(रंजू बत्रा)
अमेरिका में दिवाली पर डाक टिकट जारी करवाने के मेरे सात साल की मेहनत 5 अक्टूबर 2016 को उस समय कामयाब हुई थी, जब यूनाइटेड स्टेट्स पोस्टल सर्विस (यूएसपीएस) ने न्यूयॉर्क स्थित भारतीय वाणिज्य दूतावास में दिवाली के उपलक्ष्य में एक पोस्टल स्टैम्प जारी किया था। यह देखकर मेरा दिल बाग बाग हो गया कि हर भारतीय को इस डाक टिकट पर गर्व है। यह व्यापक अमेरिकी समाज में दक्षिण एशियाई संस्कृतियों की स्वीकार्यता का एक महत्वपूर्ण पल था।
मैं आपको अपनी यात्रा के बारे में बताती हूं। कई साल पहले जब मेरे बच्चे स्कूल में पढ़ते थे, तब हम क्रिसमस, हनुक्का, कवान्ज़ा और ईद जैसे सभी धार्मिक पर्वों पर छुट्टियां मनाते थे, लेकिन दिवाली पर अमेरिका में कोई उत्सव नहीं होता था।
इसके बाद 2010 में मैंने अमेरिका में दिवाली पर डाक टिकट जारी करवाकर दिवाली को मान्यता दिलवाने के बारे में सोचा। मैंने कई सामुदायिक नेताओं से बात की। मुझे बताया गया कि कई लोगों ने कोशिश की थी लेकिन हार मानकर बैठ गए। मैंने तय कर लिया कि मैं दिवाली पर डाक टिकट जारी करवाऊंगी और तब तक नहीं रुकूंगी जब तक कि मैं अपना लक्ष्य हासिल नहीं कर लेती।
मेरे पति रवि ने मेरी इस यात्रा के कठिन वर्षों में मेरा पूरा समर्थन किया। मेरे बच्चे लोगों का समर्थन जुटाने और उनके दस्तखत लेने के लिए मेरे साथ सुपरमार्केट के बाहर खड़े रहते थे। मैंने लगभग सात साल अपने सपने को पूरा करने के लिए प्रयास किए। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए केवल समावेशी और सम्मानजनक साधनों का उपयोग किया।
मैंने हजारों याचिकाएं भेजीं। यह एक बेहद थकाऊ काम था। लेकिन मेरे लिए वे याचिकाएं नहीं, शांति के संदेश थे। मैं जहां भी जाती, लोगों से याचिका पर हस्ताक्षर करने के लिए कहती। मैंने ऑनलाइन पिटीशन का काम रोक दिया क्योंकि मुझे डाक सेवा विभाग द्वारा बताया गया था कि "डाक टिकट ईमेल पर जारी नहीं किए जाते हैं।" मैंने हर जगह लोगों के हस्ताक्षर जुटाए, चाहे लंच हो, डिनर, रेस्तरां या स्टोर। मैंने हर हफ्ते हस्ताक्षरित याचिकाओं को मेल करना शुरू कर दिया।
मैंने कांग्रेसी कैरोलिन मालनी के साथ भागीदारी की, वाशिंगटन में यूएसपीएस के साथ बैठकें कीं और दिवाली स्टैम्प के लिए हाउस में प्रस्ताव पर समर्थन जुटाया। मुझे कई कांग्रेसी सदस्यों का साथ मिला। मुझे भारतीयों के साथ-साथ हर धर्म के लोगों का सपोर्ट मिला।
संयुक्त राष्ट्र के कई राजदूतों और उनके परिजनों ने मेरी याचिकाओं पर दस्तखत किए जिनमें हरदीप सिंह पुरी जो कि इस वक्त भारत सरकार में मंत्री हैं, राजदूत लक्ष्मी पुरी, मेयर डी ब्लासियो, कंट्रोलर स्कॉट स्ट्रिंगर, ग्रेस मेंग, यवेटे क्लार्क, शिव दास, नीता जैन, सुरिंदर कथूरिया और भी बहुत से लोग शामिल हैं। मीडिया के सदस्यों ने हम सभी के लिए इस सफर को आगे बढ़ाने में सहयोग दिया।
इस सफर में हमने तमाम बैठकें कीं, समर्थन जुटाने के लिए प्रेस कॉन्फ्रेंस कीं। इतना ही नहीं राजदूत ज्ञानेश्वर एम. मुले ने एक कविता भी लिखी जो दिवाली डाक टिकट प्रोजेक्ट की आधिकारिक कविता बन गई-
“Towards Diwali Stamp.”
Brighten up the World
Light up the Nearest Lamp
Stamp out Clouds of Darkness
Bring in the Diwali Stamp."
मैंने दिवाली पर अमेरिका में डाक टिकट जारी कराने के लिए भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा से समर्थन मांगा। 2016 में दिवाली पर पीएम मोदी ने जो संदेश जारी किया था, उसमें वाणिज्य दूतावास में दिवाली डाक टिकट के अनावरण का छोटा वीडियो भी शामिल था।
इस सफर में जिन लोगों का भी मुझे साथ मिला, मैं उन सबसे कहती हूं- धन्यवाद, हमने आखिरकार अपना लक्ष्य हासिल कर लिया। लोगों का आंदोलन आखिर जीत ही गया! यह सब सभंव हुआ क्योंकि हम इस उद्देश्य के पीछे एकजुट थे। यह भारतीय-अमेरिकी समुदाय की ताकत ही है।
स्टैम्प डेवलपमेंट के निदेशक विलियम गिकर ने भी कहा कहा कि दिवाली पर डाक टिकट जारी करवाने के लिए जिस तरह से प्रयास किए गए थे, वह सबसे अनूठे और प्रभावशाली थे। इतने ज्यादा लोगों ने इसके लिए लिखा था। डाक टिकट जारी होने के पीछे हाई-प्रोफाइल लोगों का हाथ नहीं बल्कि इतनी ज्यादा संख्या में याचिकाओं का परिणाम था कि समिति को फैसला लेना पड़ा। इसी के साथ ही यूएसपीएस को अमेरिका में भारतवंशी समुदाय की लंबे समय से चली आ रही मांग को पूरा करना पड़ा।
इस तरह मैं यूनाइटेड स्टेट्स पोस्टल सर्विस के इतिहास में एक नया अध्याय लिखने में सफल रही। एयर इंडिया ने मेरे दिवाली स्टैम्प प्रोजेक्ट के लिए एक्सक्लूसिव प्री-सेल ऑफर दिया। 10 ही दिनों में मैंने डे वन के लिए 170,000 से अधिक स्टैम्प बेच दिए। इसने दिवाली स्टैम्प को यूएसपीएस के इतिहास में सबसे ज्यादा बिकने वाला नंबर 1 स्टैम्प बना दिया।
इस मकसद को हासिल करने में मुझे सात साल का समय जरूर लगा, लेकिन अब दिवाली डाक टिकट हमेशा के लिए अमेरिका में अपनी जगह बना चुका है। अब हिंदू, सिख, जैन और बौद्ध धर्म को मानने वाले लोग भी गर्व से कह सकते हैं कि अमेरिका में उनके पास अपना एक डाक टिकट है।
भारत में एक अरब से अधिक भारतीयों के लिए, 40 लाख से अधिक भारतीय-अमेरिकियों के लिए और दुनिया भर में अन्य बेशुमार लोगों के लिए यही रोशनी का असल त्योहार है।
My spirits are uplifted,
and from this year forward
Diyas will shine brighter!
(लेखक रंजू बत्रा दिवाली फाउंडेशन यूएसए की अध्यक्ष हैं।)
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