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'हार के सबक : कैसे कमला हैरिस अमेरिका के कामकाजी वर्ग से जुड़ने में नाकाम रहीं'

अगर डेमोक्रेटिक पार्टी अपना पैर फिर से जमाना चाहती है, तो उसे अमेरिकी लोगों के लिए सबसे महत्वपूर्ण मुद्दों के साथ सार्थक रूप से जुड़ना होगा। 2024 में हार सिर्फ अभियान की रणनीति पर नहीं, बल्कि पार्टी को कौन सी बड़ी दिशा लेनी चाहिए, इसपर चिंतन करने का समय है।

11 अक्टूबर, 2024 को स्कॉट्सडेल, एरिजोना में एक अभियान कार्यक्रम में उपराष्ट्रपति कमला हैरिस। / REUTERS/Elizabeth Frantz

कमला हैरिस के 2024 के चुनाव अभियान में टॉप फंडरेजर रहते हुए, मुझे अमेरिका में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए किए जा रहे जोरदार और बेहतरीन अभियान को देखने का मौका मिला। हालांकि, एक अरब डॉलर से भी ज्यादा पैसे जुटाने के बावजूद - जो डोनाल्ड ट्रम्प के जुटाए गए धन से दुगुना से भी ज्यादा है - हमारे अभियान को उस चुनाव में हार का सामना करना पड़ा। यह चुनाव डेमोक्रेटिक पार्टी के लिए एक ऐतिहासिक मोड़ बन गया। यह अभियान बहुत ही मजबूत था और भविष्य को लेकर अच्छा दृष्टिकोण था। लेकिन नतीजों ने राजनीतिक परिदृश्य में व्यापक बदलाव और मुख्य डेमोग्राफिक समूहों से पार्टी के जुड़ाव को फिर से स्थापित करने की जरूरत को उजागर किया है। 

कमला हैरिस के अभियान की ताकत: 

कमला हैरिस के 2024 का चुनाव अभियान, जो बहुत कम समय तक चला, अमेरिका के भविष्य के लिए एक स्पष्ट और आशावादी दृष्टिकोण पेश करता था। इसने व्यावहारिक समाधान दिए। विभिन्न समुदायों को एकजुट करने का प्रयास किया। और मतदाताओं के व्यापक संबंध को प्रेरित किया। अभियान ने सफलतापूर्वक महत्वपूर्ण धन जुटाया, तेजी से गति पकड़ी और व्यापक राजनीतिक निराशा के बीच उम्मीद और समावेशिता प्रदान करने पर ध्यान केंद्रित किया।

अभियान में पैदा हुई ऊर्जा और उत्साह स्पष्ट रूप से महसूस किए जा सकते थे। बहुत कम समय में, हैरिस ने खुद को अमेरिकी लोगों के सामने पेश किया। आगे की चुनौतियों को परिभाषित किया। एकता का दर्शन पेश किया। धन जुटाने में मिली सफलता ने नेतृत्व की व्यापक इच्छा को दर्शाया जो देश की चुनौतियों को दूर करने में मदद कर सके। हैरिस की टीम ने महत्वपूर्ण मतदाता समूहों में संगठित करने के लिए कड़ी मेहनत की।

हालांकि, इन सबके बावजूद, अंतिम परिणाम ने इस बात पर प्रकाश डाला कि देश की चिंताएं विकसित हुई हैं और बदल गई हैं। इससे ऐसी चुनौतियां सामने आईं जिनके लिए अधिक सूक्ष्म दृष्टिकोण की आवश्यकता थी। 

वर्किंग क्लास के मतदाताओं से जुड़ाव का अभाव: 

2024 के चुनाव में सबसे महत्वपूर्ण बात यह थी कि वर्किंग क्लास के मतदाता रिपब्लिकन पार्टी की तरफ झुक गए। डेमोक्रेटिक पार्टी का परंपरागत आधार - वर्किंग क्लास के परिवार, मध्यम वर्ग समुदाय - उन मुद्दों को लेकर बढ़ती निराशा व्यक्त कर रहे थे जो उनके ख्याल से हल नहीं हो रहे थे। आर्थिक तंगी, जीवनयापन की बढ़ती लागत, महंगाई, अपराध और इमिग्रेशन स्विंग राज्यों में मतदाताओं की मुख्य चिंताएं थीं। कई लोगों को ऐसा लग रहा था कि पार्टी उनकी रोजमर्रा की चुनौतियों को सुलझाने के बजाय वैचारिक मुद्दों पर ज्यादा ध्यान दे रही है।

