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अध्ययन : सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौती बन गया है नींद में गाड़ी चलाना

लास वेगास (UNLV) स्कूल ऑफ बिहेवियरल के प्रोफेसर और अध्यक्ष डॉ. मनोज शर्मा कहते हैं कि एक बड़े दक्षिण-पश्चिमी विश्वविद्यालय के 25-30 वर्ष के आयु वर्ग के लगभग 725 छात्रों पर किए गए अध्ययन में पाया गया कि लगभग आधे (49.38%) नींद में गाड़ी चलाने की बात स्वीकार करते हैं।

सांकेतिक तस्वीर / Pexels Free Stock

नेवादा विश्वविद्यालय के सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों द्वारा प्रकाशित एक नए अध्ययन के अनुसार अमेरिका में कॉलेज के छात्रों और युवा वाहन चालकों के बीच नींद में गाड़ी चलाना एक सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौती है। यह युवाओं और नए ड्राइवरों से जुड़ी दुर्घटनाओं की बढ़ती संख्या के साथ सड़क सुरक्षा अभियान को गंभीर रूप से प्रभावित करती है। लास वेगास (UNLV) स्कूल ऑफ बिहेवियरल के प्रोफेसर और अध्यक्ष डॉ. मनोज शर्मा कहते हैं कि एक बड़े दक्षिण-पश्चिमी विश्वविद्यालय के 25-30 वर्ष के आयु वर्ग के लगभग 725 छात्रों पर किए गए अध्ययन में पाया गया कि लगभग आधे (49.38%) नींद में गाड़ी चलाने की बात स्वीकार करते हैं। डॉ. शर्मा के अलावा अन्य प्रमुख शोधकर्ताओं एमडी सोहेल अख्तर, सिदथ कपुकोटुवा, चिया-लियांग दाई, असमा अवान और ओमाला ओडेजिमी ने अध्ययन में योगदान दिया है जो अमेरिका में सीधे तौर पर बढ़ते तनाव के स्तर, नींद की कमी और अस्वास्थ्यकर जीवनशैली को नींद में ड्राइविंग के कारणों के रूप में इंगित करता है। 

अध्ययन के निष्कर्षों से 'अव्यक्त स्वास्थ्य और व्यक्तिगत जोखिम' का पता चलता है। इन पर सड़कों पर नींद में गाड़ी चलाने के विश्लेषण में ध्यान नहीं दिया जाता। नींद में ड्राइविंग के लक्षणों और सड़कों पर ड्राइविंग व्यवहार पर सीधे प्रभाव के बारे में विस्तार से बताते हुए डॉ. शर्मा ने न्यू इंडिया अब्रॉड को बताया कि नींद में ड्राइविंग बार-बार जम्हाई लेने या पलकें झपकाने के साथ थकान में परिलक्षित होती है। यह आमतौर पर तब होता है जब ड्राइवर को नींद की कमी होती है या रात की अनियमित शिफ्ट की नौकरी के कारण बहुत तनाव होता है। शोध अध्ययनों से यह भी पता चला है कि प्रिस्क्रिप्शन और ओवर-द-काउंटर दवाएं उनींदापन प्रेरित कर सकती हैं और शराब नींद के प्रभाव को बढ़ा सकती है। इसी तरह के अध्ययनों के निष्कर्षों का समर्थन करते हुए डॉ. शर्मा कहते हैं कि यह संयुक्त राज्य अमेरिका और विश्व स्तर पर सड़क मार्गों पर एक गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य और सुरक्षा का मुद्दा है।

समान रूप से चिंता की बात यह है कि युवा आबादी और नए ड्राइवरों में नींद में गाड़ी चलाना खतरनाक रूप से आम है और छात्र आबादी के बारे में अक्सर बताया जाता है कि वे गाड़ी चलाते समय सो जाते हैं। इसका अधिकांश कारण शैक्षणिक कठोरता के दौरान छात्रों द्वारा अनुभव की जाने वाली थकान को माना जाता है। तनाव और शैक्षणिक समय सीमा का दबाव अनियमित नींद पैटर्न में योगदान देता है और इससे नींद में ड्राइविंग के लक्षण बढ़ जाते हैं। नींद की कमी का सामना करने के बावजूद कई बार विभिन्न व्यावसायिक, शैक्षणिक और सामाजिक कारण छात्रों को उनींदापन या थकान होने पर भी गाड़ी चलाने के लिए मजबूर करते हैं।

डॉ. शर्मा ने कहा कि कॉलेज और विश्वविद्यालय के छात्रों के बीच नींद में गाड़ी चलाने के अहम परिणाम होते हैं। जिनमें बढ़ती दुर्घटनाएं भी शामिल हैं और यह शैक्षणिक प्रदर्शन पर नकारात्मक प्रभाव डालता है। नींद संबंधी विकार मोटापा, मधुमेह, हृदय रोग और कमजोर प्रतिरक्षा जैसी स्वास्थ्य समस्याओं से जुड़े हैं। यह मानसिक स्वास्थ्य से भी समझौता करने को बाध्य करता है, अवसाद और चिंता जैसे मनोदशा संबंधी विकारों से जुड़ा होता है और यह परिवारों और समुदायों पर दुर्घटनाओं और भावनात्मक रूप से वित्तीय बोझ डालता है।
 
डॉ. शर्मा कहते हैं कि ये निष्कर्ष नींद में ड्राइविंग को कम करने के लिए उनींदापन को काबू में छात्रों की जागरूकता और आत्मविश्वास बढ़ाने के महत्व को रेखांकित करते हैं। इससे अंततः सड़क सुरक्षा और छात्र कल्याण में सुधार होता है। ड्राइवरों को गाड़ी चलाने से पहले शराब पीने से बचना चाहिए, पर्याप्त नींद लेनी चाहिए (वयस्कों के लिए 7-8 घंटे) और उनींदापन वाली ड्राइविंग को कम करने के लिए नींद संबंधी विकारों का इलाज कराना चाहिए। शोध में अन्य वैश्विक अध्ययनों के हवाले से कहा गया है कि शराब का प्रभाव, यहां तक ​​​​कि छोटी खुराक में भी, नींद से संबंधित ड्राइविंग हानि को बढ़ा सकता है। यह अध्ययन परिसरों में सार्वजनिक सड़क सुरक्षा अभियान आयोजित करने की सिफारिश करता है और मीडिया अभियानों के माध्यम से विशेष रूप से युवा ड्राइवरों के लिए लक्षित है।
 

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