(राम केलकर)
21 साल पहले अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश के मुख्य राजनीतिक सलाहकार कार्ल रोव ने व्हाइट हाउस में पहली बार दिवाली उत्सव की अध्यक्षता की थी। यह एक ऐतिहासिक घटना थी जिसका अमेरिका के विशाल और जीवंत भारतीय-अमेरिकी समुदाय को लंबे समय से इंतजार था। इस तरह भारतीय हिंदू, सिख, जैन और अन्य समुदाय के सबसे खास धार्मिक उत्सव को आखिरकार अमेरिका में मान्यता मिल गई।
इस बार व्हाइट हाउस में राष्ट्रपति जो बाइडेन और डॉ. जिल बाइडेन दिवाली समारोह का आयोजन करने वाले हैं। इसमें हिस्सा लेने का सौभाग्य मुझे भी मिलेगा। इस तरह वे जॉर्ज बुश के युग में शुरू हुई और ओबामा और ट्रम्प प्रशासन में जारी रही परंपरा को आगे बढ़ाएंगे। व्हाइट हाउस में दिवाली एक सालाना आयोजन बन गया है जिसे दोनों दलों का समर्थन प्राप्त है। इसमें कोई शक नहीं कि आने वाले वर्षों में भी यह उत्सव इसी तरह मनाया जाता रहेगा।
2018 में दिवाली समारोह को लेकर राष्ट्रपति ट्रम्प के ट्वीट में एक मामूली गड़बड़ी हुई थी। उसमें "... संयुक्त राज्य अमेरिका और दुनिया भर में बौद्ध, सिख और जैन..." लिखा गया था और वह दिवाली मनाने वाले सबसे बड़े धार्मिक समूह हिंदुओं को भूल गए थे। ट्वीट को रीपोस्ट किए जाने पर भी यही त्रुटि दोहराई गई। गनीमत रही कि 17 मिनट बाद इस गलती को सुधार लिया गया और ट्रम्प की शैली में इसमें "बहुत बहुत खास लोग" जोड़ा गया।
यह मानना काफी आसान है कि यह आयोजन वैसा ही है, जैसा कि कोई उम्मीद करेगा। लेकिन 70 या 80 के दशक में या उससे पहले इस देश में आए कई भारतीय-अमेरिकियों के लिए
व्हाइट हाउस में दिवाली उत्सव का आयोजन एक ऐसे समुदाय की भावनाओं का सम्मान है जो अब अमेरिकी समाज का एक अभिन्न अंग बन चुका है।
एक समय ऐसा भी आया था जब भारतीय-अमेरिकी समुदाय के सदस्यों को नफरत का शिकार होना पड़ा था। उस वक्त भारतीय संस्कृति और त्योहारों का सार्वजनिक जश्न मनाना आम बात नहीं थी। 70 के दशक के उत्तरार्ध में "डॉट बस्टर" हमले हुए थे। इनमें से कुछ घातक भी थे। जर्सी सिटी जैसी जगहों पर भूरे और दक्षिण एशियाई दिखने वाले किसी भी शख्स को सार्वजनिक उपहास या हमलों का शिकार होना पड़ता था। वो दिन और आज का दिन देखिए। आज अमेरिका में दिवाली का आयोजन होता है या भारतीय स्वतंत्रता दिवस की परेड निकलती है तो उनमें मेयर और अन्य निर्वाचित प्रतिनिधि भी शामिल होते हैं और और पूरे उत्साह के साथ भागीदारी करते हैं।
19वीं शताब्दी में चीनी और जापानी लोगों के आव्रजन के बाद 20वीं सदी की शुरुआत से भारतीयों का अमेरिका आना शुरू हुआ था। शुरुआती भारतीय प्रवासी सिख थे जिन्हें सामान्य रूप से "हिंदू" कहा जाता था। भारत से आने वाले सभी लोगों के लिए यही कहा जाता था। एशियाई लोगों से व्यापक भेदभाव का ही असर था कि गैर-श्वेत विदेशी मूल के लोगों को प्राकृतिककरण द्वारा नागरिकता दिए जाने से इनकार कर दिया जाता था। पंजाब में जन्मे सिख भगत सिंह थिंद जिन्होंने प्रथम विश्व युद्ध में अमेरिकी सेना की सेवा की थी, की नागरिकता 1923 में अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट के फैसले के आधार पर रद्द कर दी गई थी। इसके बाद अगले चार दशकों तक अमेरिका में एशियाई लोगों के आने के दरवाजे बंद हो गए थे।
