भारतीय अमेरिकी तुलसी गबार्ड को अमेरिका की टॉप खुफिया अधिकारी यानी डायरेक्टर ऑफ नेशनल इंटेलिजेंस बनाने को हरी झंडी मिल गई है। अमेरिकी सीनेट ने 48 के मुकाबले 52 वोटों से उनकी नियुक्ति को मंजूरी दे दी गई। इसे ट्रंप की एक और बड़ी जीत माना जा रहा है।
तुलसी गबार्ड के पास खुफिया मामलों का खास अनुभव नहीं है, इसके बावजूद रिपब्लिकन पार्टी ने उनका समर्थन किया। कुछ लोग इस नियुक्ति को राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के सबसे विवादास्पद फैसलों में से एक बता रहे हैं।
सीनेट में रिपब्लिकन पार्टी के मैजोरिटी लीडर जॉन थ्यून ने तुलसी गबार्ड की नियुक्ति पर मुहर के बाद हेल्थ एंड ह्यूमन सर्विसेज के सेक्रेटरी पद के लिए रॉबर्ट एफ. केनेडी जूनियर की नामांकन प्रक्रिया शुरू करने की घोषणा की।
43 वर्षीय तुलसी गबार्ड पहले डेमोक्रेट पार्टी का हिस्सा थीं। उन्हें उनके कई बयानों की वजह से दोनों ही दलों के नेताओं की आलोचनाओं का सामना करना पड़ा था। उनके पास खुफिया मामलों का कोई सीधा अनुभव नहीं है। तुलसी ने अमेरिकी प्रतिनिधि सभा में चार कार्यकाल पूरे किए, लेकिन कभी खुफिया समिति का हिस्सा नहीं रहीं और न ही किसी खुफिया एजेंसी में काम किया।
तुलसी गबार्ड अब उस एजेंसी की कमान संभालेंगी, जिसे 11 सितंबर 2001 के आतंकी हमलों के बाद अमेरिकी खुफिया तंत्र के बीच बेहतर समन्वय बनाने के लिए गठित किया गया था। यह अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा सबसे अहम पद माना जाता है।
सेंटर फॉर स्ट्रैटेजिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज की इंटेलिजेंस, नेशनल सिक्योरिटी और टेक्नोलॉजी प्रोग्राम की निदेशक एमिली हार्डिंग ने कहा कि नेशनल इंटेलिजेंस के निदेशक का पद बेहद महत्वपूर्ण होता है। इस पद पर बैठे व्यक्ति को अति गोपनीय सूचनाओं तक व्यापक पहुंच होती है और वह राष्ट्रपति का मुख्य खुफिया सलाहकार होता है।
तुलसी गबार्ड की इस नियुक्ति से अमेरिकी राजनीति में फिर से बहस छिड़ गई है। देखना यह होगा कि अनुभव की कमी के बावजूद वह इस जिम्मेदारी को कैसे निभाती हैं।
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