पिट्सबर्ग के मोनरोविले में हिंदू-जैन मंदिर ने एक भव्य कार्यक्रम के साथ अपनी ऐतिहासिक 40वीं वर्षगांठ मनाई। यह अमेरिका में धार्मिक एकता और सांस्कृतिक विरासत के एक स्मारक प्रतीक के रूप में इसकी भूमिका की पुष्टि करता है। 1984 में परमार्थ निकेतन, ऋषिकेश (भारत) के अध्यक्ष परम पूज्य स्वामी चिदानंद सरस्वतीजी द्वारा स्थापित यह मंदिर न केवल अमेरिका के सबसे पुराने हिंदू मंदिरों में से एक है बल्कि दुनिया भर में ऐसे पहले मंदिर के रूप में अद्वितीय है जहां हिंदू और जैन एक साथ पूजा करते हैं।
यही नहीं यह विश्व के ऐसे पहले मंदिर के रूप में भी प्रतिष्ठित है जहां जैन धर्म के दोनों संप्रदाय-श्वेतांबर और दिगंबर भक्ति और पूजा में साझा एकजुट होते हैं। हिंदू-जैन मंदिर का निर्माण 1980 में शुरू हुआ और चार साल बाद इसका आधिकारिक उद्घाटन 1984 में हुआ। मंदिर 10 एकड़ के हरे-भरे जंगल के बीच शोभायमान है।
इस माह का उत्सव इतिहास और श्रद्धा की गहरी भावना से ओतप्रोत रहा क्योंकि संपूर्ण ग्रेटर पिट्सबर्ग समुदाय मंदिर की स्थायी विरासत का सम्मान करने के लिए एकत्र हुआ था। कार्यक्रम की शुरुआत शुभ 'शिखर पूजा' से हुई। यह पूजा एक पवित्र अनुष्ठान है जिसमें पूज्य स्वामीजी और साध्वी भगवतीजी ने क्रेन के माध्यम से पांच गुंबदों की ऊंचाई तक पहुंचकर मंदिर के शिखरों पर पवित्र जल चढ़ाया। इस अनुष्टान में मंदिर की कार्यकारी समिति और न्यासी बोर्ड के सदस्य शामिल रहे।
शिखर पूजा के बाद पूज्य स्वामीजी, साध्वीजी और मंदिर के पुजारियों के नेतृत्व में एक पवित्र हवन/यज्ञ किया गया। इसमें सभी के लिए शांति, समृद्धि और आध्यात्मिक उत्थान के साथ-साथ दुनिया भर में एकता और सद्भाव का आशीर्वाद मांगा गया। समारोह के बाद पूज्य स्वामीजी और साध्वी भगवतीजी के प्रेरणादायक प्रवचन हुए। इसमें उन्होंने मंदिर के ऐतिहासिक अतीत को याद किया और प्रवासी भारतीयों में विश्वास, एकता और सांस्कृतिक संरक्षण के गढ़ के रूप में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डाला।
पूज्य स्वामीजी ने मंदिर के मिशन के सार को सामने रखते हुए एक प्रेरक और काव्यात्मक संदेश दिया। उन्होंने कहा कि यह मंदिर केवल पूजा का स्थान नहीं है। यह एकता का एक ऐतिहासिक प्रतीक है। साध्वी भगवतीजी ने मंदिर की स्थापना की सम्मोहक कहानी सुनाई जब भारतीय अप्रवासी न केवल संख्या में कम थे बल्कि उन्हें गलत मानकर उनके साथ भेदभाव किया जाता था।
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