वर्किंग क्लास के मतदाता, जो ऐतिहासिक रूप से डेमोक्रेटिक पार्टी के साथ थे, अब खुद को राष्ट्रीय संवाद से दूर महसूस कर रहे थे। किराने का सामान और किराए जैसी जरूरी चीजों की बढ़ती कीमतों के साथ-साथ सीमा सुरक्षा जैसे मुद्दों को हल करने में कथित विफलता ने कई लोगों को डेमोक्रेटिक पार्टी के संदेश पर संदेह किया। विशेष रूप से, टेक्सास, एरिजना और फ्लोरिडा जैसे सीमावर्ती राज्यों में हिस्पैनिक समुदाय ने सीमा सुरक्षा और इमिग्रेशन सुधार पर जोर न देने पर नाराजगी व्यक्त की। अवैध इमिग्रेशन की धारणा ने इन चिंताओं को और बढ़ा दिया। इससे कई हिस्पैनिक मतदाता ट्रम्प की तरफ चले गए, जिन्होंने (ट्रम्प) अपने मंच में सीमा सुरक्षा और कानून प्रवर्तन को प्रमुख स्थान दिया था। 

इसी तरह, उन समुदायों में जहां अपराध बढ़ रहा था, कई मतदाताओं को ऐसा लग रहा था कि उनकी सुरक्षा को प्राथमिकता नहीं दी जा रही है। शहरी क्षेत्रों में कानून का राज न होने की धारणा ने इनमें से कुछ मतदाताओं को अपना समर्थन फिर से विचारने के लिए प्रेरित किया। अफ्रीकी अमेरिकी मतदाता, जो पारंपरिक रूप से डेमोक्रेटिक पार्टी के सबसे वफादार मतदाता समूह रहे हैं, उनके लिए संदेश प्रभावी नहीं दिखा। आर्थिक अवसर, किफायती आवास और पुलिस सुधार जैसे व्यवस्थित मुद्दों को हल करना महत्वपूर्ण मुद्दे थे, लेकिन कई को ऐसा लग रहा था कि इन चिंताओं पर फोकस नहीं किया जा रहा है। ये मतदाता, खास तौर पर मुकाबले के राज्यों में, बढ़ते हुए ट्रम्प के आर्थिक पुनरुद्धार के वादों और नीतियों की ओर झुक रहे थे जो उनकी तत्काल जरूरतों से सीधे तौर पर संबंधित थीं।

1 बिलियन डॉलर से ज्यादा पैसे जुटाने और खर्च करने के बावजूद, कमला हैरिस के 2024 के चुनाव अभियान उन मतदाताओं के साथ जुड़ने में नाकाम रहे जिनका सबसे ज्यादा महत्व था। सेलेब्रिटी एंडोर्समेंट, स्टार-स्टडेड कॉन्सर्ट और एलीट राजनीतिक हस्तियों के समर्थन पर ज्यादा निर्भरता पार्टी और मध्यम वर्ग के अमेरिकियों के बीच बढ़ते अंतर को पाटने में नाकाम रही, जो किराने का सामान, किराए और स्वास्थ्य सेवा की बढ़ती कीमतों से जूझ रहे थे। जबकि डेमोक्रेट्स को अमीर दानदाताओं और हॉलीवुड का समर्थन प्राप्त था, वे महत्वपूर्ण मतदाता समूहों का समर्थन खो बैठे। 

इसके अलावा, हैरिस के अभियान में प्रमुख जातीय समुदायों में काफी बदलाव देखने को मिले। भारतीय अमेरिकी, एशियाई अमेरिकी और मुस्लिम और अरब अमेरिकी (खास तौर पर पेंसिल्वेनिया, मिशिगन जैसे मुकाबले के राज्यों में) पार्टी की दिशा को लेकर निराश होते जा रहे थे। भारतीय अमेरिकी समुदाय, जो पहले डेमोक्रेट्स के मजबूत समर्थक थे, इमिग्रेशन सुधार, रोजगार के अवसर, अमेरिका-भारत संबंध, हिंदू मंदिरों पर हमले, बांग्लादेश और कनाडा में हिंदुओं पर हमले और बढ़ती जीवनयापन की लागत जैसे मुद्दों को लेकर चिंता व्यक्त कर रहे थे। मिशिगन में, जहां अरब अमेरिकी और मुस्लिम आबादी काफी ज्यादा है, कई मतदाताओं को ऐसा लग रहा था कि उनकी चिंताओं को राष्ट्रीय स्तर पर होने वाली राजनीतिक बहसों के पक्ष में दबा दिया जा रहा है। नतीजतन, ये समुदाय ट्रम्प की तरफ झुक रहे थे। उन्हें ऐसा लग रहा था कि उनके मुद्दों को ट्रम्प के मंच द्वारा बेहतर तरीके से संबोधित किया जा रहा है।

