चेनाब नदी पर बना ये पुल दुनिया का सबसे ऊंचा रेल पुल है। / Facebook @Indian Railway
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को जम्मू कश्मीर को 16 हजार करोड़ रूपये से अधिक की रेल परियोजनाओं की सौगात दी। इसमें दो नई रेल लाइनें भी शामिल हैं। जम्मू कश्मीर की प्रमुख परियोजनाओं में चिनाब पुल भी शामिल है जो दुनिया का सबसे ऊंचा और सबसे बड़ा सिंगल आर्क रेलवे पुल है। करीब 14 हजार करोड़ रुपये की लागत से तैयार यह रेलवे पुल पेरिस के एफिल टॉवर से भी ऊंचा है। यह भारत के हालिया रेलवे इतिहास में सिविल इंजीनियरिंग का नायाब नमूना है।
आइए बताते हैं, चिनाब नदी के ऊपर बने इस चिनाब रेल पुल में और क्या खासियतें हैं-
- ऊंचाई: यह दुनिया का सबसे ऊंचा रेलवे पुल है, जो चिनाब नदी के ऊपर 359 मीटर (1,178 फीट) की ऊंचाई पर बना है। एफिल टावर से ऊंचा: यह पुल पेरिस के एफिल टावर से भी 35 मीटर ऊंचा है। नदी तल से इस पुल की ऊंचाई 359 मीटर है।
- डिजाइन: इस पुल का डिजाइन बेहद चुनौतीपूर्ण कार्यों में एक रहा है। इसकी कुल लंबाई 1315 मीटर है जिसमें से 530 मीटर हिस्सा जमीन के ऊपर और बाकी 785 चिनाब घाटी में बना है।
- आर्क कैटेगरी: चिनाब रेलवे पुल आर्क पुल की कैटेगरी में आता है। इसके मुख्य आर्क की लंबाई 467 मीटर है।
- स्टील का पुलः यह पुल कुल 18 खंबों पर टिका है। सबसे ऊंचा कंक्रीट पिलर लगभग 49 मीटर का है। सबसे ऊंचा स्टील पिलर 130 मीटर ऊंचा है। इसके निर्माण में 27 हजार टन स्टील का प्रयोग हुआ है।
- ब्लास्ट प्रूफ: इस पुल को ब्लास्ट लोड के लिए डिजाइन किया गया है। यह 30 किलो तक विस्फोटक का धमाका भी झेल सकता है।
- भूकंपरोधी: यह भूकंप के तेज के झटकों के बावजूद भी खड़ा रह सकता है। इसे भूकंप जोन 5 के हिसाब से बनाया गया है।
- शेल्फ लाइफ: इस पुल की शेल्फ लाइफ लगभग 120 साल है यानी इसे अगले 120 वर्षों तक काम में लाया जा सकता है। यह 260 किमी प्रति घंटा की रफ्तार से चलने वाली हवा का दवाब भी सह सकता है।
- रफ्तार: इस पुल पर 100 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से ट्रेन दौड़ सकेगी। इस पुल पर अगले 20 साल तक पेंट करने की जरूरत नहीं पड़ेगी। इससे रखरखाव की मेहनत बचेगी।
- कनेक्टिविटी: यह रेलवे जम्मू-कश्मीर को देश के अन्य राज्यों से जोड़ने में काफी उपयोगी साबित होगा। यह पुल उधमपुर-श्रीनगर-बारामूला रेलवे लिंक प्रोजेक्ट का हिस्सा है और कटरा तथा बनिहाल को आपस में जोड़ेगा।
- योजनाः इस रेल पुल के प्रोजेक्ट 2003 में मंजूर हुआ था और 2008 में इसका ठेका दिया गया था। इसका आर्च तैयार करने में ही तीन साल से ज्यादा का समय लग गया।
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