अमेरिका के उप विदेश मंत्री रिचर्ड वर्मा ने तमाम भू-राजनैतिक चुनौतियों के बीच समुद्र में भारतीय नौसेना की भूमिका की तारीफ की है। यह तारीफ लाल सागर में हूती विद्रोहियों द्वारा कई व्यापारिक जहाजों पर किए गए हमलों को नौसेना द्वारा नाकाम किए जाने की पृष्ठभूमि में आई है।
भारत में अमेरिकी राजदूत रह चुके रिचर्ड वर्मा ने ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन (ओआरएफ) की तरफ से आयोजित एक इंटरैक्टिव सत्र में कहा कि भारत अपनी नौसेना के जरिए लाल सागर में जो कुछ भी कर रहा है और जिस तरह अविश्वसनीय रूप से समर्थन दे रहा है, उसकी हम सराहना करते हैं। मैं अपने सभी अमेरिकी सैन्य भागीदारों और अन्य गठबंधन भागीदारों का इसके लिए आभारी हूं।
Shared my thoughts on the #USIndia relationship with a gathering of bright students and strategic thinkers at the Observer Research Foundation (@orfonline) in New Delhi today. Check out my remarks: https://t.co/5h2sDMXxrU pic.twitter.com/dpPmmvYSqX
— Richard R. Verma (@DepSecStateMR) February 20, 2024
पिछले कुछ हफ्तों में भारतीय नौसेना ने अरब सागर में कई जहाजों पर हमलों के बाद उन्हें मदद पहुंचाई थीं। लाल सागर में सुरक्षा स्थिति के मद्देनजर भारत अमेरिका समर्थित गठबंधन सहित किसी भी गठबंधन में शामिल नहीं हुआ है। इसके बावजूद वह जहाजों की सुरक्षा के लिए आगे आ रहा है।
रिचर्ड वर्मा ने सिख अलगाववादी गुरपतवंत सिंह पन्नू की हत्या की कथित असफल कोशिश से जुड़े सवाल पर कहा कि हम एक अमेरिकी सिख अलगाववादी की हत्या की कथित साजिश के मुद्दे पर भारत से बातचीत कर रहे हैं। हमें इस मामले की जांच के लिए भारत द्वारा गठित उच्चस्तरीय समिति के निष्कर्षों की प्रतीक्षा है।
उन्होंने आगे कहा कि हमने भारत सरकार के सामने अपनी चिंताएं रखी हैं। इस मामले की जांच एक समिति कर रही है। हम भारत सरकार के साथ जुड़े हुए हैं और उनके निष्कर्षों की प्रतीक्षा कर रहे हैं। भारत ने इसे बहुत गंभीरता से लिया है और हम इसके लिए उनके आभारी हैं।
रिचर्ड वर्मा ने कहा कि अमेरिका और भारत के संबंध उस रफ्तार और पैमाने पर आगे बढ़ रहे हैं जिसके बारे में हममें से कई लोगों ने कुछ साल पहले अनुमान तक नहीं लगाया था। वरिष्ठ अमेरिकी अधिकारी ने कहा कि 1961 में कैनेडी के राष्ट्रपति बनने से पहले एक सीनेटर के तौर पर उन्होंने कहा था कि एशिया का भाग्य भारत पर निर्भर है। 1962 में भारत पर चीन के हमले के बाद राष्ट्रपति कैनेडी ने हजारों टन गोला-बारूद की आपूर्ति की थी और महत्वपूर्ण रसद एवं खुफिया सहायता भी दी थी।
हालांकि बाद में भारत और अमेरिका लगभग 25 वर्षों तक अपने अलग-अलग रास्ते पर चले गए। हमें उससे सबक सीखना चाहिए ताकि हम अतीत की गलतियों को न दोहराएं। 2000 में राष्ट्रपति बिल क्लिंटन की भारत यात्रा से दोनों देशों के बीच साझेदारी की नई शुरुआत हुई। अब इन 24 वर्षों में अमेरिका भारत के बीच सहयोग के हर मोर्चे पर नाटकीय वृद्धि हुई है।
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