ब्रिटिश भारतीय लेखक सलमान रुश्दी की विवादास्पद किताब 36 साल बैन के बाद भारत में ब्रिक्री के लिए उपलब्ध है। उस वक्त तत्कालीन राजीव गांधी सरकार में इस किताब को मुसलमानों के विरोध के बाद भारत में बैन कर दिया गया था। प्रतिबंध हटाने का निर्णय दिल्ली हाई कोर्ट ने नवंबर महीने में एक फैसले के बाद लिया था। अदालत ने प्रतिबंध को अमान्य करार दिया था, क्योंकि सरकार प्रतिबंध लगाने वाली मूल अधिसूचना पेश करने में विफल रही। विवादास्पद किताब की 36 साल बाद भारत में बिक्री शुरू होने के बाद सोशल मीडिया पर बहस शुरू हो गई है। कई लोगों ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और धार्मिक भावनाओं पर ध्रुवीकरणकारी पर बहस शुरू कर दी है।
किताब The Satanic Verses पर से बैन हटने पर साहित्य जगत के लोगों ने फैसले का स्वागत किया है और इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की जीत बताया। पेंगुइन इंडिया की प्रधान संपादक मानसी सुब्रमण्यम ने एक्स पर अपनी खुशी जाहिर करते हुए रुश्दी के हवाले से कहा, "'भाषा साहस है- एक विचार को कल्पना करने, उसे बोलने और ऐसा करके उसे सत्य बनाने की क्षमता।'
लेखक और पत्रकार असीम छाबड़ा ने उपन्यास के इतिहास से अपने व्यक्तिगत संबंध को साझा करते हुए ट्वीट किया, "1989 में, मैं न्यूयॉर्क से भारत में एक कॉपी छिपाकर लाया था, ताकि मेरी माँ इसे पढ़ सकें। आखिरकार The Satanic Verses भारत में कानूनी रूप से उपलब्ध है। सलमान रुश्दी को बहुत-बहुत बधाई!"
मीडिया में कुछ लोगों ने किताब पर मूल प्रतिबंध और इसे फिर से पेश करने के जोखिमों से जुड़े विवाद को उजागर किया। नेटवर्क 18 के पत्रकार राहुल शिवशंकर ने उपन्यास को बढ़ावा देने में पुस्तक विक्रेताओं की हिम्मत पर टिप्पणी की,
“प्रमुख पुस्तक विक्रेता Bahrisons books ने सलमान रुश्दी की द सैटेनिक वर्सेज को प्रदर्शित करके भाग्य को ललचाया है, जबकि मुस्लिम कट्टरपंथियों ने इसकी बिक्री को ईशनिंदा घोषित करने वाला फतवा जारी किया था। तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने घुटने टेक दिए थे और भारत में इसकी बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया। दशकों तक छिपकर रहने वाले रुश्दी को कुछ साल पहले लगभग चाकू घोंपकर मार डालने की कोशिश की गई। पुस्तक के जापानी अनुवादक हितोरी इगाराशी की भी हत्या कर दी गई थी।”
हालांकि, किताब की भारत में वापसी से हर कोई खुश नहीं है। कई मुस्लिम संगठनों और नेताओं ने नाराजगी जाहिर की है और प्रतिबंध को फिर से लागू करने की मांग की है। जमीयत उलमा-ए-हिंद के मौलाना काब रशीदी ने तर्क दिया, "संविधान द्वारा गारंटीकृत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की आड़ में धार्मिक भावनाओं को आहत नहीं किया जा सकता है।" इसी तरह, ऑल इंडिया मुस्लिम जमात के मौलाना मुफ़्ती शहाबुद्दीन रज़वी ने इस फ़ैसले की आलोचना करते हुए कहा, "यह किताब इस्लाम, पैगम्बर मुहम्मद और इस्लामी हस्तियों का अपमान करती है। इसकी बिक्री की अनुमति देने से देश का सौहार्द बिगड़ेगा।"
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