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भारतीय प्रोफेसर की टीम ने ईजाद की ऐसी तकनीक, मिनटों में जल के विषैले तत्वों की पहचान संभव

प्रोफेसर द्रविड़ के अनुसार, माइक्रोकैंटिलीवर तकनीक पारंपरिक तरीकों की तुलना में कहीं अधिक तेज है

प्रोफेसर विनायक पी. द्रविड़ / LinkedIn

नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी, इलिनॉय के भारतीय नैनोटेक्नोलॉजी विशेषज्ञ प्रोफेसर विनायक पी. द्रविड़ ने जल में विषैले तत्वों की पहचान के लिए एक अत्याधुनिक तकनीक विकसित की है। यह प्रणाली माइक्रोकैंटिलीवर तकनीक और सिंथेटिक बायोलॉजी का संयोजन है, जो लेड और कैडमियम जैसे खतरनाक धातुओं का पता लगाने में सक्षम है।

मिनटों में परिणाम देने वाली प्रणाली

प्रोफेसर द्रविड़ के अनुसार, "माइक्रोकैंटिलीवर तकनीक पारंपरिक तरीकों की तुलना में कहीं अधिक तेज़ है और दो से तीन मिनट में सटीक परिणाम प्रदान कर सकती है। यह एक साथ कई तत्वों की पहचान करने में सक्षम है, जबकि आम सेंसर केवल एक प्रोटीन पर निर्भर होते हैं।"

कैसे काम करती है यह तकनीक?

  • सिस्टम में सिलिकॉन से बने माइक्रोकैंटिलीवर का उपयोग किया गया है।
  • इनकी सतह विशेष रूप से डिज़ाइन किए गए डीएनए अणुओं से कोटेड होती है।
  • जब जल में विषैले तत्व मौजूद होते हैं, तो ये झुकते और वापस सीधा होते हैं, जिससे संदूषकों की सटीक पहचान संभव होती है।

कोविड-19 परीक्षण में भी हुआ था सफल उपयोग

प्रोफेसर द्रविड़ और उनके सहयोगी प्रोफेसर जूलियस लक के नेतृत्व में इस तकनीक को कोविड-19 वायरस की पहचान के लिए पहले ही सफलतापूर्वक उपयोग किया जा चुका है। अब इसे पर्यावरणीय निगरानी के लिए और अधिक उन्नत बनाया गया है।

पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य के लिए वरदान

यह तकनीक जल प्रदूषण की तेजी से पहचान करने के साथ-साथ मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण सुरक्षा में भी अहम भूमिका निभा सकती है।

प्रोफेसर विनायक पी. द्रविड़ का योगदान

  • नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी में अब्राहम हैरिस प्रोफेसर
  • NUANCE सेंटर और SHyNE रिसोर्स के संस्थापक निदेशक
  • इंटरनेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ नैनोटेक्नोलॉजी में वैश्विक कार्यक्रमों के एसोसिएट डायरेक्टर

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