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अमेरिका में 'अपरिहार्य आपदा' का साया

इन हालात में भारत के प्रधानमंत्री मोदी से ट्रम्प की मित्रता प्रवासी भारतीयों को उम्मीद तो बंधाती है लेकिन नवनिर्वाचित राष्ट्रपति की स्थानीय प्राथमिकताओं के आगे दम तोड़ देती है।

सांकेतिक तस्वीर / CANVA

नया निजाम विधिवत रूप में आने से पहले ही अमेरिका में 'अपरिहार्य आपदा' का साया है। अमेरिका में बसे लाखों लोगों को निर्वासन का भय दिन-रात सता रहा है। ये वे लोग हैं जो अमेरिका में बिना दस्तावेज रह रहे हैं, काम कर रहे हैं। यानी अवैध प्रवासी हैं। आंकड़े बताते हैं कि अमेरिका में कोई सवा करोड़ लोग बिना वैध दस्तावेजों के रह रहे हैं। इनमें से करीब 70 लाख काम करते हैं। इस जमात को लेकर नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प कितना कठोर रुख रखते हैं यह इन लोगों के साथ दुनिया जानती है। इस वर्ग को लेकर नामित राष्ट्रपति के विचार खुले तौर पर नफरत भरे हैं। लेकिन बात अगर विचारों तक ही होती तो खैर मनाई जा सकती थी। चुनाव के नतीजे आते ही साफ हो गया कि अब अमेरिका में अवैध प्रवासियों की खैर नहीं है। चुनाव से पहले ही रिपब्लिकन उम्मीदवार ट्रम्प ने ऐलान कर दिया था कि अगर वे सत्ता में लौटे तो अमेरिका से सामूहिक निर्वासन होगा। ऐसा उन्होंने कई मंचों से कहा। अब जबकि ट्रम्प सत्ता में आ चुके हैं और जनवरी में शपथ के बाद बाकायदा बागडोर संभाल लेंगे तो वे कह चुके हैं कि अगर उनके इस फैसले को लागू करने में कोई दिक्कत आई तो वे सेना का इस्तेमाल करने से भी नहीं हिचकेंगे। यानी आपदा तय है... और अपरिहार्य है।    

यह सही है कि लाखों-लाख लोगों को निकालना और शायद बलपूर्वक निकालना आसान नहीं है। भय के वातावरण में ऐसा करने से देश में अराजकता के हालात पैदा हो सकते हैं। फिर इस काम के लिए ढेर सारे साधन-संसाधनों की दरकार होगी। मामला इतना विकट और बड़ा है कि इसमें लंबे समय तक पूरी सरकारी मशीनरी झोंकनी पड़ेगी। फिर निर्वासन के तकनीकी पहलू भी जटिल और समय लेने वाले होते हैं। बताते हैं कि निर्वासन पर फैसला लेने में औसतन पांच साल लग जाते हैं। लेकिन पांच साल एक सामान्य प्रक्रिया के तहत लगते होंगे। जाहिर है कि बलपूर्वक या भय दर्शाकर दुनिया का सबसे बड़ा निर्वासन कराने के लिए वह प्रक्रिया तो नहीं अपनाई जाएगी जो सामान्य तौर पर अपनाई जाती है। अगर ट्रम्प कह रहे हैं कि सामूहिक निर्वासन के लिए वे सेना का इस्तेमाल भी कर सकते हैं तो इसका मतलब है कि उनके दिमाग में कोई न कोई योजना तो होगी। उसका खुलासा तो नहीं होगा लेकिन वह अमल में आती अवश्य दिखेगी। तो इस माहौल में दुनिया के उन तमाम लोगों के मन-मस्तिष्क में भय और आशंकाएं हैं जो जैसे-तैसे अमेरिका आ पहुंचे हैं और गुजर-बसर कर रहे हैं। लाखों की इस जमात में भारतीयों की संख्या भी कम न होगी। वे भी सहमे हुए हैं। इन हालात में भारत के प्रधानमंत्री मोदी से ट्रम्प की मित्रता प्रवासी भारतीयों को उम्मीद तो बंधाती है लेकिन नवनिर्वाचित राष्ट्रपति की स्थानीय प्राथमिकताओं के आगे दम तोड़ देती है।

डर का माहौल केवल अवैध आप्रवासियों के मन में ही नहीं है। भय उन लोगों के मन में भी है जो अमेरिका के स्थाई निवासी भले न हों लेकिन वैध आधार पर यहां रहकर काम कर रहे हैं। लेकिन उस 'ठहराव' की एक सीमा है। समय-सीमा समाप्त होते ही उनके सामने भी आत्म-निर्वासन या प्रशासनिक निर्वासन का भूत खड़ा होगा। इसलिए क्योंकि लोगों को लगता है कि ट्रम्प की नीतियां हर तरीके से प्रवासियों का 'बोझ' कम करने वाली होंगी। ट्रम्प के सत्ता में आने से उन नये लोगों और बच्चों की हसरतों पर भी वज्रपात हुआ है जो अमेरिका आकर पढ़ना, काम करना और फिर बसना चाहते हैं। आपदा की आशंका में भारतीय भी कम नहीं।

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