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शांति की बात, युद्ध के हालात

तमाम युद्धरत देश मानवता की खातिर संवाद की राह पकड़ें और उनके समर्थक आग में घी डालने का काम बंद करें।

इजरायल-हमास संघर्ष के बीच एक इजरायली टैंक। / Reuters/Amir Cohen/File Photo

निकट अतीत में, और मोटे तौर पर 950 दिन से पूरी दुनिया रूस-यूक्रेन युद्ध की विभीषिका देख रही है। इसी बीच इजराइल-फिलिस्तीन में टकराव शुरू हो गया। और अब ईरान की इजराइल पर बमबारी से जंग का तीसरा मोर्चा खुल गया। इजराइल ने भी बदला लेने की ठान ली है। यह विडंबना नहीं तो और क्या है कि दुनिया के तमाम देश और नेता अंतरराष्ट्रीय मंचों से शांति की बातें कर रहे हैं मगर एक के बाद एक युद्ध के मोर्चे खुलते जा रहे हैं। अमेरिका की 'सियासत' और बेबसी के बीच शांति दूत के रूप में भारत युद्ध को खत्म करके शांति बहाली की कोशिशों में मुखर तौर प्रयासरत है किंतु जब जंग के मोर्चे बढ़ते जाएंगे तो किसी एक के लिए सबको संभालना असंभव होता चला जाएगा, यह स्पष्ट है। इजराइल की स्थिति तो यह है कि वह एक साथ पांच मोर्चों पर युद्धरत है और उसकी मन:स्थिति यह है कि उसने संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरस को अवांछित घोषित करते हुए अपने देश में प्रवेश से प्रतिबंधित कर दिया है। इन हालात में यह कैसे समझा जाए कि पूरी दुनिया न चाहते हुए भी 'आशंकित विश्वयुद्ध' की ओर क्यों बढ़ रही है। मानवता और एक-दूसरे की सहायता के आह्वानों के बीच युद्ध से होने वाली बर्बादी और जनहानि तथा इसके अन्य दुष्परिणाम क्या किसी एक देश तक सीमित रहने वाले हैं?

युद्ध भले ही रूस-यूक्रेन, इजराइल-फिलिस्तीन या इजराइल-ईरान के बीच हो रहा है लेकिन हर देश को अपने नागरिकों की चिंता है। ईरान ने जैसे ही इजराइल पर हमला बोला तो स्वाभाविक तौर पर भारत को भी चिंता हुई और सरकार की ओर से दोनों देशों में रहने वाले अपने नागरिकों की खैरियत के वास्ते एडवायजरी जारी कर दी गई। इजराइल में ईरान से लगभग दोगुना भारतीय रहते हैं। युद्ध के हालात में खड़े इन दोनों देशों में करीब 29 हजार भारतीयों का वास है। इजराइल में रहने वाले 18 हजार भारतीयों में छात्र, हीरा कारोबारी, आईटी प्रोफेशनल्स, सेवा क्षेत्र और निर्माणकर्मी शामिल हैं। आंकड़े बताते हैं कि ईरान में 10 हजार 765 भारतीय रहते हैं। इनमें से लगभग 10वां हिस्सा उन छात्रों का है जो वहां मेडिकल की पढ़ाई कर रहे हैं। इन हालात में दोनों देशों मे रहने वाले ये भारतीय तो चिंतित और बेचैन हैं ही, अपने देश में उनके परिजन भी कम भयाक्रांत नहीं हैं। सरकार ने सभी नागरिकों से दूतावास के संपर्क में रहने को कहा है लेकिन युद्ध के हालात में वहां रहने वालों की सुरक्षा की गारंटी तो कोई नहीं ले सकता।

पश्चिम एशिया का यह संकट इसलिए अधिक डरा रहा है क्योंकि इससे दोनों देशों के पक्ष-विपक्ष में लामबंदी की आशंका प्रबल हो गई है। भारत भले ही टकराव के सभी मोर्चों पर तटस्थ और मानवीय नीति व दृष्टिकोण अपनाते हुए संवाद के माध्यम से शांति बहाली और शांतिपूर्ण सहअस्तित्व की बात कर रहा है किंतु अमेरिका खुले तौर पर यूक्रेन और इजराइल के साथ खड़ा है। खुले तौर पर किसी के साथ खड़े होने का सीधा अर्थ है दूसरे पक्ष के खिलाफ। युद्ध के दौर में शांति के त्वरित प्रयासों के बजाय पक्ष और विपक्ष का ऐलानिया रुख रहेगा तो समाधान के रास्ते अपने आप बंद होते चले जाएंगे। और इन रास्तों के बंद होने का मतलब है एक महायुद्ध की ओर बढ़ना। दुर्भाग्य से उस महायुद्ध का नाम है विश्वयुद्ध। ऐसे में जरूरी है कि तमाम युद्धरत देश मानवता की खातिर संवाद की राह पकड़ें और उनके समर्थक आग में घी डालने का काम बंद करें।   

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