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भारतीय अमेरिकी विद्वान और यूनिवर्सिटी ऑफ लुइसविल के केमिकल इंजीनियरिंग के प्रोफेसर एमेरिटस प्रदीप देशपांडे ने हाल ही में डार्टमाउथ कॉलेज के शांति हिंदू स्टूडेंट्स एसोसिएशन को संबोधित किया। इस प्रेरक प्रस्तुति में उन्होंने विज्ञान और प्राचीन भारतीय दर्शन को जोड़ते हुए छात्रों को ब्रह्मांड की उत्पत्ति, जीवन के विकास और भावनात्मक उत्कृष्टता के महत्व की यात्रा पर ले गए।
देशपांडे ने पुराणों की कथाओं और आधुनिक वैज्ञानिक सिद्धांतों को जोड़ते हुए समझाया कि सृष्टि की रचना के लिए चेतना (शिव) और ऊर्जा (शक्ति) दोनों अनिवार्य हैं। उन्होंने विज्ञान लेखिका अमांडा गेफ्टर और भौतिक वैज्ञानिक डॉ. जिम कोवाल के कार्यों का हवाला देते हुए कहा कि ब्रह्मांड की उत्पत्ति शून्यता से हुई, जो कि वास्तव में अविभाजित चेतना है — एक विचार जो वेदांत दर्शन में भी मिलता है।
उन्होंने बताया कि जहां विकासवाद शारीरिक परिवर्तन की व्याख्या करता है, वहीं भारतीय दर्शन जैसे सांख्य दर्शन और भगवद गीता की शिक्षाएं समाजों के उत्थान और पतन की दिशा दिखाती हैं। उनके अनुसार, सृष्टि में पांच तत्व और तीन गुण होते हैं – सत्त्व (सत्य और संतुलन), रजस (महत्वाकांक्षा और इच्छा) और तमस (नकारात्मकता और जड़ता)। समाजों का उत्थान या पतन इसी पर निर्भर करता है कि कौन सा गुण प्रबल होता है।
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देशपांडे ने कहा कि मानव भावनाएं, जो मापी जा सकती हैं, इन्हीं गुणों से जुड़ी होती हैं। सहानुभूति और करुणा जैसी सकारात्मक भावनाओं को बढ़ाना और क्रोध और भय जैसी नकारात्मक भावनाओं को कम करना आंतरिक यानी भावनात्मक उत्कृष्टता का आधार है।
उन्होंने तिब्बती भिक्षुओं पर किए गए शोध, विशेष रूप से उस अवस्था का उल्लेख किया, जिसमें साधक मृत्यु के बाद भी शारीरिक रूप से संरक्षित रहते हैं। यह आंतरिक ऊर्जा पर उनकी अद्भुत पकड़ को दर्शाता है। उन्होंने कहा कि भावनात्मक उत्कृष्टता से स्वास्थ्य, रचनात्मकता, प्रदर्शन और लोकतंत्र तक में सुधार आता है।
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