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बांग्लादेश में हिंदुओं पर हिंसा : व्हाइट हाउस के सामने प्रदर्शन, ब्रिटेन की संसद में भी उठा मुद्दा

अमेरिका में प्रवासी समुदाय ने सड़कों पर उतरकर हिंसा पर विराम लगाने और हिंदुओं की रक्षा करने की गुहार लगाई है तो ब्रिटेन की संसद में भी यह मुद्दा उठाया गया है।

हिंसा से मुक्ति की मांग। / Video Grab/X

बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रही हिंसा और प्रताड़ना के खिलाफ दुनियाभर में आवाजें उठ रही हैं। अमेरिका में प्रवासी समुदाय सड़कों पर उतरकर हिंसा पर विराम लगाने और हिंदुओं की रक्षा करने की गुहार लगा रहा है तो ब्रिटेन की संसद में भी यह मुद्दा उठाया गया है।  

इसी क्रम में प्रवासी समुदाय ने बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रही हिंसा के खिलाफ व्हाइट हाउस के सामने प्रदर्शन किया। हिंसा और अत्याचार के खिलाफ हुए इस प्रदर्शन में महिलाओं के साथ ही बच्चे भी शामिल हुए। प्रदर्शनकारियों ने अपने हाथ में बांग्लादेश में हिंदुओं को बचाने, शोशण पर विराम लगाने और हिंसा से मुक्ति की मांग करने वाले पोस्टर-बैनर लिए हुए थे। साथ में 'मुक्ति चाही... मुक्ति चाही' के नारे भी लग रहे थे। 
 



प्रवासी समुदाय ने अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन से मांग की है कि वे यूनुस सरकार पर अपने अपार प्रभाव का इस्तेमाल करें ताकि कट्टरपंथी इस्लामवादियों की ओर से हिंदुओं पर किये जा रहे हमलों को बांग्लेदेशी सरकार रोके। इसी के साथ प्रवासी समुदाय ने चिन्मय दास की तत्काल रिहाई की भी मांग की।  

ब्रिटिश संसद में उठा माला
ब्रिटेन की संसद में भी बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रही हिंसा को समाप्त करने का मामला उठाया गया है। ब्रिटिश सांसद बैरी गार्डिनर ने ब्रिटिश संसद में हिंदुओं के खिलाफ हिंसा का मुद्दा उठाया और स्थिति को 'चाकू की धार' पर बताया। उन्होंने हिंदू मंदिरों पर हमले और इस्कॉन नेता चिन्मय कृष्ण दास की गिरफ्तारी को अल्पसंख्यकों पर अत्याचार का प्रमाण कहा। 
 



गार्डिनर ने कहा कि बांग्लादेश में हिंसा के 2000 से अधिक मामले देखे गए हैं। इनमें से अधिकांश में अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय को निशाना बनाया गया है। बांग्लादेशी आबादी का 10 फीसदी से भी कम हिस्सा हैं हिंदू। उन पर लगातार हमले किये जा रहे हैं। हिंदुओं के आस्था स्थलों पर हमले हो रहे हैं और साधु-संतों को प्रताड़ित किया जा रहा है। 

सांसद गार्डिनर ने कहा कि इस्कॉन आधुनिक हिंदुत्व का आंदोलन है। संस्था के पूर्व नेता को अवैध रूप से गिरफ्तार कर लिया गया जबकि हिंसा में शामिल किसी भी शख्स को न तो आरोपी बनाया गया और न मंदिरों पर हमला करने वालों को गिरफ्तारी हुई। 

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