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2024 का फुकुओका पुरस्कार इस भारतीय-अमेरिकी इतिहासकार के नाम

फुकुओका अकादमिक पुरस्कार पाने वाले सुनील अमृत वैश्विक इतिहास में अपने अभिनव कार्यों के लिए प्रसिद्ध हैं। उनका कार्य पर्यावरण एवं प्रवासन पर केंद्रित है।

सुनील अमृत येल विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हैं। / Image : Yale University

भारतीय मूल के अमेरिकी इतिहासकार सुनील अमृत को इस साल के फुकुओका पुरस्कार से सम्मानित करने का ऐलान किया गया है। यह सम्मान एशियाई अध्ययन एवं कला व संस्कृति में असाधारण योगदान के लिए प्रदान किया जाता है। 

फुकुओका अकादमिक पुरस्कार पाने वाले सुनील अमृत वैश्विक इतिहास में अपने अभिनव कार्यों के लिए प्रसिद्ध हैं। उनका कार्य पर्यावरण एवं प्रवासन पर केंद्रित है। इस समय सुनील अमृत येल विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हैं। रेणु एवं आनंद धवन प्रोफेसरशिप के अलावा वह येल स्कूल ऑफ एनवायरनमेंट में प्रोफेसर भी हैं। 

सुनील अमृत व्हिटनी एंड बेट्टी मैकमिलन सेंटर फॉर इंटरनेशनल एंड एरिया स्टडीज में दक्षिण एशियाई अध्ययन परिषद के अध्यक्ष भी हैं। उनका शोध दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया को जोड़ने वाले लोगों और पारिस्थितिक आंदोलनों पर केंद्रित है। 

अमृत ने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से बीए और पीएचडी की डिग्रियां ली हैं। वह हार्वर्ड विश्वविद्यालय में दक्षिण एशियाई अध्ययन के मेहरा फैमिली प्रोफेसर रहे हैं। उन्होंने लंदन विश्वविद्यालय के बिर्कबेक कॉलेज में अध्यापन भी किया है। 

अमृत ने कई प्रभावशाली किताबें भी लिखी हैं। उनकी लिखी 'अनरूली वाटर्स' और 'क्रॉसिंग द बे ऑफ बंगाल' जैसी किताबों को काफी तारीफ प्राप्त हुई है। 'क्रॉसिंग द बे ऑफ बंगाल' को अमेरिकन हिस्टोरिकल एसोसिएशन का जॉन एफ रिचर्ड्स पुरस्कार भी मिल चुका है। न्यूयॉर्क टाइम्स बुक रिव्यू में इसे एडिटर्स चॉइस की मान्यता भी प्राप्त है। 

सुनील की अगली किताब 'द बर्निंग अर्थ' इसी साल आने वाली है। यह ग्लोबल साउथ के नजरिए से पर्यावरणीय इतिहास की पड़ताल करती है। सुनील कई प्रमुख एकेडमिक जर्नल्स और सीरीज के लिए संपादकीय और सलाहकार भूमिकाएं भी निभाते हैं। 

फुकुओका पुरस्कार के बारे में बताएं तो इसकी शुरुआत 1990 में हुई थी। इस साल यह अपनी 34वीं वर्षगांठ मना रहा है। इस साल फुकुओका पुरस्कार समारोह 26 सितंबर को होगा, जिसमें विजेताओं द्वारा व्याख्यान भी दिए जाएंगे। सुनील अमृत का लेक्चर 28 सितंबर को होगा। 

इस पुरस्कार के तहत ऐसी हस्तियों को मान्यता प्रदान की जाती है जिन्होंने विविध एशियाई संस्कृतियों के विकास व संरक्षण में अहम योगदान दिया है। नोबेल शांति पुरस्कार विजेता मुहम्मद यूनुस और मानवतावादी नाकामुरा टेत्सु जैसी हस्तियों को यह पुरस्कार मिल चुका है। 

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