भारतीय मूल के महामारी विशेषज्ञ डॉ. सुनील पारिख और उनकी टीम ने मलेरिया के लिए नॉनइन्वेसिव टेस्ट का एक नया तरीका खोजा है। दावा है कि इससे मलेरिया का पता लगाने के तरीके में काफी सुधार कर सकता है। खासकर कम आय वाले देशों में ये तरीका काफी फायदेमंद साबित हो सकता है।
नेचर कम्युनिकेशंस में प्रकाशित शोध में साइटोफोन नामक एक डिवाइस पेश किया गया है जो शरीर से खून निकाले बिना ही मलेरिया का पता लगाने में सक्षम है। मलेरिया का पता लगाने के मौजूदा तरीकों में सूई के जरिए शरीर से खून निकालकर परीक्षण किया जाता है। इस टेस्ट के लिए खास उपकरणों की आवश्यकता होती है। अक्सर दूरदराज के या सीमित संसाधन वाले इलाकों में ये उपलब्ध नहीं हो पाते हैं। इसकी वजह से मलेरिया का टेस्ट करने में खासी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। सही पहचान न हो पाने के लिए कई मरीजों को समय पर इलाज नहीं मिल पाता।
वहीं, साइटोफोन में लेजर और अल्ट्रासाउंड तकनीक के जरिए खून में मौजूद मलेरिया संक्रमित कोशिकाओं का पता लगाया जाता है। कैमरून में किए गए परीक्षण में इस डिवाइस ने 90 प्रतिशत सेंसिविटी और 69 प्रतिशत विशिष्टता का प्रदर्शन किया। ये मौजूदा तरीकों की तुलना में काफी बेहतर है।
इस डिवाइस को तैयार करने वाले शोध दल में अरकंसास और कैमरून विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक भी शामिल हैं। उन्होंने पाया कि यह डिवाइस मलेरिया के सबसे आम परजीवी प्लास्मोडियम फाल्सीपेरम के अलावा अन्य प्रजातियों का पता लगाने में प्रभावी है।
बता दें कि मलेरिया पूरी दुनिया में एक प्रमुख स्वास्थ्य समस्या है। हर साल इसकी वजह से छह लाख से अधिक मौतें होती हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 2030 तक मलेरिया के मामलों को 90 प्रतिशत तक कम करने का लक्ष्य रखा है। इस दिशा में साइटोफोन एक तेज, सुरक्षित और सुलभ उपकरण के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
डॉ सुनील पारिख पिछले 20 वर्षों से अफ्रीका में मलेरिया पर अनुसंधान कर रहे हैं। वह बुर्किना फासो में मलेरिया रिसर्च (आईसीईएमआर) के इंटरनेशनल सेंटर ऑफ एक्सीलेंस के को-प्रिंसिपल इन्वेस्टिगेटर भी हैं।
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