इसके बाद अक्टूबर 1965 में जाकर हालात बदले। यह संभव हुआ राष्ट्रपति लिंडन बी जॉनसन द्वारा आव्रजन और राष्ट्रीयता अधिनियम पर हस्ताक्षर के कारण, जिसने अमेरिका में आप्रवासियों के प्रोफाइल को पूरी तरह बदल दिया। इसी का नतीजा है कि व्हाइट हाउस में अब दिवाली का पर्व भी धूमधाम से मनाया जाता है।
1980 में जब मैं अमेरिका आया था तो इस देश में भारतीय आप्रवासियों की आबादी लगभग चार लाख थी। तब से इसमें नाटकीय रूप से बढ़ोतरी हुई है। अमेरिकी जनगणना ब्यूरो के अनुसार, अमेरिका अब लगभग 48 लाख भारतीय अमेरिकी रहते हैं। भगत सिंह थिंड को 1923 में नागरिकता से वंचित किए जाने के एक सदी बाद भारतीय-अमेरिकियों ने इस देश में निश्चित रूप से एक लंबा सफर तय किया है।
नई सहस्राब्दी की शुरुआत ने भारतीय-अमेरिकी आबादी की छवि को नाटकीय रूप से बदलते देखा है। अब उन्हें राजनीति के सभी पक्षों द्वारा "मॉडल" आप्रवासी समुदाय के रूप में देखा जाता है। भारतीय-अमेरिकियों को शिक्षित, मेहनती, उद्यमी और उद्यमशील नागरिकों के रूप में देखा जाता है। वह अमेरिकी समाज में घुल मिल गए हैं और अपने अनुरूप बदलाव भी लेकर आए हैं।
मैंने सीबीएस के लिए 2003 में "इंपोर्टेड फ्रॉम इंडिया" शीर्षक वाला 60 मिनट का सेगमेंट तैयार करने में मदद की। इसकी टैगलाइन थी- "अमेरिका में भारत से आई सबसे मूल्यवान चीज क्या है? इसका सबसे सही जवाब है- ब्रेनपावर। सीबीएस के इस ब्रॉडकास्ट को पूरे अमेरिका में व्यापक रूप से देखा गया था। इसने कई मायनों में अमेरिका में ब्रांड इंडिया के उत्थान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इसने ऐसे युग का सूत्रपात किया जिसने भारतीय-अमेरिकियों की छवि पूरी तरह से बदल दी।
भारतवंशी अब अमेरिकी समाज में कोने कोने तक फैल चुके हैं। सिलिकॉन वैली से लेकर वॉल स्ट्रीट तक और संसद से लेकर विधायिकाओं तक में नेतृत्वकारी भूमिका निभा रहे हैं। आगामी राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनाव में डेमोक्रेट और रिपब्लिकन दोनों ही उम्मीदवारों में भारतीय मूल के लोगों की छाप है। जहां कमला हैरिस संभावित राष्ट्रपति तो उषा वेंस संभावित आगामी सेकंड लेडी हो सकती हैं।
अमेरिका के आगामी राष्ट्रपति द्वारा व्हाइट हाउस में आयोजित दिवाली समारोह अगर एक नॉवेल्टी के बजाय आदर्श बन जाए, तो इसमें शायद ही कोई हैरानी होगी।
नील आर्मस्ट्रांग के क्लासिक शब्दों में कहें तो- "The Desis have landed."
(राम केलकर शिकागो स्थित स्तंभकार और इन्वेस्टमेंट प्रोफेशनल हैं।)
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