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राम्या रामकृष्णन ने उठाए सवाल, महिलाओं के खिलाफ अत्याचार पर ये दोहरा रवैया क्यों?

7 अक्टूबर से इजरायली महिलाओं और लड़कियों पर हमास द्वारा किया गया अत्याचार मानवाधिकारों का अस्वीकार्य उल्लंघन है। फिर भी, बहुत सी महिला एक्टिविस्ट इन अपराधों को नजरअंदाज कर रही हैं। इससे भी बुरा ये है कि वे आतंकवादी समूहों और उनके विचारधाराओं के साथ सहानुभूति रखती हैं।

लेखिका राम्या रामकृष्णन हिंदू अमेरिकन फाउंडेशन (HAF) में कम्युनिटी आउटरीच की डायरेक्टर हैं। / Courtesy Photo

राम्या रामकृष्णन : कुछ महीने पहले मैंने एक प्रमुख यहूदी संगठन द्वारा आयोजित 'सुपरनोवा: द म्यूजिक फेस्टिवल नरसंहार' की एक विशेष स्क्रीनिंग देखी थी। दर्शकों ने कुछ पहले कभी नहीं देखे गए फुटेज और इजरायली पीड़ितों के दिल दहला देने वाले साक्षात्कार देखे। इन पीड़ितों में ज्यादातर महिलाएं पोर्टेबल शौचालयों और बम से बचने के लिए बनाए गए शेल्टर में छिपी हुई थीं। जो किसी तरह गोलियों की बौछार से बच निकलीं और जीवित रहकर उन भयावहताओं को बता सकीं।

हमले के विवरण ने सभी को झकझोर कर रख दिया। लगभग एक घंटे के लिए हम मानसिक तौर पर घटनास्थल पर पहुंच गए और इस्लामी आतंकवाद और नफरत के सबसे बुरे रूप का अनुभव किया। 7 अक्टूबर से इजरायली महिलाओं और लड़कियों को निशाना बनाकर हमास द्वारा किए गए बलात्कार, यौन हिंसा और अत्याचार मानवाधिकारों का अस्वीकार्य उल्लंघन है। फिर भी, आप देखेंगे कि बहुत सी महिला एक्टिविस्ट इन अपराधों को पूरी तरह से नजरअंदाज कर रही हैं। इससे भी बुरा ये है कि वे आतंकवादी समूहों और उनके विचारधाराओं के साथ सहानुभूति रखती हैं।

खासकर एक महिला होने के नाते यह देखना बहुत निराशाजनक है कि कई महिलाएं और महिला-नेतृत्व वाले समूह इन क्रूरताओं को अनदेखा करना पसंद करते हैं। बलात्कार और यौन हिंसा जैसी गंभीर घटनाओं को कम करके आंकना और इसे 'फेमिनिस्ट' कहलाने वाले लोगों द्वारा किया जाना बेहद शर्मनाक है। यह सच है कि जब महिलाएं एक-दूसरे का समर्थन नहीं करती हैं, खासकर गंभीर मुद्दों पर, तो यह समाज के लिए एक बड़ी समस्या होती है। हर महिला को, चाहे उसका राजनीतिक झुकाव या धर्म कुछ भी हो, इस तरह की हिंसा के खिलाफ खड़ा होना चाहिए और एक-दूसरे के साथ एकजुटता दिखानी चाहिए।

आपके परवरिश में आपको आजादी और समानता के मूल्य मिले, जो एक बहुत अच्छी बात है। ऐसा माहौल आपको आज इतना मजबूत बनाता है कि आप इन सच्चाइयों को खुले मन से देख सकती हैं और इस बारे में आवाज उठा सकती हैं। मैं उन भाग्यशाली महिलाओं में से एक हूं जिनका पालन-पोषण ऐसे परिवार में हुआ जहां लड़कियों को बहुत अधिक आजादी मिलती थी। उन्हें पुरुषों के बराबर माना जाता था। वास्तव में कई मामलों में उन्हें महत्वपूर्ण निर्णय लेने के अधिक अधिकार थे।

जब मैं छोटी थी और किशोरी थी, तब मैं अपने आस-पास की महिला लीडर्स से प्रेरित थी। अपने परिवार में, अपने स्कूल में और अपने शहर में, राजनीति में भी। इन रोल मॉडल के कारण लड़की होने के नाते और बाद में महिला होने के नाते अपने अधिकारों के लिए खड़ा होना मेरे लिए स्वाभाविक था। मुझे बचाव करना, उठना या नेतृत्व करना सिखाया नहीं गया।

