सरकार यह बात लगातार कहती रही है कि जो काम 70 (करीब) साल में नहीं हुआ वह 10 साल में हो गया। यह सही है कि बीते 10 साल में भारत की छवि और स्थिति में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कुछ बदलाव आया है। लेकिन अगर पलायन के इस ग्राफ में उल्लेखनीय कमी न आकर बढ़ोतरी ही हुई है तो इसका मतलब साफ है कि देश छोड़ने का फैसला केवल सियासी दृष्टिकोण पर आधारित नहीं है।
दरअसल, पलायन एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। यह मजबूरी में तो होता ही है 'मजबूती' में भी होता है। यानी समृद्धि में। जैसा कि हम देख रहे हैं। इसका मूल उद्देश्य अपनी सामाजिक, पारिवारिक और आर्थिक बेहतरी से होता है। हर इनसान आगे बढ़ना चाहता है। कारोबारी भी अपने कारोबार को आगे बढ़ाना चाहता है। सब लोग जिंदगी में तरक्की हासिल करना चाहते हैं। और पलायन केवल भारत का ही सच नहीं है। यह वैश्विक है। चीन और ब्रिटेन से भी लोग पलायन करते हैं। करोड़पतियों के पलायन के मामले में भारत का नंबर इन दोनों देशों के बाद आने की बात कही जा रही है।
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