2024 के चुनाव ने एलीट धन जुटाने और रोजमर्रा के अमेरिकियों की चिंताओं, खास तौर पर अर्थव्यवस्था, इमिग्रेशन, बढ़ते अपराध और महंगे विदेशी युद्धों जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर गहरे अंतर को उजागर किया है। नतीजे एक स्पष्ट याद दिलाते हैं कि जब आम कामकाजी वर्गों के परिवारों की जरूरतों को नजरअंदाज किया जाता है तो चमक-दमक वाले अभियान और बड़े पैसे वाले दानदाता काफी नहीं होते। 

सांस्कृतिक खाई और विभाजनकारी बयानबाजी: 

2024 के चुनाव ने देश में सांस्कृतिक खाई की गहराई को भी उजागर किया। डेमोक्रेटिक पार्टी का संदेश, जो सांस्कृतिक मुद्दों पर आधारित था, मतदाताओं को एकजुट करने में कारगर नहीं रहा। कई मतदाताओं - खास तौर पर उपनगरीय और ग्रामीण क्षेत्रों में - को ऐसा लग रहा था कि पार्टी एलीट शहरी चिंताओं पर अत्यधिक ध्यान केंद्रित कर रही है, जबकि रोजमर्रा के कामकाजी परिवारों के संघर्षों को नजरअंदाज कर रही है।

इसी समय, कठोर और विभाजनकारी बयानबाजी, जो अक्सर ट्रम्प समर्थकों के विरुद्ध निर्देशित की जाती थी, ने कई लोगों को अलग कर दिया जो डेमोक्रेटिक पार्टी से जुड़ने के लिए तैयार थे। 'नाजी', 'फासीवादी' और 'कचरा' जैसे शब्दों का उपयोग मतदाताओं के बड़े हिस्से का वर्णन करने के लिए किया गया, जिससे ध्रुवीकरण और गहरा हो गया और वे लोग पार्टी से दूर हो गए जो अन्यथा एक अधिक समावेशी दृष्टिकोण के लिए खुले हो सकते थे। हालांकि यह भाषा डेमोक्रेटिक आधार के लिए प्रभावी रही होगी, लेकिन इसने कई मतदाताओं को अस्वीकार और अपमानित महसूस कराया, जिससे सांस्कृतिक खाई और चौड़ी हो गई।

युवा, खास तौर पर युवा श्वेत मतदाता, इस कथा को नकारते हैं। उन्हें ऐसा लगता है कि डेमोक्रेटिक पार्टी असहिष्णु हो गई है, लोगों को रचनात्मक संवाद में सम्मिलित करने की जगह वह दुश्मन के रूप में पहचान करने पर अधिक ध्यान देती है। पार्टी की सभी अमेरिकियों को सुनने और प्रतिनिधित्व करने की क्षमता में यह विश्वास का नुकसान चुनाव के परिणामों में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

रणनीतिक चूक:

हालांकि अभियान का संदेश और फोकस अच्छे इरादों से था, लेकिन कुछ रणनीतिक फैसले ऐसे थे जिन्होंने पार्टी की पहुंच को आगे नहीं बढ़ाया। एक प्रमुख फैसला मिनेसोटा के गवर्नर टिम वाल्ज को हैरिस का रनिंग मेट चुनना था। हालांकि वाल्ज एक सक्षम और सम्मानित नेता हैं, लेकिन उन्होंने पेंसिल्वेनिया के अटॉर्नी जनरल जोश शेपिरो जैसे संभावित उम्मीदवारों की तरह क्षेत्रीय आकर्षण नहीं दिखाया, जो मुकाबले के राज्यों में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते थे। शेपिरो के पेंसिल्वेनिया के मजदूर वर्ग और उपनगरीय मतदाताओं से गहरे संबंध ने हैरिस को इस महत्वपूर्ण मुकाबले के राज्य में वह फायदा दिलाया हो सकता था, जिसकी उन्हें जरूरत थी।

