फ्रांस में सिख लड़कों को पगड़ी पहनकर स्कूल जाने की इजाजत भले ही न हो, लेकिन दो सिख खिलाड़ियों ने ओलंपिक गेम्स में पोडियम तक पहुंचकर एक मजबूत संदेश दिया है कि पगड़ी महज एक पहनावा नहीं है बल्कि सिखों की पहचान का एक अटूट हिस्सा है जिसे ओलंपिक जैसे आयोजन भी अलग नहीं कर सकते।
ओलंपिक के इतिहास में पहली बार दस्तार (पगड़ी) पहने सिख सरबजोत सिंह ने 10 मीटर एयर पिस्टल की मिश्रित टीम स्पर्धा में कांस्य पदक जीता। कुछ हफ़्ते बाद, एक अन्य सिख खिलाड़ी हरविंदर सिंह ने सरबजीत के ऐतिहासिक कारनामे को दोहराया। वह तीरंदाजी की व्यक्तिगत रिकर्व स्पर्धा में स्वर्ण पदक विजेता के रूप में पोडियम पर पहुंचने वाले पहले पगड़ीधारी सिख पैरालिंपियन बने।
फ्रांस में बहुत से लोग अभी भी सिखों और सिख धर्म के बारे में नहीं जानते। तीसरी बार ग्रीष्मकालीन ओलंपिक्स और पहली बार पैरालिंपिक की मेजबानी करने वाले शहर में बहुत से पेरिसवासी पगड़ीधारी सिखों को देखकर सुखद आश्चर्य में थे। ये अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, अफ्रीका, एशिया और यूरोप सहित अन्य महाद्वीपों से इस मेगा आयोजन को देखने आए थे।
जतिंदरपाल सिंह कहते हैं कि जहां जहां खेल जाता है, हम भी वहीं पहुंच जाते हैं। हम न केवल ओलंपिक खेलों के लिए बल्कि फीफा, हॉकी और क्रिकेट विश्व कप सहित अन्य प्रमुख खेल आयोजनों में भी शिरकत कर चुके हैं। जतिंदरपाल जुलाई में जर्मनी में यूरो कप खेल देखने के बाद 2024 के पेरिस ओलंपिक्स में आए थे। अपने परिवार के सदस्यों और दोस्तों के साथ जतिंदरपाल इससे पहले एशियाई खेलों और विश्व कप हॉकी में भी हिस्सा ले चुके हैं।
उनका कहना था कि हम सरबजीत सिंह को पोडियम पर देखकर खुश हैं। उन्होंने पोडियम पर पगड़ी पहनकर मेडल लेकर सिख समुदाय को सम्मान दिलाया है। वैसे तो सिखों का हॉकी और अन्य खेलों में पोडियम तक पहुंचने का लंबा इतिहास रहा है, लेकिन सरबजोत एक अपवाद हैं। उन्होंने पगड़ी पहनकर ही प्रतियोगिता में भाग लिया और पगड़ी पहनकर ही पोडियम पर गए। पेरिस में उनके साथ उनके बहनोई मनिंदर सिंह भी थे। उन्होंने भारतीय हॉकी टीम का एक भी मैच नहीं छोड़ा।
इंग्लैंड के रहने वाले तरलोचन सिंह पनेसर, जैरी सिंह, जस फ्लोरा और ओलंपियन हरविंदर सिंह सिबिया अनुभवी खिलाड़ी हैं। वे एक ग्रुप का हिस्सा हैं, जो भारतीय हॉकी टीम को खेलते देखने के लिए हर जगह यात्रा करते हैं। उनके समूह के एक सदस्य ओलंपियन अवतार सिंह सोहल पेरिस नहीं जा सके क्योंकि उन्हें समय पर फ्रांस का वीजा नहीं मिल सका। नैरोबी में रहने वाले अवतार सिंह सोहल छह ओलंपिक्स में हिस्सा ले चुके हैं। चार बार खिलाड़ी के रूप में, एक बार कोच बनकर और एक बार एफआईएच के तकनीकी प्रतिनिधि के रूप में। अगले छह ओलंपिक में वे एशियाई हॉकी के समर्थक के रूप में पहुंचे थे।
कई हॉकी प्रेमी जर्मनी के डॉ. जोगिंदर सिंह साही को याद करते हैं। हड्डी रोग विशेषज्ञ डॉ. जोगी भारतीय हॉकी के पर्याय थे। वह 30 साल से भी अधिक समय तक अपनी मर्जी से यूरोप में भारतीय हॉकी टीमों के साथ जाते रहे। वह दवाओं से भरा अपना बैग लेकर जाते थे। हॉकी जगत में डॉ. जोगी के नाम से लोकप्रिय डॉ. जोगिंदर सिंह मूल रूप से हरियाणा के मुस्तफाबाद के रहने वाले थे और जर्मनी के श्वेनफर्ट में बस गए थे। डॉ. जोगी ने सक्रिय प्रैक्टिस से रिटायर होने के बाद चंडीगढ़ के पंचकूला में अपना घर बनाया था, जहां कुछ साल पहले उनका निधन हो गया था।
पेरिस में भी कई भारतीय बसे हैं। इनमें से अधिकांश पंजाब या गुजरात से हैं। फ्रांस की राजधानी में पिछले 30 साल से रेस्तरां चलाने वाले अरविंद अहीर कहते हैं कि हम बहुत उत्साहित हैं कि हमारे खेल सितारों ने पेरिस ओलंपिक और पैरालंपिक में इतना अच्छा प्रदर्शन किया है। मैंने तो भारतीय दल के सभी सदस्य और उनके परिजनों को हमारी मेहमाननवाजी का आनंद लेने का ऑफर भी दिया था। पैरालंपिक के समापन के बाद उन्होंने पूरे भारतीय दल को अपने रेस्तरां में आमंत्रित किया और सभी खिलाड़ियों और अधिकारियों को सम्मानित किया था।
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