'ज्ञानी' के नाम से चर्चित नरंजन सिंह ग्रेवाल 1950 में जब स्वतंत्र भारत के बाहर किसी राजनीतिक कार्यालय के लिए निर्वाचित होने वाले पहले भारतीय बने थे, तब बहुत से लोगों ने कल्पना भी नहीं की होगी कि अगले 75 वर्षों में भारतीय मूल के लोग कई देशों के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति जैसे अहम पदों पर भी बैठेंगे। इसी क्रम में अब ऑस्ट्रिया में रविवार को जब संसदीय चुनाव होंगे, तब एक भारतवंशी सिख गुरदयाल सिंह बाजवा की किस्मत का भी फैसला होगा।
गुरदयाल सिंह की चर्चा इसलिए कि वह ऑस्ट्रिया में चुनाव लड़ने वाले पहले सिख हैं। उनका चुनावी सफर कतई आसान नहीं रहा है। वह नस्लीय अपमान की कंटीली राह को पार करके यहां तक पहुंचे हैं। उन्हें ये नस्लीय हमले पगड़ी पहनने के लिए झेलने पड़ रहे हैं, जो सिख समुदाय की सबसे पवित्र चीजों में से एक मानी जाती है। गेंसरडॉर्फ और ब्रुक एन डेर लीथा से चुनाव लड़ रहे बाजवा ने जब चुनाव प्रचार के दौरान पगड़ी पहने अपनी तस्वीर के पोस्टर लगाए थे, तब उनके खिलाफ कड़ी नस्लीय टिप्पणी करते हुए वीडियो पोस्ट किया गया। इसके बारे में आगे बात करेंगे, लेकिन उससे पहले भारतवंशी सिख समुदाय के कुछ प्रमुख नेताओं के बारे में जान लेते हैं, जिन्होंने विदेशी धरती पर भारतीय मूल्यों के साथ खुद को बुलंदी तक पहुंचाकर समुदाय का नाम रोशन किया है।
नरंजन सिंह ग्रेवाल का जन्म पूर्वी पंजाब में हुआ था। वह 1925 में कनाडा के ब्रिटिश कोलंबिया में आए थे। 1941 में वह फ्रेज़र वैली के एक छोटे से शहर मिशन सिटी में रहने लगे। इसके लगभग एक दशक बाद उन्होंने 1950 में राजनीति में किस्मत आजमाने का फैसला किया। मिशन सिटी के बोर्ड ऑफ कमिश्नर्स के चुनाव में उन्हें छह प्रतिद्वंद्वियों का सामना करना पड़ा। जीतने के बाद उन्होंने एक अखबार में विज्ञापन दिया- ''मिशन सिटी के सभी नागरिकों को धन्यवाद।'' हमारे महान लोकतंत्र के इतिहास में किसी सार्वजनिक पद के लिए पहली बार एक भारतीय का निर्वाचन पूरे समुदाय के लिए गर्व की बात है। यह सब आपकी व्यापक सोच, सहनशीलता और विचारशीलता को दर्शाता है।
ग्रेवाल को दिसंबर 1952 में दो साल के कार्यकाल के लिए एक बार फिर से चुना गया। 1954 में वह कमिश्नरों की सर्वसम्मति से बोर्ड के अध्यक्ष बने। वह भारतीय डायस्पोरा के साथी सदस्यों को भारत से बाहर अपने देशों की राजनीति में सफल होने का रास्ता दिखाने में अग्रणी थे। इसके करीब 40 साल बाद ब्रिटिश कोलंबिया पहला प्रांत बना, जहां भारत के पंजाब के एक प्रवासी उज्जवल दोसांझ को प्रीमियर नियुक्त किया गया।
अक्टूबर 1993 में कनाडाई हाउस ऑफ कॉमन्स में पहुंचे गुरबख्श सिंह मल्ही भारत के बाहर किसी भी संसद के लिए चुने जाने वाले पहले पगड़ीधारी सिख बने। इसके बाद हर्ब धालीवाल कनाडा में फेडरल मिनिस्टर के रूप में सेवाएं देने वाले भारतीय डायस्पोरा के पहले सदस्य बने। हरजीत सिंह सज्जन को कनाडा के रक्षा मंत्री बनने का गौरव मिला। उनके बाद अनीता आनंद कनाडा में डिफेंस पोर्टफोलियो संभालने वाली दक्षिण एशियाई मूल की पहली महिला बनीं। पिछले महीने तनमनजीत सिंह ढेसी को इंग्लैंड में हाउस ऑफ कॉमन्स की रक्षा समिति का अध्यक्ष चुना गया। ये मुकाम हासिल करने वाले वह पहले पगड़ीधारी सिख हैं। इससे पहले भारतीय डायस्पोरा के सदस्य ऋषि सुनक ने ग्रेट ब्रिटेन के प्रधामंत्री बनकर समुदाय का गौरव बढ़ाया था।
कनाडा और ब्रिटेन में भारतीय प्रवासियों के योगदान को आगे बढ़ाते हुए अब समुदाय के सदस्यों ने यूरोप के अन्य हिस्सों में भी अपना राजनीतिक परचम लहराना शुरू कर दिया है। इसी क्रम में ऑस्ट्रिया की नई काउंसिल के लिए गुरदयाल सिंह बाजवा चुनाव लड़ेंगे। ऑस्ट्रिया की सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी (एसपीओ) का प्रतिनिधित्व करते हुए बाजवा गेंसरडॉर्फ और ब्रुक एन डेर लीथा निर्वाचन क्षेत्रों से मैदान में हैं।
गुरदयाल सिंह छह साल की उम्र में अपने माता-पिता के साथ भारत से ऑस्ट्रिया चले गए थे। तीन दशकों से अधिक समय से वह Deutsch Wagram में रह रहे हैं। वह स्थानीय राजनीति और पेशेवर संघों में शामिल रहे हैं। इस वक्त वह वियना चैंबर ऑफ कॉमर्स में परिवहन एवं यातायात प्रभाग के उपाध्यक्ष हैं। इसके अलावा एसपीओ के अध्यक्ष और अपने गृहनगर में पार्षद हैं।
सिख बाजवा का चुनाव लड़ना बहुत से लोगों को हजम नहीं हो रहा है। एक चुनावी पोस्टर के कारण उन्हें नस्लवादी तानों का सामना करना पड़ रहा है। इस पोस्टर में उन्हें पगड़ी पहने दिखाया गया है। एसपीओ के रीजनल मैनेजर वोल्फगैंग ज़वांडर बताते हैं कि गुरदयाल सिंह बाजवा के खिलाफ इंटरनेट पर एक बेहूदा नफरती वीडियो पोस्ट किया गया है जिसमें नस्लवादी टिप्पणियां भी की गई हैं। ऑस्ट्रियाई पुलिस इस मामले की तहकीकात कर रही है। सरकार जांच कर रही है कि क्या किसी के खिलाफ वीडियो पोस्ट करना अपराध हो सकता है या नहीं। इस मामले में बाजवा को उनकी पार्टी से पूरा समर्थन मिल रहा है। बाजवा कहते हैं कि मुझे मेरे काम की बदौलत आंका जाना चाहिए, मेरी शक्ल से नहीं।
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