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90,000 डॉलर की स्कॉलरशिप, सात भारतीय-अमेरिकी सोरोस फेलो 2025 में चमके

अमेरिका में उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे सात भारतीय-अमेरिकियों को 'पॉल एंड डेजी सोरोस फेलोशिप 2025' से सम्मानित किया गया है। इस प्रतिष्ठित फेलोशिप में अर्थशास्त्री से लेकर चिकित्सा क्षेत्र के विशेषज्ञ तक शामिल हैं, जिन्होंने अपने क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान दिया है।

भारतीय मूल के इन सात युवा अमेरिकियों को 'पॉल और डेजी सोरोस फेलो फॉर न्यू अमेरिकन्स 2025' के लिए चुना गया है। / The Paul & Daisy Soros

भारतीय मूल के सात युवा अमेरिकियों को 'पॉल और डेजी सोरोस फेलो फॉर न्यू अमेरिकन्स 2025' के लिए चुना गया है। इस साल 2,600 से अधिक लोगों ने आवेदन किया था। इन्हीं में से इन सात लोगों को चुना गया है। चुने गए लोगों में अर्थशास्त्री, जन स्वास्थ्य के लिए काम करने वाले, कानून के जानकार और कहानीकार शामिल हैं। ये सभी पर अपनी भारतीय विरासत से गहराई से जुड़े हैं। हर फेलो को दो साल में 90,000 डॉलर तक की आर्थिक मदद मिलेगी। 

इनमें से एक हैं अर्जुन रमानी, जिनके माता-पिता तमिलनाडु से अप्रवासी के तौर पर आए थे। वह इंडियाना के वेस्ट लाफायेट में बड़े हुए। अब वह MIT में अर्थशास्त्र में PhD कर रहे हैं। अर्जुन का सफर स्टैनफोर्ड की क्लासरूम से लेकर व्हाइट हाउस, घाना और 'द इकोनॉमिस्ट' के संपादकीय विभाग तक रहा है। उनके प्रोफाइल में लिखा है, 'मुझे उम्मीद है कि मेरा शोध ऐसी नीतियों और कारोबारी तरीकों के बारे में जानकारी दे पाएगा, जिनसे बड़े पैमाने पर आर्थिक विकास हो।' एक पत्रकार के तौर पर अर्जुन ने AI के बढ़ते चलन और भारत की अर्थव्यवस्था पर रिपोर्टिंग की है। 2024 में उन्हें यूके के 'फाइनेंशियल जर्नलिस्ट ऑफ द ईयर' के फाइनल में पहुंचने का सम्मान भी मिला था।

देविका रंजन महाराष्ट्र के नासिक में जन्मी थीं और बाद में अमेरिका आ गईं। वह थिएटर आर्टिस्ट भी हैं। वह नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी में परफॉर्मेंस स्टडीज में PhD कर रही हैं। देविका का काम प्रवास और न्याय पर केंद्रित है। उनके काम की तारीफ खुद मेगन मार्कल ने भी की है। मेगन ने कहा है कि, 'देविका अपने सामुदायिक कार्यों में खुशी और न्याय का भाव भर देती हैं। प्रदर्शन कला का इस्तेमाल देखभाल वाले समुदाय बनाने के लिए करती हैं।' शरणार्थियों और अप्रवासी किशोरों के साथ उनके प्रोजेक्ट में परिवार का अलग होना, मजदूरी और देश निकाला जैसे मुद्दे शामिल हैं।

इशिका कौल कश्मीरी अप्रवासियों की बेटी हैं। वह येल यूनिवर्सिटी में कानून की पढ़ाई (JD) शुरू करने वाली हैं। वह पहले ट्रूमैन स्कॉलर भी रह चुकी हैं। इशिका ने व्हाइट हाउस और अमेरिकी ट्रेजरी में आर्थिक नीति से जुड़े कामों में अपनी पहचान बनाई है। गरीब परिवारों के लिए उनकी वकालत हार्वर्ड लीगल सर्विसेज सेंटर से शुरू हुई थी। यहां उन्होंने अपनी टैक्स सर्टिफिकेशन का इस्तेमाल करके गरीब क्लाइंट्स के लिए हजारों डॉलर के लाभ हासिल किए। उनके प्रयासों से सिंगल मदर्स प्रोजेक्ट शुरू हुआ, जो हिंसा की शिकार महिलाओं की मदद करता है।

