बांग्लादेश में हिंदुओं और अन्य धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा को देखते हुए ह्यूस्टन स्थित सेवा इंटरनेशनल ने इमरजेंसी फंडरेजिंग अभियान शुरू किया है। संगठन ने फूड किट और अन्य जरूरी चीजों की सप्लाई के लिए अपने इमजेंसी फंड से तुरंत 10,000 डॉलर भी जारी किए हैं।
सेवा इंटरनेशनल के प्रेसिडेंट अरुण कनकनी ने बयान में कहा कि बांग्लादेश में हिंसा पीड़ितों को मानवीय मदद की जरूरत है। पीड़ितों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। बताया गया है कि कुछ अस्पताल पीड़ितों का इलाज करने से भी मना कर दे रहे हैं। पुलिस परिवारों की सुरक्षा करने से इनकार कर रही है।
उन्होंने आगे कहा कि ऐसे हालात में दुनिया को इन असहाय लोगों की मदद के लिए एक साथ आने की जरूरत है। हम अमेरिका की फेडरल और राज्य सरकारों से अपील करते हैं कि वे बांग्लादेशी अल्पसंख्यकों को निशाना बनाकर की जा रही हिंसा की निंदा करें। हमारी अमेरिकी विदेश मंत्रालय से अपील है कि वे अपने प्रभाव का इस्तेमाल करके बांग्लादेश की अंतरिम सरकार से कानून व्यवस्था बहाल करवाएं।
सेवा इंटरनेशनल के मुताबिक, एक बांग्लादेशी नागरिक ने वहां के हालात के बारे में बताते हुए कहा कि 1946 के बाद से बांग्लादेशी हिंदू समुदाय ने कई बार अकल्पनीय हिंसा और अत्याचार का सामना किया है। इस बार भी हालात कुछ अलग नहीं हैं। हर बार की तरह हमें न तो सपोर्ट मिल रहा है न ही न्याय।
उन्होंने आगे बताया कि स्थानीय दुकानदार हमारे समुदाय के सदस्यों को भोजन नहीं बेच रहे हैं। स्थानीय अस्पतालों में हमारे घायलों लोगों का इलाज नहीं किया जा रहा है। ऐसे में कौन हमारे लिए खड़ा होगा? कौन हमारी मदद करेगा?
सेवा इंटरनेशनल ने कहा कि बांग्लादेश में 5 अगस्त को लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित शेख हसीना सरकार के तख्तापलट के बाद चरमपंथी लोग धार्मिक अल्पसंख्यक समुदायों को निशाना बना रहे हैं, जिनमें मुख्य रूप से स्वदेशी हिंदू आबादी है। तमाम मंदिरों को जला दिया गया है, घर तोड़ दिए गए हैं। महिलाओं और लड़कियों के अपहरण, बलात्कार और छेड़छाड़ के बारे में रोजाना कई खबरें आ रही हैं।
सेवा इंटरनेशनल हिंदू आस्था आधारित चैरिटेबल गैर लाभकारी संस्था है जो आपदा राहत, शिक्षा एवं विकास आदि कार्यों में सक्रिय है। सेवा इंटरनेशनल के अमेरिका में 43 चैप्टर हैं, जो जाति, रंग, धर्म, लिंग, आयु, विकलांगता या राष्ट्रीय मूल की परवाह किए बिना लोगों की मदद करे हैं।
ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT
Comments
Start the conversation
Become a member of New India Abroad to start commenting.
Sign Up Now
Already have an account? Login