आज जब हम जया बच्चन के बारे में सोचते हैं तो हमें एक बुजुर्ग महिला की याद आती है जो पैपराजी को सबक सिखाती रहती है और सबसे तीखी बातें कहती है और भौंहें चढ़ाकर चल देती है। उनके बच्चे कहते हैं कि वे क्लॉस्ट्रोफोबिक (बंद या संकीर्ण स्थानों में होने का असामान्य डर) हैं, जो उनकी अधीरता को रेखांकित करता है। लेकिन कभी-कभी उस कठोर बाहरी आवरण से परे एक 'शरारत' भी झांकती है। आंखों में चमक लिए एक ऐसी अभिनेत्री जो हमें वह सब कुछ याद दिलाती है जो वह श्रीमती अमिताभ बच्चन बनने से पहले थीं।
बच्चन परिवार की मुखिया जया बच्चन-कई चीजों के लिए प्रसिद्ध हैं। मगर निकट अतीत में उनमें से अधिकतर चीजें बहुत अच्छी नहीं रही हैं। लेकिन बहुत कुछ निराधार बातें भी तैरती रही हैं। रिपोर्ताज यह तथ्य है कि लोग भूल गए हैं कि वह एक अभूतपूर्व अभिनेत्री हैं जिन्होंने अपने सहज अभिनय और ओजस्वी व्यक्तित्व से अपने समकालीनों को चिंता में डाल दिया था।
वह आदर्श बच्चन कुलमाता की भूमिका इतनी अच्छी तरह से निभा रही हैं कि इस सच्चाई को लगभग भुला दिया गया है कि वह एक महान अभिनेत्री थीं। इस एफटीआईआई स्नातक का जन्म 9 अप्रैल, 1948 को मध्य प्रदेश के एक छोटे से शहर जबलपुर में एक विशिष्ट बंगाली विद्वान परिवार में हुआ था।
जया के पिता तरुण कुमार भादुड़ी एक प्रसिद्ध लेखक थे जिन्होंने चंबल-द वैली ऑफ टेरर की रचना की थी। जया बच्चन को अक्सर अपने माता-पिता और उनके द्वारा दी गई परवरिश के बारे में बात करते हुए सुना जाता है। जया बच्चन का प्रवेश यूं तो पहले ही हो गया था लेकिन उनका एक्टिंग करियर उससे कुछ साल पहले ही शुरू हो गया था। उन्होंने सत्यजीत रे की फिल्म महानगर से शुरुआत की। यह फिल्म उन्हें अपनी पारिवारिक मित्र और अभिनेत्री शर्मिला टैगोर के सौजन्य से मिली, जिन्होंने इस भूमिका के लिए उनकी सिफारिश की थी।
पहली छाप के बारे में शर्मिला ने कहा था- 1975 में फरार और चुपके-चुपके में पहली बार सह-कलाकार होने से बहुत पहले हम पारिवारिक मित्र थे। मैं अमिताभ और जया दोनों को कोलकाता से जानती हूं। मैं जया को तब से जानती हूं जब वह 13 साल की थी और वह बहुत प्यारी थी। वह उस उम्र में भी एक्टर बनना चाहती थी।
गुड्डी से हुआ सपना साकार...
13 साल की लड़की ने जो सपना देखा था वह 'गुड्डी' के साथ हकीकत में बदल गया। यह फिल्म जया की बॉलीवुड में पहली फिल्म थी। लेकिन वह तो बस शुरुआत थी। उन्होंने संजीव कुमार के साथ एक यादगार जोड़ी बनाई और साथ में उनकी कुछ अद्भुत फिल्में हैं। 'कोशिश' में उनके अभिनय के लिए आज भी उन्हें खूब सराहना मिलती है।
'कोशिश' में संजीव कुमार और जया ने एक मूक-बधिर जोड़े की भूमिका निभाई। यह फिल्म उस जो़ड़े के रिश्ते और जीवन की यात्रा की एक अद्भुत कहानी कहती है। 1979 में आई नौकर में जया ने नौकरानी गीता का किरदार निभाकर सबका दिल जीत लिया था।
जया ने पहली बार बंसी बिरजू में अमिताभ बच्चन के साथ सह-कलाकार की भूमिका निभाई और जब तक उनकी अन्य फिल्में आईं तब तक उन्हें प्यार हो गया था। मिली, अभिमान, जंजीर और शोले जैसी बड़ी फिल्में की यात्रा के दौरान जया और अमिताभ में पेशेवर और व्यक्तिगत केमिस्ट्री बढ़ी। 3 जून 1973 में उनकी शादी हो गई! शादी के बाद उन्होंने कुछ फिल्में कीं। मगर फिर सिलसिला तब बंद हो गया जब उनकी बेटी श्वेता ने उनका दुपट्टा पकड़कर उनसे घर में रहने की गुहार लगाई।
तब मां, पत्नी और बच्चन परिवार की स्त्री को प्रिय अभिनेत्री पर प्राथमिकता दी गई। हालांकि उनके प्रशंसक उनकी वापसी का इंतजार करते रहे। इस तथ्य के बावजूद कि वह अपने पति की तुलना में बहुत बड़ी स्टार थीं उन्होंने बाकी सभी चीजों के बजाय प्यार को चुना। आज जिस तरह से वह परिवार को संभालती हैं उससे साफ है कि उनका फैसला उचित ही थी।
जया वह डोर हैं जो परिवार को बांधे रखती है। लेकिन फिल्में उन्हें हमेशा प्रिय थीं इसलिए यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि वह कुछ चुनिंदा लोगों के लिए स्क्रीन पर वापसी करती रहीं। वे उन्हे मना नहीं कर सकीं। हजार चौरासी की मां, फिजा, कभी खुशी कभी गम में उनके अभिनय को प्रशंसा मिली और पुरस्कार भी।
उन्होंने 'देख भाई देख नामक' एक टेलीविजन शो का निर्माण भी किया जो 1990 के दशक में एक लोकप्रिय रहा। वैसे, यह बात बहुत कम लोग जानते होंगे कि अमिताभ बच्चन की 1988 की सुपरहिट फिल्म शहंशाह की कहानी का श्रेय उनकी पत्नी जया बच्चन को जाता है।
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