विजय आनंद ने अपने भाई देव आनंद की नवकेतन फिल्म्स के लिए फिल्म 'तेरे मेरे सपने' का निर्देशन किया था। आपको याद है? 1971 की यह शानदार फिल्म डॉ. ए क्रोनिन के 1937 के उपन्यास, द सिटाडेल से प्रेरित बताई जाती है, जिसने एक दशक बाद यूके में राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा (NHS) की नींव रखी थी।
हालांकि उपन्यास से हटकर, आनंद बंधुओं ने पटकथा में एक नया ट्रैक पेश किया। इसमें हेमा मालिनी देव के डॉ. आनंद के प्यार में पागल हो जाती हैं। प्यार के चलते फिल्म में डॉ. आनंद अपने काम, अपने सिद्धांतों और यहां तक कि अपनी पत्नी निशा से भी दूर हो जाते हैं। डॉ. आनंद की पत्नी का किरदार मुमताज ने निभाया था।
कथित तौर पर इस उप-कथानक में डॉ. चमनलाल बाली के साथ वैजयंतीमाला के रोमांस का वास्तविक जीवन निहित था। जो बात अफवाहों को आधार देती है वह है हेमा के किरदार के लिए नाम का चुनाव- मालतीमाला। और यह तथ्य भी कि वैजयंतीमाला की तरह वह भी एक ग्लैमरस अभिनेत्री है जो तनाव और चिंता के कारण गंभीर माइग्रेन सिरदर्द से पीड़ित है। इसी बीमारी के कारण राज कपूर ने 1964 में संगम की शूटिंग के दौरान अपने चिकित्सक डॉ. बाली को उनकी (वैजयंतीमाला) देखभाल के लिए भेजा था।
वैजयंती माला का नाम इससे पहले दक्षिण में जैमिनी गणेशन, शिवाजी गणेशन और एमजीआर जैसे सुपरस्टार्स के साथ जोड़ा गया था। जब वह बॉलीवुड में आईं तो अफवाहें उनके पीछे रहीं। ऐसी चर्चा थी कि बीआर चोपड़ा की फिल्म गंगा जमुना में मधुबाला की जगह लेने के बाद दिलीप कुमार ने व्यक्तिगत रूप से उनकी साड़ियां चुनीं।
कहा जाता है कि राज कपूर भी उन पर मोहित हो गए थे और उन्होंने शादी का वादा भी किया था। वैजयंतीमाला ने अपने संस्मरण में इन रिपोर्टों को प्रचार स्टंट के रूप में खारिज कर दिया और 'संगम' की पब्लिसिटी की कोशिश के लिए आर के स्टूडियो दोषी ठहराया। हालांकि राज कपूर के बेटे ऋषि ने अपनी आत्मकथा में इस अफेयर की पुष्टि की है। यह स्वीकार करते हुए कि उनकी मां कृष्णा बच्चों के साथ मुंबई के मरीन ड्राइव पर नटराज होटल जा पहुंची थीं और मामला खत्म होने तक घर लौटने से इनकार कर दिया था।
डॉ. बाली एक विवाहित व्यक्ति थे और उनके तीन बच्चे भी थे लेकिन वैजयंतीमाला उस व्यक्ति की ओर आकर्षित थीं जो उनसे बिल्कुल अलग दुनिया में रहता था। 2020 में तहलका के साथ एक साक्षात्कार में मुंबई में जीवन बदलने वाली उन मुलाकातों को याद करते हुए उन्होंने स्वीकार किया कि उन्हें पता था कि उनको प्यार हो गया है। जब डॉ. बाली उन्हे 'देखने' नहीं आते थे तो वैजयंतीमाला को उनकी याद सताती थी।
वैजयंतीमाला को यह अहसास बहुत पहले ही हो गया था। लेकिन उसकी दादी, जिन्होंने उनके पिता के साथ मिलकर उनका पालन-पोषण किया था इस रिश्ते के सख्त खिलाफ थीं। वह नहीं चाहती थीं कि माला पर किसी का घर तोड़ने वाली की तोहमत लगे। हालांकि अभिनेत्री को अपनी दादी के खिलाफ जाने से दुख था। फिर हुआ यह है कि डॉ. बाली ने अपनी पहली पत्मी रूबी को तलाक दे दिया। कहते हैं कि भारी गुजारा भत्ता देने के बाद डॉ. बाली अलग हुए थे। डॉ. बाली और वैजयंतीमाला ने 1968 में शादी कर ली।
शादी के बाद वैजयंतीमाला ने 'सपनों का सौदागर' से किनारा करके सभी को चौंका दिया था। इस फिल्म को उन्होंने राज कपूर के साथ साइन किया था। रिबाउंड पर फिल्म हेमा मालिनी के पास चली गई। 1969 में, उनकी दो फिल्में रिलीज़ हुईं। शम्मी कपूर के साथ सुपरहिट प्रिंस और धर्मेंद्र के साथ प्यार ही प्यार जिसे दर्शकों का अधिक प्यार नहीं मिला। लेकिन तब तक माला ने इंडस्ट्री छोड़ने का फैसला कर लिया था।
उनकी आखिरी हिंदी फिल्म 1970 में राजेंद्र कुमार के साथ गंवार थी। इसके बाद वह चेन्नई चली गईं जहां डॉ. बाली बस गए थे। फिर उन्हे मुम्बई लौटने के लिए राजी नहीं किया सका। वे बड़े बैनरों और आंधी, दीवार और क्रांति जैसी चुनौतीपूर्ण भूमिकाओं वाली फिल्में ठुकरा चुकी थीं। तब उन्होंने अपना ध्यान अपने पहले प्यार भरतनाट्यम पर केंद्रित कर दिया।
वैजयंतीमाला बचपन से ही नृत्य कर रही थीं और महज पांच साल की उम्र में उन्होंने पोप के सामने प्रस्तुति दी थी। उन्हें 15 साल की उम्र में फिल्मों में ब्रेक मिला जब एवीएम स्टूडियो के निर्माता ने उनके नृत्य प्रदर्शन को देखा और उन्हें वाजाकई की पेशकश की।
फिल्मों से संन्यास लेने के बाद उन्होंने दुनिया भर की यात्रा की और 1969 में मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा की 21वीं वर्षगांठ मनाने के लिए संयुक्त राष्ट्र महासभा में प्रदर्शन करने वाली पहली भारतीय नर्तकी बनीं। आज भी 90 साल की उम्र में वैजयंती माला सार्वजनिक प्रस्तुतियां देती रहती हैं।
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