फिल्म में अगर कहानी दमदार हो तो उसे न प्रमोशन की जरूरत होती है और न ही किसी सुपरस्टार की। 55वें अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव 2024 में गोल्डन पीकॉक अवार्ड के लिए 15 फिल्मों का चयन हुआ है। इसमें तीन भारतीय फिल्में भी शामिल हैं। ये फिल्में हैं- द गोट लाइफ, आर्टिकल 370 और रावसाहेब।
वैश्विक और भारतीय सिनेमा का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन प्रस्तुत करने वाली ये प्रत्येक फिल्म मानवीय मूल्यों, संस्कृति और कहानी का अद्भुत संगम प्रस्तुत करती हैं।
इस साल, प्रतिष्ठित गोल्डन पीकॉक जूरी में भारतीय फिल्म निर्माता आशुतोष गोवारिकर, पुरस्कार विजेता सिंगापुर के निर्देशक एंथनी चेन, ब्रिटिश-अमेरिकी निर्माता एलिजाबेथ कार्लसन, स्पेनिश निर्माता फ्रान बोर्गिया और प्रसिद्ध ऑस्ट्रेलियाई फिल्म संपादक जिल बिलकॉक शामिल हैं। ये जूरी सर्वश्रेष्ठ फिल्म, सर्वश्रेष्ठ निर्देशक, सर्वश्रेष्ठ अभिनेता (पुरुष), सर्वश्रेष्ठ अभिनेता (महिला) और विशेष जूरी पुरस्कार सहित श्रेणियों में विजेताओं के नामों का चयन करेगी। सर्वश्रेष्ट फिल्म को ₹40 लाख का पुरस्कार से नवाजा जाएगा।
गोल्डन पीकॉक अवार्ड के लिए चयनित भारतीय फिल्मों पर एक नजरः
द गोट लाइफ
'द गोट लाइफ' में राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता मलयालम फिल्म निर्देशक ब्लेसी द्वारा निर्देशित है। इस फिल्म में विदेश में नौकरी के लिए फंसे भारतीयों की कहानी दिखाई गई है। फिल्म में नायक सऊदी अरब के रेगिस्तान में बेहद विपरीत परिस्थितियों में कैसे जिंदा रहता है और कैसे बच निकलता है, यह दिखाया गया है। यह फिल्म भारतीय प्रवासी श्रमिक की सच्ची कहानी पर आधारित है। यह फिल्म लेखक बेन्यामिन के सर्वाधिक बिकने वाले मलयालम उपन्यास ' आदुजीविथम' से प्रेरित है।
आर्टिकल 370
राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता फिल्म निर्माता आदित्य सुहास जम्भेले द्वारा निर्देशित 'आर्टिकल 370' भारत के संवैधानिक परिवर्तनों की पृष्ठभूमि पर आधारित एक राजनीतिक थ्रिलर है। कहानी अनुच्छेद 370 की पेचीदगियों को गहराई से दर्शाती है, जिसने जम्मू-कश्मीर को विशेष स्वायत्तता प्रदान की थी। फिल्म में इस क्षेत्र के सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य को बेहतरीन तरीके से दर्शाया गया है।
रावसाहेब
'रावसाहेब ' राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता फिल्म निर्माता निखिल महाजन द्वारा निर्देशित मराठी क्राइम थ्रिलर फिल्म है। इस साल के IFFI में इस फिल्म का वर्ल्ड प्रीमियर किया गया है। निखिल महाजन की क्राइम थ्रिलर आदिवासी भूमि में मानव-पशु संघर्ष और न्याय की खोज पर केंद्रित है। यह फिल्म भारत के आदिवासी इलाकों में फिल्माई गई है।
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