संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों को हासिल करने के लिए अब छह साल से भी कम समय बचा है। इन लक्ष्यों को पूरा करने के लिए साझेदारी, इनोवेशन और संसाधनों को जुटाना बहुत बड़ी चुनौती है। यह बात स्टैनफोर्ड सेंटर ऑन फिलैंथरोपी एंड सिविल सोसाइटी (PACS) की कार्यकारी निदेशक प्रिया शंकर ने कही। स्टैनफोर्ड PAC ने हेल्थ केयर, ग्लोबल डेवलपमेंट, परोपकार और तकनीक से जुड़े क्षेत्रों के लीडर्स को एक साथ लाने के लिए एक कार्यक्रम आयोजित किया। इस कार्यक्रम का मकसद सामूहिक कार्रवाई को बढ़ावा देना और ग्लोबल साउथ में मानव स्वास्थ्य में तुरंत और लंबे समय तक सुधार लाना है।
इस कार्यक्रम में इंफोसिस के सह-संस्थापक और गैर-कार्यकारी अध्यक्ष नंदन नीलेकणी और रोहिणी नीलेकणी फिलैंथरोपी की अध्यक्ष रोहिणी नीलेकणी ने ऐसे सिस्टम के बारे में बात की जिनके जरिए बड़े पैमाने पर इस प्लेटफॉर्म का उपयोग करके जानकारी को फैलाया जा सकता है और बदलाव लाया जा सकता है। नीलेकणी ने भारत के डिजिटल आईडी 'आधार' द्वारा बड़े पैमाने पर हासिल की गई पहुंच के बारे में बताया। 1.3 अरब डिजिटल आईडी बनाए गए हैं और उन्हें हर दिन 80 मिलियन बार ऑनलाइन वेरीफाई किया जाता है। नीलेकणी ने बताया कि 700 मिलियन आधार लिंक के आधार पर 'नो योर कस्टमर' (KYC) क्षमता का निर्माण किया गया है।
नीलेकणी ने कहा कि ECHO (एक्सटेंशन फॉर कम्युनिटी हेल्थकेयर आउटकम्स) स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में बड़े पैमाने पर एक परिवर्तनकारी पहल है। उनके प्रयास स्वास्थ्य सेवा को उसी तरह तेजी से बढ़ाते हैं। ECHO ने अरबों लोगों के जीवन को प्रभावित किया है और 2030 तक दो अरब तक पहुंचने का लक्ष्य है। प्रोजेक्ट ECHO की स्थापना 2003 में न्यू मैक्सिको में की गई थी। यह एक वैश्विक स्वास्थ्य और सामुदायिक सेवाओं की पहल है। स्वायत्त क्लिनिकों का एक समूह है जो बेहतर स्वास्थ्य सिस्टम को फैलाने के मिशन से जुड़े हैं। ECHO एक सीखने का मैनेजमेंट सिस्टम है।
ECHO के CTO कार्तिक गर्ग उदाहरण देते हुए बताते हैं कि जन्म के बाद (1 मिनट से पहले नहीं) देर से गर्भनाल को अलग करने से मां और शिशु स्वास्थ्य और पोषण के लिए बेहतर हो सकता है। ECHO ने सूडान में डॉक्टरों के साथ शिशुओं में आयरन की कमी से होने वाले एनीमिया की रोकथाम के लिए गर्भनाल को क्लैंप करने का समय साझा किया, जिससे कई शिशुओं को एनीमिया से बचाया जा सका।
उन्होंने कहा कि गर्भनाल को क्लैंप करने में देरी से प्लेसेंटा और नवजात शिशु के बीच खून का फ्लो जारी रहता है, जिससे जन्म के बाद छह महीने तक शिशु में आयरन की स्थिति में सुधार हो सकता है। यह सूडान जैसे कम संसाधन वाले स्थानों पर रहने वाले शिशुओं के लिए विशेष रूप से प्रासंगिक हो सकता है, जहां आयरन युक्त खाद्य पदार्थों तक सीमित पहुंच है।
इसी तरह प्रोजेक्ट ECHO एक कार्यक्रम है जिसका लक्ष्य जेलों में बंद और ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिए हेपेटाइटिस सी (HCV) देखभाल तक पहुंच में सुधार करना है। यह कार्यक्रम विश्वविद्यालय के विशेषज्ञों को जेलों में काम करने वाले चिकित्सकों से जोड़ता है। उन्हें निरंतर प्रशिक्षण प्रदान करता है। कार्तिक गर्ग ने कहा कि अगर डेटा प्राइवेट रखना जरूरी है, तो इसे एक निश्चित समूह के साथ साझा किया जा सकता है। ईको ने सरकार के साथ जेलों के लिए एक निजी सिस्टम बनाया है जिससे डेटा प्राइवेट रहे।
प्रोजेक्ट ECHO के एमडी, संस्थापक और निदेशक संजीव अरोड़ा वर्षों से यूनिवर्सिटी ऑफ न्यू मैक्सिको (UNM) स्कूल ऑफ मेडिसिन में लीवर विशेषज्ञ के रूप में काम कर रहे थे। वे सभी रोगियों का इलाज करने में असमर्थ होने से निराश थे। हेपेटाइटिस सी वायरस (HCV) वाले मरीजों को उनके क्लिनिक में पहुंचने के लिए आठ महीने इंतजार करना पड़ता था। जब तक वे उनमें से कई को देखते, तब तक उनकी स्थिति खराब हो चुकी होती थी।
इसके बाद अरोड़ा ने इस समस्या का समाधान करने के लिए एक क्रांतिकारी तरीका तैयार किया। अब दूरदराज के क्षेत्रों में चिकित्सकों को जटिल स्वास्थ्य स्थितियों के इलाज और प्रबंधन के लिए वर्चुअली सलाह दी जाती है और प्रशिक्षित किया जाता है। प्राथमिक देखभाल चिकित्सक हर हफ्ते 'tele ECHO क्लिनिक' नामक एक लाइव रिमोट टेलीमेंटोरिंग सत्र के भाग के रूप में एक टीम का हिस्सा बनने के लिए साइन अप करते हैं, जिससे वे HCV वाले मरीजों का इलाज कैसे करें, यह सीख सकें।
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