अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन द्वारा नेशनल इंस्टीट्यूट्स ऑफ हेल्थ (NIH) के शोधकर्ताओं के अनुदान में कटौती पर भारतीय मूल के अमेरिकी सांसद राजा कृष्णमूर्ति और उनके डेमोक्रेटिक सहयोगियों ने चिंता जताई है।
एनआईएच के कार्यवाहक निदेशक ब्रायन मेमोली ने एक आदेश जारी करके इन खर्चों की रीइंबर्समेंट को 15 प्रतिशत तक सीमित कर दिया है। इसका मतलब है कि शोधकर्ताओं और संस्थानों को इन खर्चों के लिए अब कम रकम मिलेगी। इस कटौती से शोध से जुड़े अप्रत्यक्ष खर्चों जैसे लैब की मेंटिनेंस, बिजली बिल और सुरक्षा सेवा आदि पर असर पड़ सकता है।
सांसद राजा कृष्णमूर्ति और अन्य डेमोक्रेटिक नेताओं ने एनआईएच को लेटर लिखकर इस फैसले को गलत बताया है। उन्होंने कहना है कि इससे पूरे देश में चल रहे शोध कार्यों पर बुरा असर पड़ेगा। इस कटौती से शोधकर्ताओं की नई खोज करने की क्षमता कम हो जाएगी। यह फैसला उनके जरूरी खर्चों को प्रभावित करेगा, जो शोध के लिए जरूरी है।
ट्रंप सरकार के इस फैसले की शोध संस्थानों, मेडिकल कॉलेजों और अस्पतालों ने भी आलोचना की है। ये संस्थान शोध कार्यक्रमों को चलाने के लिए NIH की फंडिंग पर निर्भर हैं। उनका कहना है कि अगर उन्हें इन खर्चों के लिए रकम नहीं मिली तो कई लैब बंद करनी पड़ सकती हैं, कर्मचारियों की छंटनी हो सकती है और शोध कार्यक्रमों को रोकना भी पड़ सकता है।
बोस्टन के एक अदालत ने कुछ दिन पहले इस फैसले को रोकने के आदेश जारी किए हैं। अदालत ने एनआईएच को इन कटौतियों को लागू करने से रोकते हुए एक अस्थायी आदेश जारी किया है। ये आदेश इस मामले की कानूनी कार्यवाही पूरी न होने तक लागू रहेगा।
राजा कृष्णमूर्ति और उनके सहयोगियों ने मांग की है कि एनआईएच इस कटौती आदेश को वापस ले। ये भी बताए कि उन्होंने इसके प्रभाव का आकलन कैसे किया। उनका कहना है कि यह फैसला बीमारियों का इलाज खोजने के प्रयासों को कमजोर कर देगा और अमेरिका की शोध क्षमता को नुकसान पहुंचाएगा।
Comments
Start the conversation
Become a member of New India Abroad to start commenting.
Sign Up Now
Already have an account? Login