ट्रम्प की जीत: मजदूर वर्ग का बदला
अंततः, ट्रम्प की जीत को कामकाजी वर्ग के मतदाताओं की चिंताओं की प्रतिक्रिया के रूप में देखा जा सकता है, जिन्हें ऐसा लग रहा था कि उनकी आवाज को नजरअंदाज किया जा रहा है। कानून और व्यवस्था को बहाल करने, सीमा को सुरक्षित करने और मध्यम वर्ग के लिए अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने पर उनका ध्यान उन लोगों के लिए बहुत प्रभावी था जिन्हें राजनीतिक प्रक्रिया से अलग थका हुआ महसूस हो रहा था। कई मतदाताओं के लिए, ट्रम्प के वास्तविक कार्रवाई के वादे डेमोक्रेटिक पार्टी द्वारा प्रस्तावित अमूर्त और दूरगामी समाधानों से अधिक आकर्षक थे।

आर्थिक राष्ट्रवाद, कानून और व्यवस्था और पारंपरिक अमेरिकी मूल्यों की रक्षा पर ट्रम्प का संदेश उसके विपरीत था जिसे कई लोग डेमोक्रेट्स की अपनी तत्काल जरूरतों को संबोधित करने में विफलता के रूप में देख रहे थे। कामकाजी वर्ग के मतदाता यह उम्मीद करते हुए कि एक ऐसा राष्ट्रपति जो उनकी चिंताओं पर ध्यान देगा और व्यावहारिक परिणाम देगा, ट्रम्प की तरफ मुड़ गए। 

ट्रम्प के नेतृत्व में अमेरिका-भारत के संबंधों में मज़बूती: 

भविष्य की ओर देखते हुए, एक क्षेत्र जहां ट्रम्प का नेतृत्व वैश्विक संबंधों को फायदा पहुंचा सकता है वह है अमेरिका-भारत के संबंधों को मजबूत करना। अपने पहले कार्यकाल के दौरान, ट्रम्प ने दोनों देशों के बीच संबंधों को गहरा करने के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाए। व्यापार, रक्षा सहयोग और साझा वैश्विक चुनौतियों पर ध्यान केंद्रित किया। ट्रम्प के दूसरे कार्यकाल में, हम इन क्षेत्रों में निरंतर विकास की उम्मीद कर सकते हैं। खास तौर पर जबकि दोनों देश चीन के बढ़ते प्रभाव को संतुलित करने के लिए काम कर रहे हैं। हालांकि हैरिस के नेतृत्व वाले डेमोक्रेटिक पार्टी का अपना वैश्विक एजेंडा था, ट्रम्प का 'अमेरिका पहले' दृष्टिकोण भारत की राष्ट्रीय प्राथमिकताओं के साथ अधिक घनिष्ठता से मेल खाता है, जिससे संभावित रूप से और भी मजबूत द्विपक्षीय संबंध बन सकते हैं। 

निष्कर्ष: चिंतन और परिवर्तन का आह्वान: 

2024 का चुनाव डेमोक्रेटिक पार्टी के लिए एक जागने का आह्वान है। रेकॉर्ड मात्रा में धन जुटाने, एक व्यापक गठबंधन को प्रेरित करने और उम्मीद और आशावाद का संदेश देने के बावजूद, परिणामों ने पार्टी के लिए कामकाजी वर्ग के मतदाताओं, अश्वेत समुदायों और महत्वपूर्ण जातीय समूहों से फिर से जुड़ने की जरूरत को रेखांकित किया है, जो लंबे समय से पार्टी का आधार रहे हैं। इसमें कोई शक नहीं है कि महांगई, अपराध, इमिग्रेशन और आर्थिक अवसर जैसे मुद्दों ने मतदाताओं के मन पर गहरा प्रभाव डाला। डेमोक्रेटिक पार्टी को इन चिंताओं को अधिक सीधे तौर पर संबोधित करने के लिए अपना ध्यान बदलना होगा।

अगर डेमोक्रेटिक पार्टी अपना पैर फिर से जमाना चाहती है, तो उसे अमेरिकी लोगों के लिए सबसे महत्वपूर्ण मुद्दों के साथ सार्थक रूप से जुड़ना होगा। 2024 में हार सिर्फ अभियान की रणनीति पर नहीं, बल्कि पार्टी को कौन सी बड़ी दिशा लेनी चाहिए, इसपर चिंतन करने का समय है। अगर डेमोक्रेट्स इस देश को आगे बढ़ाने की उम्मीद करते हैं, तो देश की चुनौतियों के लिए अधिक जमीनी, समावेशी और व्यावहारिक दृष्टिकोण जरूरी है।

(लेखक अजय भूटोरिया एक कम्युनिटी लीडर और लंबे समय से डेमोक्रेटिक फंडरेजर हैं। इस लेख में व्यक्त किए गए विचार और राय लेखक के हैं और जरूरी नहीं कि वे न्यू इंडिया अबॉर्ड की आधिकारिक नीति या स्थिति को दर्शाते हों)

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