जुपनीत सिंह कैलिफोर्निया की रहने वाली सिख-अमेरिकी हैं। वह दवा, सेना और जन स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम करती हैं। वह हार्वर्ड मेडिकल स्कूल के हेल्थ साइंसेज टेक्नोलॉजी प्रोग्राम से MD की पढ़ाई कर रही हैं। वह पहली महिला एयरफोर्स ROTC रोड्स स्कॉलर रह चुकी हैं। उनके प्रोफाइल में बताया गया है, 'वह सिख सैन्य परंपरा को आगे बढ़ा रही हैं।' जुपनीत ने पंजाब के नशा मुक्ति केंद्रों और कैलिफोर्निया के ट्रॉमा सेंटरों में काम किया है। वह एयरफोर्स और अमेरिकी पब्लिक हेल्थ कमीशन्ड कॉर्प्स, दोनों में अपनी सेवाएं देना चाहती हैं।

श्रीकर मंटेना भारतीय प्रवासियों के बेटे हैं। वह नॉर्थ कैरोलिना में पले-बढ़े है। हार्वर्ड और MIT से संयुक्त MD/PhD कर रहे श्रीकर की ख्वाहिश है कि वे 'दया और तकनीक को मिलाकर' सबके लिए बराबर स्वास्थ्य सेवाएं तैयार करें। वे पहले ही 20 से ज्यादा वैज्ञानिक शोध पत्रों के सह-लेखक बन चुके हैं। उन्होंने ग्लोबल अलायंस फॉर मेडिकल इनोवेशन की शुरुआत की, जो कम सुविधा वाले लोगों के लिए कॉर्नियल बीमारी डिटेक्टर जैसे उपकरण बनाता है।

स्वाति आर. श्रीनिवासन ओहायो में रहने वाले भारतीय वैज्ञानिकों की बेटी हैं। उनके लिए जन स्वास्थ्य निजी मसला बन गया। हार्वर्ड से ग्रेजुएट होने के बाद अब वे उसी यूनिवर्सिटी से पॉपुलेशन हेल्थ साइंसेज में पीएचडी कर रही हैं। ओहायो में बढ़ते ड्रग ओवरडोज संकट को देखकर उन्होंने न्यूरोसाइंस से सामाजिक अध्ययन की ओर रुख किया। उन्होंने हार्वर्ड में HCOPES की भी शुरुआत की, जो स्टूडेंट्स की अगुआई में ड्रग ओवरडोज रोकने की पहल है।

वैथिश वेलाझहान कंसास के मैनहट्टन में पैदा हुए और भारत में पले-बढ़े। मेडिसिन की पढ़ाई के लिए अमेरिका आए। कंसास स्टेट यूनिवर्सिटी में उन्होंने शोध के लिए जुनून खोजा और कैंसर रोकथाम पर एक स्वतंत्र अध्ययन का नेतृत्व किया। इससे उन्हें पहली बार लेखक के तौर पर प्रकाशन और बैरी गोल्डवॉटर स्कॉलरशिप मिली। बाद में उन्होंने यूनिवर्सिटी ऑफ कैंब्रिज से गेट्स कैंब्रिज स्कॉलर के तौर पर पीएचडी की, जहां उन्होंने फंगल GPCRs की हाई-रेजोल्यूशन संरचनाओं को समझने की नई तकनीकों की खोज की। इससे उन्हें दो बार नेचर पत्रिका में पहली बार लेखक के तौर पर प्रकाशन और मैक्स पेरुत्ज स्टूडेंट प्राइज मिला।

फिलहाल वह स्टैनफोर्ड में MD स्टूडेंट हैं और नाइट-हेंनेसी स्कॉलर के तौर पर वे न्यूरो-इम्यूनो-ऑन्कोलॉजी शोध का नेतृत्व करते हैं। वैश्विक स्वास्थ्य समानता के लिए काम करते हैं। उन्होंने पेरू और इक्वाडोर में MEDLIFE के साथ स्वयंसेवा की और भारत में We Save की शुरुआत की, जो डॉक्टरों को कम सुविधा वाले समुदायों से जोड़ता है।

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