इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चरल हेरिटेज (INTACH)) सालाना 'परुवेता' उत्सव के लिए यूनेस्को की मान्यता हासिल करने के प्रयास कर रहा है। उत्सव को 'मॉक हंटिंग फेस्टिवल' के रूप में भी जाना जाता है। यह आंध्र प्रदेश के अहोबिलम शहर के श्री नरसिंह स्वामी मंदिर में मनाया जाता है। INTACH का उद्देश्य संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) द्वारा 'अमूर्त सांस्कृतिक विरासत' का खिताब प्राप्त करना है।
बता दें कि अमूर्त सांस्कृतिक विरासत परंपराओं, त्योहारों और पूर्वजों से पीढ़ियों से पारित कौशल को शामिल करती है। परुवेता त्योहार भी एक तरह का विरासत त्योहार है जो सांप्रदायिक सद्भाव का प्रतीक है। त्योहार के दौरान मंदिर के आंतरिक गर्भगृह से देवता को 40 दिनों की अवधि के लिए अहोबिलम शहर के आसपास के 32 चेंचू आदिवासी गांवों में ले जाया जाता है।
सदियों पुराने इस महोत्सव को यूनेस्को से मान्यता मिलने का मामला वर्तमान में संगीत नाटक अकादमी द्वारा समीक्षाधीन है, जो इस तरह के विचार-विमर्श के लिए नोडल एजेंसी है। जहां तक त्योहार की उत्पत्ति का सवाल है, यह अहोबिलम में भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार से जुड़ा है। मान्यता है कि भगवान नरसिंह ने महालक्ष्मी से विवाह किया था। महालक्ष्मी का जन्म एक आदिवासी लड़की चेंचू लक्ष्मी के रूप में हुआ था।
1881 से कुरनूल जिला गजेटियर में चेंचू जनजातियों की विभिन्न मान्यताओं का ऐतिहासिक दस्तावेज उपलब्ध है। इसके मुताबिक यहां के लोगों में भगवान नरसिंह के प्रति उनके बहनोई के रूप में उनकी श्रद्धा और मकर संक्रांति के दिन उन्हें घर आमंत्रित करने की उनकी परंपरा शामिल है।
परुवेता त्योहार के दौरान मनाया जाने वाला 'नरसिंह दीक्षा', अहोबिलम के लिए विशिष्ट है। जबकि परुवेता अनुष्ठान आमतौर पर विजयदशमी या संक्रांति के दौरान कई मंदिरों में मनाया जाता है। अहोबिलम में यह चालीस दिनों तक चलने वाले 'मंडल' तक फैला हुआ महोत्सव है।
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