ADVERTISEMENTs

'एशियाई' से अलग होगी भारतीयों की पहचान, जानें अमेरिकी डेटा में ये बदलाव कितना अहम

अस्पतालों या डॉक्टरों के क्लिनिक में फॉर्म भरते समय कई दक्षिण एशियाई लोग अपनी जातीयता 'एशियाई' लिखने में कतराते हैं। अब उन्हें ऐसा न करने का भी विकल्प मिलेगा।

जनगणना एवं डेटा समानता (सेंसस एंड डाटा इक्विटी) की सीनियर प्रोग्राम डायरेक्टर मीता आनंद /

भारतीय-अमेरिकियों का जब जातीय या नस्लीय डेटा जुटाया जाता है, तब उन्हें 'दक्षिण एशियाई' के बजाय 'एशियाई' श्रेणी में रखा जाता है। जनगणना फॉर्म में भी मेडिकल रिकॉर्ड की तरह जातीय श्रेणी अलग होती हैं, जैसे कि अमेरिकी भारतीय या अलास्का के मूल निवासी, एशियाई, अश्वेत या अफ्रीकी अमेरिकी, मूल निवासी हवाईयन या अन्य प्रशांत द्वीप वाले, और श्वेत। 

अस्पतालों या डॉक्टरों के क्लिनिक में फॉर्म भरते समय कई दक्षिण एशियाई लोग अपनी जातीयता 'एशियाई' लिखने में कतराते हैं। वे खुद को पूरे एशियाई महाद्वीप वासियों के साथ जोड़कर देखना नहीं चाहते। उन्हें लगता है कि ऐसा करना उनके हेल्थ मार्कर्स को सटीक तरीके से प्रतिबिंबित नहीं करता। उनका मानना है कि खुद को एशियाई बताने से हो सकता है कि उनकी बीमारियों का सही इलाज न मिल पाए या पूर्वाग्रह की वजह से उनके साथ दुर्व्यवहार हो। 

जनगणना एवं डेटा समानता (सेंसस एंड डाटा इक्विटी) की सीनियर प्रोग्राम डायरेक्टर मीता आनंद दो बॉक्स पर टिक करती हैं क्योंकि उनकी मां भारतीय हैं और पिता हैती। यह उनकी दोहरी जातीयता को दर्शाता है। 

28 मार्च 2024 को प्रबंधन एवं बजट कार्यालय (OMB) ने संघीय एजेंसियों के लिए नस्लीय व जातीयता संबंधी डेटा जुटाने, उनके रखरखाव और पेश करने संबंधी अपडेटेड मानक जारी किए थे। इन नए मानकों में मध्य-पूर्वी और उत्तरी अफ्रीकी लोगों के लिए एक नई श्रेणी बनाई गई थी। इसके बाद सरकार को एक ही सवाल के जवाब से नस्लीय और जातीयता संबंधी जानकारी मिल पा रही है। 

नई नीति का असर

नेशनल कोलैबोरेटिव फॉर हेल्थ इक्विटी के कार्यकारी निदेशक डॉ गेल क्रिस्टोफर का कहना है कि ओएमबी के फैसले से संसाधनों का अधिक न्यायसंगत वितरण संभव हो सकेगा और सरकार निश्चित होकर अपना काम कर सकेगी। डॉ गेल रॉबर्ट वुड जॉनसन फाउंडेशन (RWJF) के नेशनल कमीशन टू ट्रांसफॉर्म पब्लिक हेल्थ डेटा सिस्टम्स के निदेशक भी हैं। 

आरडब्ल्यूजेएफ की शोध मूल्यांकन लर्निंग यूनिट में सीनियर प्रोग्राम ऑफिसर टीना कौह का कहना है कि ये बदलाव अनुसंधान एवं डेटा सिस्टम को वास्तव में बदलने की ताकत रखते है जो समानता, स्वास्थ्य एवं कल्याण को संबंधी नीतियों को दर्शाते हैं। 

नए मानक सभी फेडरल जानकारियों जैसे आवास, स्वास्थ्य सेवा, रोजगार, शिक्षा ही नहीं राज्य और स्थानीय स्तर के ऐसे डेटा पर भी लागू होते हैं जिन्हें संघीय एजेंसियों को रिपोर्ट करने की आवश्यकता होती है।

कौह का कहना है कि ये परिवर्तन बड़े पैमाने पर अनुसंधान को प्रभावित करेंगे। कई शोधकर्ता जनसांख्यिकीय डेटा जुटाने के लिए ओएमबी के न्यूनतम मानकों का डिफ़ॉल्ट रूप में उपयोग कर पाएंगे, वह भी बिना इसकी परवाह किए कि उनका डेटा संघीय एजेंसी को दिया जाएगा या नहीं। 

आनंद ने कहा कि नए मानक हमें लचीलापन प्रदान करते हैं। अच्छी बात यह है कि आप एशियाई और अश्वेत में फर्क कर सकते हैं, आप एशियाई और हिस्पैनिक को अलग अलग रख सकते हैं, आप दो अलग-अलग जातीयताओं की जांच कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि हमारे देश में विभिन्न पृष्ठभूमियों के ज्यादा से ज्यादा लोग आ रहे हैं और बच्चे पैदा कर रहे हैं। बढ़ती विविधता को देखते हुए लोगों को फॉर्म में उनकी अपनी श्रेणी लिखवाना जरूरी है। 

अमल जरूरी है

कौह ने कहा कि अब हमारे पास हेल्थ इक्विटी को विस्तार देने के लिए नस्लीय व जातीयता के डेटा को जुटाने, उसका विश्लेषण करने, रिपोर्ट बनाने और प्रसारित करने का सिस्टम सुधारने का एक अच्छा अवसर है। 

आनंद ने बताया कि एजेंसियों के पास नए मानकों के साथ तालमेल बनाने के लिए 18 महीने हैं। उसके बाद उन्हें लागू करने के लिए पांच साल मिलेंगे। हम इस पर नजर रखेंगे। बेशक सिस्टम को बदलना थोड़ा मुश्किल है, लेकिन असंभव नहीं है। 

Comments

ADVERTISEMENT

 

 

 

ADVERTISEMENT

 

 

E Paper

 

 

 

Video

 

Related