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ब्रिटेन में मरीजों के लिए 'मरने के अधिकार' बिल का इसलिए विरोध कर रहे हैं धार्मिक नेता

बिल के विभिन्न समूहों पर पड़ने वाले असर को लेकर चिंता जाहिर की गई है। खास तौर पर बुज़ुर्गों और विकलांगों को लेकर, जिन पर अपनी जान लेने का दबाव बन सकता है। इस बिल पर 29 नवंबर को संसद में बहस और वोटिंग होनी है।

ब्रिटेन में हर धर्म से जुड़े धार्मिक नेता एक साथ मिलकर विवादित असिस्टेड डाइंग बिल (assisted dying bill) का विरोध कर रहे हैं। / British roadcasting Corporation

ब्रिटेन में हर धर्म से जुड़े धार्मिक नेता एक साथ मिलकर विवादित असिस्टेड डाइंग बिल (assisted dying bill) का विरोध कर रहे हैं। इस बिल पर 29 नवंबर को संसद में बहस और वोटिंग होनी है। अगर यह बिल पास हो जाता है तो नए कानून के मुताबिक, दो डॉक्टर मरीज की खुशी से दी गई उनकी मांग का मूल्यांकन करेंगे। इसके बाद हाई कोर्ट के जज से मंजूरी लेनी होगी। फिर मरीज को दिया गया पदार्थ खुद लेना होगा, जिससे उसकी मौत हो जाएगी।

लेबर पार्टी की सांसद किम लीडबीटर ने टर्मिनली इल एडल्ट्स (एंड ऑफ लाइफ) बिल पेश किया है। इसके मुताबिक, जिन बीमार लोगों की जिंदगी के आखिरी छह महीने बाकी हैं, वे अपनी पीड़ा खत्म करने के लिए मेडिकल मदद मांग सकते हैं। 

हालांकि, ब्रिटेन के मजहबी नेताओं ने इस बिल की जबरदस्त आलोचना की है। कैथोलिक बिशप्स कॉन्फ्रेंस ऑफ इंग्लैंड एंड वेल्स के अध्यक्ष कार्डिनल निकोल्स और कैंटरबरी के आर्चबिशप जस्टिन वेलबी ने इसका विरोध किया है। वेलबी पहले भी इस बिल को खतरनाक बता चुके हैं। वहीं, मुस्लिम काउंसिल ऑफ ब्रिटेन ने भी अपनी नाराजगी जाहिर की है।

इस हफ्ते, हिंदू और सिख समुदाय के कई नेताओं ने मिलकर इस बिल की निंदा करते हुए एक लेटर पर साइन किए हैं। इनमें हिंदू काउंसिल UK के मैनेजिंग ट्रस्टी अनिल भानोट, गुरु नानक निष्काम सेवक जत्था के अध्यक्ष मोहिंदर सिंह अहलूवालिया, हिंदू फोरम ऑफ ब्रिटेन की अध्यक्ष त्रुप्ति पटेल, इंस्टिट्यूट ऑफ जैनोलॉजी के चेयर मेहूल संघराजका और नेटवर्क ऑफ सिख ऑर्गेनाइजेशन्स UK के डायरेक्टर लॉर्ड सिंह शामिल हैं।

इस लेटर में बिल के विभिन्न समूहों पर पड़ने वाले असर को लेकर चिंता जाहिर की गई है। खास तौर पर बुज़ुर्गों और विकलांगों को लेकर, जिन पर अपनी जान लेने का दबाव बन सकता है। लेटर में लिखा है, 'यह आसानी से समझा जा सकता है कि 'मरने का अधिकार' कैसे 'मरने की जिम्मेदारी' में बदल सकता है।' नेताओं ने कनाडा और ओरेगॉन के उदाहरण दिए हैं और कहा है कि ऐसे ही कानूनों में बनाए गए सुरक्षा उपाय कमजोर लोगों की रक्षा करने में नाकाम रहे हैं। उन्होंने बीमार रोगियों का समर्थन करने के लिए देखभाल में निवेश बढ़ाने का आह्वान किया। 

स्वास्थ्य सचिव वेस स्ट्रीटिंग और न्याय सचिव शबाना महमूद ने भी इस बिल का विरोध किया है। महमूद ने अपने मतदाताओं को लिखे एक पत्र में लिखा, 'राज्य को कभी भी मृत्यु को सेवा के रूप में पेश नहीं करना चाहिए।'

वहीं तमाम विरोध के बावजूद, लीडबीटर का कहना है कि यह बिल जरूरी है ताकि मरने वाले मरीजों को जिंदगी के आखिर में 'पसंद और आजादी' मिल सके। सांसदों को बिल पर स्वतंत्र मतदान की अनुमति दी जाएगी, जिससे वे व्यक्तिगत विवेक के आधार पर अपना वोट डाल सकेंगे। इस वोटिंग के नतीजे का सबको इंतजार है। क्योंकि इससे पता चलेगा कि ब्रिटेन में जीवन के अंत की देखभाल और रोगियों के अधिकारों के बारे में सोचने का तरीका कितना बदल रहा है।

 

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