बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ होने वाली हिंसा और प्रताड़ना को रोकने के लिए भारत सहित दुनियाभर से आवाजें उठ रही हैं लेकिन लगता है वहां अराजक हालात को खत्म करने के बजाय सियासत और सत्ता का खेल समानांतर रूप से चल रहा है। बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना और वहां की अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार मो. यूनुस के बयान तो यही दर्शा रहे हैं। बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री हसीना का दावा है कि हिंदुओं के खिलाफ होने वाली हिंसा के मास्टरमाइंड यूनुस हैं। जैसे ही हसीना का यह बयान सामने आया तो अंतरिम सरकार के सलाहकार यूनुस ने कहा कि ‘शेख हसीना शासन ने सब कुछ नष्ट कर दिया’ है। यह विशुद्ध रूप से वार-पलटवार की सियासत नहीं तो और क्या है, जबकि देश के अस्थिर और अराजक हालात में किसी भी शासन या अंतरिम शासन की प्राथमिकता यही होनी चाहिए की सबसे पहले खूनी हिंसा पर विराम लगे।
इस बीच बांग्लादेश में हिन्दुओं पर हमलों के मद्देनजर अमेरिका ने धार्मिक और आधारभूत मानवाधिकारों सहित मौलिक स्वतंत्रता के सम्मान का आह्वान किया है। दूसरी ओर बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों, खासकर हिंदुओं पर हमलों को लेकर भारत लगातार चिंता जताता रहा है। अमेरिकी शासन ने नसीहत दी है कि सरकारों को कानून के शासन का सम्मान करने की जरूरत है और साथ ही अपना रुख स्पष्ट करते हुए कहा कि मौलिक स्वतंत्रता का सम्मान होना ही चाहिए। भारत-बांग्लादेश के बीच तनाव के दौरान खबर है कि भारतीय विदेश सचिव अगले सप्ताह (9 या 10 दिसंबर) वार्ता के लिए बांग्लादेश का रुख कर सकते हैं। जाहिर है कि भारत की चिंता और प्राथमिकता इस समय 'अपने लोगों की सुरक्षा है। यही प्राथमिकता बांग्लादेश की भी होनी चाहिए। लेकिन अंतरिम बांग्ला सरकार के सलाहकार यूनुस इस समय शेख हसीना के प्रत्यर्पण पर विचाररत हैं। बताया जाता है कि हसीना लंबे समय से भारत में शरण लिए हुए हैं, लिहाजा यूनुस का कहना है कि अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण में केस समाप्त होने के बाद भारत को हसीना का प्रत्यर्पण करना चाहिए। एक बार मुकदमा खत्म हो जाए और फैसला आ जाए तो हम औपचारिक रूप से भारत से उसे सौंपने का अनुरोध करेंगे। अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत भारत इसका पालन करने के लिए बाध्य होगा।
खैर, अपराध न्यायाधिकरण में क्या होता है वह अलग है लेकिन हिंसा पर विराम इस समय सबकी प्राथमिकता होनी चाहिए। अराजकता पर विराम लगाना किसी भी शासन का पहला कर्तव्य होना चाहिए। इस कर्तव्य से इस दलील पर मुक्ति नहीं पाई जा सकती कि शासन अंतरिम है। निर्दोष लोगों के खिलाफ हिंसा रोकना किसी एक शासन या किसी स्थानीय सरकार का काम हो सकता है लेकिन उस पर विराम लगाना एक वैश्विक जिम्मेदारी भी है। दुर्भाग्य से दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में चल रहे युद्ध, संघर्षों और नस्लीय नफरती साजिशों में बीते 3 वर्षों में हजारों लोगों की जान जा चुकी है। रूस के साथ तीन साल से चल रही जंग में यूक्रेन का तो पूरा ढांचा ही ध्वस्त हो गया है। गाजा संघर्ष भी हजारों जान ले चुका है। इजराइल-फिलिस्तीन का टकराव एक-दूसरे के नागरिकों या मूल के लोगों में प्रताड़ना और असह्य पीड़ा का सबब है। बेशक, ये तमाम संघर्ष और टकराव तभी थम सकते हैं जब सियासत और स्वार्थ के बजाय वैश्विक शांति सबकी प्राथमिकताओं में सबसे ऊपर होगी।
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