जब मैं थिएटर से बाहर निकली तो मैंने सोचा कि आज फिलिस्तीन की आजादी की मांग करने वाले रैलियों का आयोजन करने वाली इन महिला कार्यकर्ताओं में से कितनी इरानी महिलाओं और पुरुषों का समर्थन करती हैं। जब उनकी ही महिला महसा अमीनी को जबरन हिजाब पहनने का विरोध करने पर पुलिस हिरासत में मौत के घाट उतार दिया गया था? इस बर्बर कृत्य के बाद लगभग 600 निर्दोष लोगों की मौत हुई। फिर भी जो समूह आमतौर पर हमास जैसे आतंकवादी समूहों का समर्थन करते हुए कॉलेज कैंपसों में डेरा डाले रहते हैं, वे ऐसी क्रूरताओं से अनजान बने रहते हैं! यह दोगलापन ही तो है!

अगर आप सोच रहे हैं कि ये तथाकथित नारीवादी कहां हैं जब पाकिस्तान में नाबालिग हिंदू लड़कियों का अपहरण, बलात्कार अक्सर उनकी उम्र से दोगुनी या तिगुनी उम्र के पुरुषों द्वारा हर रोज किया जाता है। उन्हें धमकाया जाता है। उन्हें जबरन इस्लाम में परिवर्तित किया जाता है। तो आप इन नारीवादी एक्टिविस्ट को शहर काउंसिल की बैठकों में चुने हुए अधिकारियों से न्याय की मांग करते हुए चिल्लाते हुए नहीं पाएंगे। आप उन्हें फ्रीवे ब्लॉक करते हुए या शैक्षणिक संस्थानों में विरोध प्रदर्शन करते हुए भी नहीं देखेंगे। आप निश्चित रूप से महिला रिपोर्टरों को इन भयावह कहानियों की जांच करते और रिपोर्ट करते हुए नहीं पाएंगे जहां पीड़ित हिंदू परिवार अपनी बेटियों के लिए रो रहे हैं और मदद के लिए भगवान से विनती कर रहे होते हैं।

सच्चाई यह है कि हिंदू लड़कियों और उनकी दुर्दशा महत्वपूर्ण नहीं है। चाहे कश्मीर हो, बांग्लादेश हो या पाकिस्तान। इन तमाम जगहों पर हिंदू महिलाओं का सबसे भयावह तरीकों से यौन शोषण, बलात्कार और उनपर हमला किया गया है और अभी भी किया जा रहा है। कई मामलों में उन्हें मरने के लिए छोड़ दिया जाता है। फिर भी, दुनिया भर में इन मानवाधिकारों के इसे नजरअंदाज किया गया है। चुप्पी साध ली गई है। इन्हें उजागर करने का काम हिंदू संगठनों और कुछ व्यक्तियों पर छोड़ दिया गया है। अक्सर, ऐसे कृत्यों के खिलाफ आवाज को उठाने के लिए हिंदुओं को संगठित प्रतिरोध और हिंदू-विरोधी नफरत का सामना करना पड़ता है। हिंदू महिला वकीलों को नियमित रूप से प्रताड़ित किया जाता है और सच साझा करने से रोका जाता है।

जो लोग जागरूकता बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं उन्होंने इन छद्म महिला अधिकार कार्यकर्ताओं, नीति निर्माताओं और पत्रकारों से दो प्रतिक्रियाएं देखी हैं। पहला, इन अपराधों के अस्तित्व को नकारना, भले ही आपके पास ठोस डेटा और वास्तविक रिपोर्टें हों जो इन अपराधों का दस्तावेजीकरण करती हों। दूसरा, इन अपराधों को पूरी तरह से नजरअंदाज करना और जानबूझकर उनसे बचना। जब तक हम सभी महिलाओं के जीवन को समान नहीं मानते और यह स्वीकार नहीं करते कि सभी लड़कियों और महिलाओं में, खासकर उन बेबस महिलाओं में जिनकी कोई आवाज नहीं है, ईश्वर का वास है, तब तक हम अपनी पूरी क्षमता का एहसास नहीं कर सकते हैं और बड़ी चीजें हासिल नहीं कर सकते हैं।

(लेखिका राम्या रामकृष्णन हिंदू अमेरिकन फाउंडेशन (HAF) में कम्युनिटी आउटरीच की डायरेक्टर हैं। वह मानती हैं कि समुदाय के लिए निस्वार्थ सेवा ही सेवा का सर्वोच्च रूप है। वह सही के लिए खड़े होने और सच्चाई से पीछे न हटने में विश्वास करती हैं। प्रस्तुत आलेख लेखिका के निजी विचार हैं)

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